सदैव प्रसन्न रहने का परिणाम

सदैव प्रसन्न रहने का परिणाम


मन में दो  बातें एक साथ नहीं रह सकतीं। जिस समय मन दुःखी होगा उस समय मन सुखी नहीं होगा। जिस मन सुखी होगा उस समय दुःखी नहीं होगा। इस तथ्य का लाभ उठाना चाहिए।

कितना भी बड़ा भारी दुःख आ जाये, आप अपने मन में सुख भरने की कला सीख लो। अगर सुख भरने की कला सीख गये तो दुःख का प्रभाव आपको दबोच नहीं सकेगा।

एक बार अकबर बड़ा दुःखी हो गया था एवं यमुना जी में आत्महत्या करने जा रहा था। बीरबल को इस बात का पता चला तो उसने अकबर से कहाः “जहाँपनाह ! खूब हँसो।” अकबर दुःखी तो था ही, अतः वह चिढ़ गया और बोलाः “चारों तरफ से मुझे मुसीबतों ने आ घेरा है और तुम कहते हो खूब हँसो ?”

यह कहकर गुस्से-गुस्से में अकबर ने अपनी अँगूठी निकालकर जोर से यमुनाजी में फेंक दी और कहाः “बीरबल ! तुम मुझे खूब हँसाते हो ? अब देखो तुम कैसे रोते हो। आज से आठ दिन के अंदर यह अँगूठी जहाँपनाह की अँगुली में होनी चाहिए, नहीं तो तुम्हारा सिर काट दिया जायेगा।

बीरबल हँस पड़े। यह देखकर अकबर को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोलाः “आठ दिन के बाद तुम्हारी मृत्यु होने वाली है और तुम हँस रहे हो ?”

बीरबलः “हाँ। दुःख के समय ज्यादा प्रसन्न होना चाहिए ताकि दुःख गहरा न उतरे। आप भी जहाँपनाह ! थोड़ा धैर्य रखें, सब ठीक हो जायेगा।”

अकबरः “लेकिन अँगूठी लाकर पहनानी ही पड़ेगी। अन्यथा सजा में कोई छूटछाट नहीं होगी।”

बीरबलः “निश्चिंत रहिये, जहाँपनाह !”

बीरबल गया राजधानी में। उसको हुआ किः ʹक्या पता कब मर जायें….. अब कुछ नेक काम कर लें।ʹ

जब आदमी को अपनी मृत्यु सामने दिखती है तो उसका सज्जन बनना शुरु हो जाता है। इसीलिए कहा हैः

दो बातन को भूल मत जो चाहत कल्याण।

नारायण इक मौत को दूजो श्रीभगवान।।

मृत्यु कभी भी, कहीं भी, कैसे भी आ सकती है और आयेगी जरूर… इस बात को एवं भगवान को कभी मत भूल। इसी में है मानव ! तेरा कल्याण है।

बीरबल तो निश्चिंत होकर सोते थे। एक… दो… तीन दिन बीत गये। चौथे दिन एक घटना घटी। अकबर ने घोषणा करवा दीः “यदि किसी की सब्जी आदि न बिके तो शाम को राज्य के गोदाम में छोड़ जाये और उसको वाजिब दाम मिल जायेगा।

दैवयोग से उसी दिन बाजार में एक बड़ा भारी मच्छ आया। सारा दिन बीतने पर भी वह मच्छ बिका नहीं था। अतः शाम को वह राज्य के गोदाम में लाया गया। यह खबर अकबर तक पहुँची। लोग बोलने लगे किः ʹइतना बड़ा मच्छ आज तक हमने देखा नहीं है।ʹ

अकबर ने मच्छ मँगवाया एवं कहाः “मेरे ही सामने इसको चीरो।”

मछुआरे ने मच्छ को चीरा तो अंदर से अकबर की अँगूठी निकली। अकबर दंग रह गया ! वह बोल उठाः “तीन दिन पहले फेंकी हुई मेरी अँगूठी…. और मच्छ के द्वारा मेरे राजदरबार में पहुँची ! बीरबल यह कैसा जादू ?”

बीरबलः “जहाँपनाह ! जो खुश रहता है उसको कुदरत और भगवान मदद करते हैं।”

सदैव सम और प्रसन्न रहना ईश्वर की सर्वोपरि भक्ति है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 1999, पृष्ठ संख्या 40,41 अंक 79

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