सेवफल
प्रातःकाल खाली पेट सेवफल का सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। सेव को छीलकर नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसके छिलके में कई महत्त्वपूर्ण क्षार होते हैं। इसके सेवन से मसूड़े मजबूत होते हैं, दिमाग शांत होता है व अच्छी नींद आती है। यह रक्तचाप को कम करता है।
सेव वायु तथा पित्त का नाश करने वाला, पुष्टिदायक, कफकारक, भारी, रस तथा पाक में मधुर, ठंडा, रूचिकारक, वीर्यवर्धक, हृदय के लिए हितकारी व पाचनशक्ति को बढ़ाने वाला है।
रक्तविकार के कारण बार-बार फोड़े-फुंसियाँ होती हों, जीर्ण त्वचारोग के कारण चमड़ी शुष्क हो गई हो, खुजली अधिक होती हो तो अन्न त्यागकर केवल सेव का सेवन करने से लाभ होता है।
सेव के छोटे-छोटे टुकड़े कर के काँच या चीनी के बर्तन में, ओस पड़े इस तरह खुली जगह, चाँदनी रात में रखकर, रोज सुबह, एक महीने तक सेवन करने से शरीर तंदरुस्त बनता है।
सेव को अंगारों पर सेंककर खाने से अत्यन्त बिगड़ी पाचनक्रिया सुधरती है।
सेव का रस सोडे के साथ मिलाकर दाँतों पर मलने से, दाँतों से निकलने वाला खून बंद हो जाता है एवं दाँतों पर जमी हुई पपड़ी दूर होती है व दाँत स्वच्छ होते हैं।
बार-बार बुखार (ज्वर) आने पर अन्न का त्याग करके सिर्फ सेव का सेवन करें तो बुखार से मुक्ति मिलती है व शरीर बलवान बनता है।
कुछ दिन केवल सेव के सेवन से सर्व प्रकार के विकार दूर होते हैं। पाचनक्रिया बलवान बनती है और स्फूर्ति आती है।
यूनानी मतानुसार सेव हृदय, मस्तिष्क, लिवर तथा जठरा को बल देता है, भूख लगाता है, खून बढ़ाता है तथा शरीर की कान्ति में वृद्धि करता है।
इसमें टार्टरिक एसिड होने से यह एकाध घंटे में पच जाता है और खाये हुए अन्य आहार को भी पचा देता है।
सेव के गूदे की अपेक्षा उसके छिलके में विटामिन ʹसीʹ अधिक मात्रा में होता है। अन्य फलों की तुलना में सेव में फास्फोरस की मात्रा सबसे अधिक होती है। सेव में लौहतत्त्व भी अधिक होता है अतः यह रक्त व मस्तिष्क संबंधी दुर्बलताओं वाले लोगों के लिए हितकारी है।
विशेषः सेव शीतल है। इसके सेवन से कुछ लोगों को सर्दी जुकाम भी हो जाता है। किसी को इससे कब्जियत भी होती है। अतः कब्जियत वाले पपीता खायें।
अनार
ʹएक अनार सौ बीमारʹ वाली कहावत आपने सुनी ही होगी। मीठा अनार तीनों दोषों का शमन करने वाला, तृप्तिकारक, वीर्यवर्धक, हल्का, कसैले रसवाला, बुद्धि तथा बलदायक एवं प्यास, जलन, ज्वर, हृदयरोग, कण्ठरोग, मुख की दुर्गन्ध तथा कमजोरी को दूर करने वाला है। खटमिट्ठा अनार अग्निवर्धक, रूचिकारक, थोड़ासा पित्तकारक व हल्का होता है। पेट के कीड़ों का नाश करने व हृदय को बल देने के लिए अनार बहुत उपयोगी है। इसका रस पित्तशामक है। इससे उल्टी बंद होती है।
अनार पित्तप्रकोप, अरूचि, अतिसार, पेचिश, खांसी, नेत्रदाह, छाती का दाह व व्याकुलता दूर करता है।
गर्मियों में सिरदर्द हो, लू लग जाये, आँखें लाल-लाल हो जायें तब अनार का शरबत गुणकारी सिद्ध होता है।
इसका रस स्वरयंत्र, फेफड़ों, हृदय, यकृत, आमाशय तथा आँतों के रोगों में लाभप्रद है। अनार खाने से शरीर में एक विशेष प्रकार की चेतना सी आती है।
ताजे अनार के दानों का रस निकालकर उसमें मिश्री डालकर पीने से हर प्रकार का पित्तरोग शांत होता है।
अनार के रस में सेंधा नमक व शहद मिलाकर लेने से अरूचि मिटती है।
अनार की सूखी छाल आधा तोला बारीक कूटकर, छानकर उसमें थोड़ा सा कपूर मिलायें। यह चूर्ण दिन में दो बार पानी के साथ मिलाकर पीने से भयंकर कष्टदायक खांसी मिटती है।
अनार के छिलके का चूर्ण नागकेशर के साथ मिलाकर देने से अर्श (बवासीर) का रक्तस्राव बंद होता है।
अनार का रस शरीर में शक्ति, स्फूर्ति तथा स्निग्धता लाता है। बच्चों के पेट में कीड़े हों तो उन्हें नियमित रूप से सुबह-शाम 2-3 चम्मच अनार का रस पिलाने से कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
अनार का छिलका मुँह में डालकर चूसने से खाँसी में लाभ होता है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 1997, पृष्ठ संख्या 30,32 अंक 53
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