शरीर स्वास्थ्य

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दही

दही की प्रकृति (तासीर) गर्म होती है। इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। दही जमने की प्रक्रिया में ʹबीʹ विटामिन विशेषकर थायमिन, रिबोफ्लेबीन और निकोटेमाइड की मात्रा दुगुनी हो जाती है। विशेषतः दूध की अपेक्षा दही सरलता से पच जाता है।

उच्च रक्तदाब, मोटापा तथा गुर्दे (किडनी) की बीमारियों में दही अत्यधिक लाभप्रद बताया गया है।

अमेरिका के प्रो. जार्ज शीमान के अनुसार दही हृदयरोग की रोक-थाम के लिए उत्तम वस्तु है।

कोलेस्ट्रॉल नामक हानिकारक पदार्थ रक्तवाहिनियों में जमकर रक्त के प्रवाह को रोकता है। परिणामतः हृदय रोगों की उत्पत्ति होती है। दही कोलेस्ट्रॉल की अधिक मात्रा को नियंत्रित करता है।

विभिन्न रोगों में उपचार

केन्सरः करनाल, 24 जुलाई 1973 में राष्ट्रीय डेयरी संस्थान के वैज्ञानिकों ने काफी परीक्षणों के बाद बताया कि दही कई प्रकार के केंसर की संभावना को समाप्त करता है। दही का सेवन स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है।

वैज्ञानिकों के अनुसार दहीसेवन के एक घंटे के अंदर ही उसके लगभग 80 प्रतिशत अंश को शरीर आत्मसात कर लेता है जबकि दूध का सिर्फ 32 प्रतिशत अंश ही शरीर आत्मसात कर पाता है। दही से शरीर की फालतू चर्बी कम होती है अतः मोटापा कम करने के लिए भी दही या मट्ठे का सेवन लाभदायक है।

बाल गिरनाः आवश्यकता से अधिक भावनात्मक दबाव के कारण बाल अधिक गिरते हैं। महिलाओं में एस्ट्रोजन हारमोन की कमी के कारण बाल अधिक गिरते हैं। भोजन में लौह तत्त्व व आयोडीन की कमी से भी बाल असमय गिरते हैं।

दही में वे सभी तत्त्व होते हैं जिनकी बालों को आवश्यकता रहती है।

एक कप दही में पिसी हुई 8-10 काली मिर्च मिलाकर सिर धोने से सफाई अच्छी होती है। बाल मुलायम व काले रहते हैं एवं गिरना बन्द हो जाते हैं। कम से कम सप्ताह में एक बार इसी तरह बाल धोयें।

अपचः सेंका व पिसा हुआ जीरा, काली मिर्च व सेंधा नमक दही में डालकर नित्य खाने से अपच ठीक हो जाता है। भोजन शीघ्र पचता है।

सिरदर्द (आधे सिर में)

दही, चावल व मिश्री मिलाकर सूर्य़ोदय से पहले खाने से  सूर्योदय के साथ बढ़ने घटने वाला सिरदर्द ठीक हो जाता है। यह प्रयोग कम से कम छः दिन करें।

आँतें- वैज्ञानिकों के अऩुसार एऩ्टीबायटिक्स देने के पश्चात आँतों के बेक्टीरियल फ्लोरा पर पड़े कुप्रभाव को दही के सेवन से हटाया जा सकता है।

भाँग के नशे में- ताजा दही खिलाने से भाँग का नशा उतर जाता है।

गंजापनः प्याज का रस सिर में लगायें। एक घंटे बाद खट्टा दही लगायें। पाँच-दस मिनट बाद सिर धो लें। इस प्रयोग से गंजे को भी बाल होने लगेंगे।

विशेषः दही में मिश्री या शहद डालकर खाने से इसके गुणों में वृद्धि होती है।

सावधानीः दमा, श्वास, खांसी, कफ, शोथ, पित्त, ज्वर में दही का सेवन हानिप्रद है।

ईख (गन्ना)

आजकल अधिकांशतः लोग मशीन, ज्यूसर आदि से निकाला हुआ रस पीते हैं। ʹसुश्रुत संहिताʹ के अनुसार यंत्र (मशीन, ज्यूसर आदि) से निकाला हुआ रस भारी, दाहकारी, कब्जकारक होने के साथ ही संक्रामक कीटाणुओं से युक्त भी हो सकता है।

अविदाही कफकरो वातपित्त निवारणः।

वक्त्र प्रहलादनो वृष्यो दन्तनिष्पीडितो रसः।।

ʹसुश्रुत संहिताʹ के अनुसार दाँतों से चबाकर रस चूसने पर गन्ना दाहकारी नहीं होता और इससे दाँत मजबूत होते हैं। अतः गन्ना चूसकर खाना चाहिए।

ʹभावप्रकाश निघण्टुʹ के अनुसार गन्ना रक्तपित्त नामक व्याधि को नष्ट करने वाला, बलवर्धक, वीर्यवर्धक, कफकारक, पाक तथा रस में मधुर, स्निग्ध, भारी मूत्रवर्धक व शीतल होता है। ये सब पके हुए गन्ने के गुण हैं।

उपयोगः गन्ना नित्य प्रायः चूसते रहने से पथरी टुकड़े-टुकड़े होकर निकल जाती है।

पित्त की उल्टी होने पर एक गिलास गन्ने के रस में दो चम्मच शहद मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।

एक कप गन्ने के रस में आधा कप अनार का रस मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से रक्तातिसार मिटता है।

