मौत के मुख से सकुशल वापसी

मौत के मुख से सकुशल वापसी


आज तक तो साधकों के मुख से सुना ही था कि श्रीआसारामायण का पाठ करने वाले साधकों की रक्षा स्वयं पूज्य श्री ही करते हैं परन्तु गत दिनों मेरे जीवन में भी ऐसा प्रसंग आया कि उन अनुभवसंपन्न साधकों में मैं भी शरीक हो गया। घटना 17 सितम्बर 1996 की है। मैं दिल्ली से करीब 1.30 बजे दिन को हरियाणा रोडवेज की बस से जयपुर के लिए रवाना हुआ। जैसे ही बस दिल्ली से बाहर निकली, मैंने श्री आसारामायण का पाठ आरंभ किया लेकिन कितनी ही बार पाठ बीच-बीच में खण्डित होने लगा। एक ओर जैसे कोई मुझे पाठ करने में विघ्न पैदा कर रहा था तो मानों दूसरी और कोई मुझसे पाठ सतत कराने की प्रेरणाशक्ति का संचार कर रहा था। यह सब क्या हो रहा था ? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। जैसे ही पाठ पूर्ण हुआ, मैं निश्चिन्त हो खिड़की के सहारे टिककर सोने की कोशिश कर रहा था कि यकायक मैं जिस ओर बैठा था उस ओर की सभी खिड़कियों के शीशे टूटने शुरु हो गये और बस जो कि 60-70 कि.मी. की गति से भाग रही थी, संतुलन बिगड़ जाने से सड़क के नीचे उतर गई और लगा कि बस अब पलटने वाली ही है। बस में कोहराम मच गया। सभी यात्रियों ने अपनी जान बचाने के लिए अगली सीट के पाईप पकड़ रखे थे। बस के असंतुलन की दशा को देख ऐसा लग रहा था, जैसे सभी मौत के मुख में प्रवेश कर चुके हैं।

यद्यपि बस में सर्वत्र जोर-जोर से चीखें आ रही थीं, किन्तु मेरे मुख से स्वाभाविक ही ʹगुरुदेव… गुरुदेव….ʹ निकलने लग गया। मानो मेरे भीतर से कोई इस संकट की घड़ी से उबारने के लिए गुरुदेव को पुकार रहा था। मैंने देखा कि सामने एक बबूल का बड़ा पेड़ है और बस उससे टकराकर चकनाचूर होने ही वाली है। मैंने आँखें बन्द कर लीं और हृदयपूर्वक पूज्यश्री को पुनः पुकारा। बस, फिर तो मानो चमत्कार हो गया ! श्री आसारामायण की इन पावन पंक्तियों का प्रत्यक्ष अनुभव हो गया।

सभी शिष्य रक्षा पाते हैं।

सूक्ष्म शरीर गुरु आते हैं।।

धर्म कामार्थ मोक्ष वे पाते।

आपद रोगों से बच जाते।।

मैं क्या देखता हूँ कि बस उसी क्षण बबूल के पेड़ के पास खड्डे में धंस जाने से रुक गई और मुझे तो क्या, बस में सवार किसी भी यात्री का बाल भी बाँका नहीं हुआ। सभी यात्रियों को पूज्यश्री की असीम अनुकंपा से एक नया जीवन मिल गया। मुझे आज पता चला कि किस तरह हृदयपूर्वक पुकारने से गुरुदेव सूक्ष्म शरीर से आकर शिष्यों की तो क्या, सभी की रक्षा करते हैं। हम भले ही गुरुदेव को शिष्य-अशिष्य की परिधि में अपनी मानवीय बुद्धि से बाँधें लेकिन वे तो पूरे विश्व के गुरु हैं। सचमुच, पूरी मानव जाति पूज्यश्री को पाकर कृतार्थ हो चुकी है।

महेन्द्रपाल गौरी, डिप्टी मैनेजर एच.एम.टी.लि. अजमेर (राजस्थान)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 1996, पृष्ठ संख्या 20, अंक 48

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