आत्मज्ञान की महिमा

आत्मज्ञान की महिमा


पूज्यपाद संत श्री आशारामजी बापू

आत्मज्ञान की बड़ी महिमा है। एक व्यक्ति को दुनियाभर का धन दे दो, दुनियाभर का सौन्दर्य दे दो लेकिन आत्मज्ञान से अगर वचिंत रखा तो वह अभागा रह जायेगा। उसके हृदय में अशांति जरूर रहेगी, खटकाव जरूर रहेगा और जन्म-मरण का चक्र उसके सिर पर मँडराता ही रहेगा। फिर किसी-न-किसी माता के गर्भ में उलटा लटकता ही रहेगा। यदि उसे आप और कुछ भी न दो, परन्तु किसी ब्रह्मज्ञानी गुरु की मधुर निगाहों की माधुर्यता की एक झलक दिला दो, उसकी रूचि ईश्वराभिमुख कर दो तो महाराज ! आपने उसे ऐसा दे डाला, ऐसा दे डाला कि हजारों जन्मों के माँ-बाप तक न दे सकें। हजारों-हजारों जन्म कों के दोस्त रिश्ते-नाते न दे सकें, ऐसी चीज आपने उसको हँसते-हँसते दिला दी। आप उसके परम हितैषी हो गये।

आत्मज्ञान की ऐसी महिमा है। भगवान श्रीकृष्ण युद्ध के मैदान में मुस्कराते हुए अर्जुन को आत्मज्ञान दे रहे हैं। श्रीकृष्ण आये हैं तो कैसे ? विषम परिस्थितियों में आये हैं। गीता का भगवान कैसा अनूठा है ! किसी का भगवान सातवें अर्स पर रहता है, किसी का खुदा कहीं होता है, किसी का भगवान कहीं होता है लेकिन भारत का भगवान ! जीव को रथ पर बिठाता है और खुद सारथि होकर, छोटा होकर भी जीव को ब्रह्म का साक्षात्कार कराने में संकोच नहीं करता। श्रीकृष्ण तो यह भी नहीं कहते कि ʹइतना नियम करो, इतना व्रत करो, इतना तप करो, फिर मैं मिलूँगा।ʹ नहीं ! वे तो कहते हैं-

अपि चेदसी पापेभ्यः सर्वेभ्य पापकृत्तमः।

सर्व ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सतंरिष्यसि।।

ʹयदि तू सब पापियों से भी अधिक ताप करने वाला है तो भी ज्ञानरूप नौका द्वारा निःसन्देह संपूर्ण पापों को अच्छी प्रकार तर जायेगा।ʹ गीताः 4.36

भगवान कहते हैं ʹपापकृत्तमʹ। जैसे प्रिय, प्रियतर, प्रियतम होता है ऐसे ही कृत, कृत्तर और कृत्तम अर्थात् पापियों में भी आखिरी पंक्ति का हो, वह भी यदि इस ब्रह्मज्ञान की, आत्मज्ञान की नाव में बैठेगा तो तर जायेगा।

भगवदगीता जिस देश में हो, उसे देश के वासी जरा-जरा सी बात में चिढ़ जायें, दुःखी हो जायें, भयभीत हो जायें, ईर्ष्या करने लगें तो यह गीता से विमुखता के ही दर्शन हो रहे हैं। यदि हम गीता के ज्ञान के सन्मुख हो जायें तो हमारा यह दुर्भाग्य नहीं रह सकता।

जरा-जरा सी बात में जर्मन टॉय जैसा बन जाना, कोई दो शब्द बोल जाये तो आग बबूला हो जाना अथवा किसी ने जरा सी बड़ाई कर दी, दो शब्द मीठे कह दिये तो फूल जाना, इतना तो लालिया, मोतिया और कालिया कुत्ता भी जानता है। जलेबी देखकर पूँछ हिलाना और डण्डा देखकर दुम दबा देना, इतनी अक्ल तो उसके पास भी है। अगर इतना ही ज्ञान आपके पास है तो इतनी पढ़ाई-लिखाई का फल क्या ? मनुष्य होने का फल क्या ? फिर तो हम लोग भी द्विपाद पशु हो गये।

भगवान कहते हैं कि तुम कितने भी ठगे गये हो लेकिन जब गीता की शरण आ जाओ। अभी-अभी तुमको हम राजमार्ग दिखा देते हैं। जैसे हवाई जहाज छः घण्टों में दरिया पार पहुँचा देता है किन्तु बैलगाड़ी वाला छः साल चलता रहे फिर भी दरिया-पार करना उसके लिए संभव नहीं। मनमानी सुख की बैलगाड़ी को छोड़कर अब तुम आत्म-परमात्मसुख के जहाज में बैठ जाओ तो भवसागर से भी तर जाओगे।

ज्ञान भिडई ज्ञानडी ज्ञान तो ब्रह्मज्ञान।

जैसे गोला तोप का सोलह सो मैदान।।

जगत के और ज्ञान, छोटे-मोटे तो ज्ञानडो हैं लेकिन ब्रह्मज्ञान तोप का गोला है, जो सारी मुसीबतों को मार भगाता है। उस ज्ञान को पाने का तरीका भी भगवान सहज, सरल बता रहे हैं और वह तुम कर सकते हो। उसमें जो अड़चनें आती हैं उनका कारण भी भगवान बता रहे हैं और उन अड़चनों को कुचलने का उपाय भी भगवान बता रहे हैं। केवल तुमको गाँठ बाँधनी है कि ʹईश्वरप्राप्ति करके ही रहेंगे। हमको इस संसारभट्ठी में पच-पचकर नहीं मरना है बल्कि हमको शहंशाह होकर जीना है और शहंशाह होकर ही परम शहंशाह से मिलना है।ʹ

राजा से मिलने जब जाते हैं तो भीखमंगों के कपड़े पहनकर नहीं जाते। किसी मिनिस्टर, कलेक्टर से मिलने जब व्यक्ति जाता है तो उस दिन कपड़े जरा ठीकठाक करके जाता है। जब मिनिस्टर, चीफ मिनिस्टर से मिलना है तो सज-धजकर जाते हैं तो उस ब्रह्मांडनायक परमेश्वर से मिलना हो तो शहंशाह होकर जाओ। दीनता, हीनता, वासना, चिंता, मुसीबतें, काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, मात्सर्य, यह कचरा लेकर कहाँ मुलाकात करने जाते हो ? इन विकारों से बचने का उपाय, संसार में सुगमता से स्वर्गीय जीवन जीने का उपाय और परमसुखस्वरूप उस परमेश्वर को पाने का उपाय, ये सब बातें श्रीमदभागवत में व भगवदगीता में बतायी गयी हैं। कोई भी व्यक्ति गीता के अध्ययन, मनन और निदिध्यासन से अपने जीवन-पुष्प को महका सकता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 1997, पृष्ठ संख्या 12,13 अंक 53

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