विशेषः लिवर की कमजोरी वाले, हिचकी, रक्तविकार, नेत्ररोग,  पीलिया, पित्तप्रकोप व जलीय अंश की कमी के रोगी को गन्ना चूसकर ही सेवन करना चाहिए। इसके नियमित सेवन से दुबलापन दूर होता है और पेट की गर्मी पर हृदय की जलन दूर होती है। शरीर में थकावट दूर होकर तरावट आती है। पेशाब की रूकावट में जलन भी दूर होती है।

निषेधः मधुमेह (डायबिटीज), पाचनशक्ति की मंदता, कफ व कृमि के रोगवालों को गन्ने के रस का सेवन नहीं करना चाहिए। कमजोर मसूढ़े वाले, पायरिया व दाँतों के रोगियों को गन्ना चूसकर नहीं करना चाहिए। मुख्य बातः बाजारू मशीनों द्वारा निकाले गये रस से (यदि शुद्धतापूर्वक नहीं निकाला गया है तो) संक्रामक रोग होने की संभावना रहती है। अतः गन्ने का रस निकलवाते समय शुद्धता का विशेष ध्य़ान रखें।

पायरिया

दाँतों का एक बहुत ही प्रचलित रोग है पायरिया ! यह रोग आज की सभ्यता की देन है। डब्बों में बंद खाद्य पदार्थ, शक्कर, मैदा, पालिश वाले चावलों की ओर ज्यों-ज्यों हमारा आकर्षण बढ़ रहा है त्यों-त्यों इस रोग से आक्रांत लोगों की भी संख्या बढ़ती जा रही है।

निवारणः भोजन में क्षार की मात्रा भी होनी चाहिए जो कि चोकरदार आटा, दूध, ताजे पके पल व हरी कच्ची तरकारियों में अधिक मात्रा में होता है। यदि इसका ध्यान रखा जाये तो यह रोग कभी भी होगा नहीं।

कैल्शियम की कमीः अक्सर लोग कहा करते हैं कि चीनी खाने से दाँत खराब होते हैं। यह काफी अंशों में सही बात है। गन्ने के रस से जब चीनी बनती है, तो उसमें कैल्शियम (चूने) का अंश नहीं रह जाता और चीनी कैल्शियम के साथ बिना पचती नहीं। अतः चीनी के पाचन के लिए कैल्शियम हड्डियों से खिंचकर आता है। फलतः हड्डियाँ कमजोर हो जाती है। प्रभाव तो इसका शरीर के अऩ्दर हड्डियों के सारे ढाँचे पर पड़ता है किन्तु दाँत बाहर होने के कारण उसका प्रभाव उऩ पर प्रत्यक्ष दिखायी देता है। अतः दाँत के रोग समाप्त करने हैं तो भोजन में कैल्शियम की समुचित मात्रा होनी चाहिए जो कि हरी तरकारियों जैसे की फूलगोभी, टमाटर, लौकी, गाजर, खीरा, पालक, नारंगी, तिल व दूध में अधिक मात्रा में पाया जाता है।

दाँतों की कसरतः और अँगों की तरह दाँतों की कसरत भी आवश्यक है जो कि हलवा पूरी खाने से नहीं, अपितु कच्ची तरकारियाँ खाने से अथवा दोपहर शाम मुट्ठीभर भिगोये हुए गेहूँ चबा लिया जाये तो दाँतों की पूरी कसरत हो जाये। अंकुरित गेहूँ और भी लाभप्रद हैं। अंकुरित गेहूँ में विटामिन ई भी पैदा हो जाता है कि बाँझपन, नपुँसकता, गर्भपात हो जाना, जख्म जल्दी न भरना आदि रोगों में बहुत ही लाभप्रद है। यह प्रयोग कब्ज का भी नाश करता है।

दाँतों की बीमारी के साथ-साथ जिन्हें मसूढ़ों में भी तकलीफ रहती है वे विटामिन सी प्रधान संतरा, नींबू, टमाटर, पत्तागोभी, अनानास, अंगूर आदि का भी सेवन करें।

दाँत के लिए विशेष प्रयोग

जिनका रोग बढ़ गया है उन्हें अपने मसूढ़ों पर नित्य कुछ दिन दस-पन्द्रह मिनट तक भाप लगानी चाहिए। एक लोटे में थोड़ा पानी डालकर आग पर चढ़ा दीजिये। भाप निकलने लगे तो लोटे के मुँह पर एक चिल्म उल्टी रख दीजिये। चिलम की नली से भाप निकलने पर इच्छित स्थान पर आप भाप ले सकते हैं। भाप लेने के बीच दो-तीन बार ताजा जल से एक दो कुल्ला करें। यदि चेहरे पर भाप लगे तो चिन्ता की कोई बात नहीं है।

सुबह उठते समय व रात को सोने से पहले दाँत अवश्य साफ करें।

बाजारू दवाएँ लगाकर दाँतों को निकम्मा न बनायें अपितु सेंधा नमक मिला सरसों का तेल अथवा नींबू का रस लगाना काफी होगा।

भोजन के बाद मूली, गाजर, ककड़ी, सेव, अमरूद जैसी कोई कड़ी चीज का अवश्य सेवन करें। फल व तरकारियों का क्षार दाँतों को साफ करता है। इनका कोई अंश दाँतों में रह भी जाये तो इतना जल्दी नहीं सड़ता, जितना जल्दी पकी चीज का अंश सड़ता है। इस तरह यह प्रयोग करने से पायरिया की बीमारी तो समाप्त होगी ही, साथ ही दाँतों की पीड़ा, दाँतों का हिलना, मसूढ़ों की खराबी आदि भी समाप्त हो जायेगी।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 1997, पृष्ठ संख्या 28,29,30 अंक 51

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