पुदीना

पुदीना


चटनी के रूप में प्रयुक्त किया जाने वाला पुदीना एक सुगंधित एवं उपयोगी औषधि है।

आयुर्वेद के मतानुसार पुदीना स्वादिष्ट, रुचिकर, पचने में हल्का, तीक्ष्ण, तीखा, कड़वा, पाचनकर्त्ता, उल्टी मिटाने वाला, हृदय को उत्तेजित करने वाला, विकृत कफ को बाहर लाने वाला, गर्भाशय-संकोचक, चित्त को प्रसन्न करने वाला, जख्मों को भरने वाला, कृमि, ज्वर, विष, अरुचि, मंदाग्नि, अफारा, दस्त, खाँसी, श्वास, निम्न रक्तचाप, मूत्राल्पता, त्वचा के दोष, हैजा, अजीर्ण, सर्दी-जुकाम आदि को मिटाने वाला है।

पुदीने में विटामिन ए प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। उसमें रोगप्रतिकारक शक्ति उत्पन्न करने की अदभुत शक्ति है एवं पाचक रसों को उत्पन्न करने की भी क्षमता है। अजवायन के सभी गुण पुदीने में पाये जाते हैं।

पुदीने के बीज से निकलने वाला तेल स्थानिक एनेस्थेटिक, पीड़ानाशक एवं जंतुनाशक होता है। यह दंतपीड़ा एवं दंतकृमिनाशक होता है। इसके तेल की सुगन्ध से मच्छर भाग जाते हैं।

विशेषः पुदीने का ताजा रस लेने की मात्रा है 5 से 20 ग्राम। पत्तों का चूर्ण लेने की मात्रा 3 से 6 ग्राम। काढ़ा लेने की मात्रा 20 से 40 ग्राम। अर्क लेने की मात्रा 20 से 40 ग्राम। बीज का तेल लेने की मात्रा आधी बूँद से 3 बूँद।

औषधि प्रयोगः

मलेरियाः पुदीने एवं तुलसी के पत्तों का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम लेने से अथवा पुदीना एवं अदरक का रस 1-1 चम्मच सुबह-शाम लेने से लाभ होता है।

वायु एवं कृमिः पुदीने के 2 चम्मच रस में एक चुटकी काला नमक डालकर पीने से गैस, वायु एवं पेट के कृमि नष्ट होते हैं।

पुराना सर्दी-जुकाम एवं न्यूमोनियाः

पुदीने के रस की दो-तीन बूँदें नाक में डालने एवं पुदीने तथा अदरक के 1-1 चम्मच रस में शहद मिलाकर दिन में दो बार पीने से लाभ होता है।

अनार्तव-अल्पार्तवः

मासिक धर्म न आने पर या कम आने पर अथवा वायु एवं कफदोष के कारण बंद हो जाने पर पुदीने के काढ़े में गुड़ एवं चुटकी भर हींग डालकर पीने से लाभ होता है। इससे कमर की पीड़ा में भी आराम होता है।

आँत का दर्दः

अपच, अजीर्ण, अरूचि, मंदाग्नि, वायु आदि रोगों में पुदीने के रस में शहद डालकर लें अथवा पुदीने का अर्क लें।

दादः

पुदीने के रस में नींबू मिलाकर लगाने से दाद मिट जाती है।

उल्टी, दस्त, हैजाः

पुदीने के रस में नींबू का रस, प्याज अथवा अदरक का रस एवं शहद मिलाकर पिलाने अथवा अर्क देने से ठीक होता है।

बिच्छू का दंशः

पुदीने का रस दंशवाले स्थान पर लगायें एवं उसके रस में मिश्री मिलाकर पिलायें। यह प्रयोग तमाम जहरीले जंतुओं के दंश के उपचार में काम आ सकता है।

हिस्टीरियाः

रोज पुदीने का रस निकालकर उसे थोड़ा गर्म करके सुबह शाम नियमित रूप से देने पर लाभ होता है।

मुख-दुर्गन्धः

पुदीने के रस में पानी मिलाकर अथवा पुदीने के काढ़े का घूँट मुँह में भरकर रखें, फिर उगल दें। इससे मुख-दुर्गन्ध का नाश होता है।

साँईं श्री लीलाशाहजी उपचार केन्द,

संत श्री आसारामजी आश्रम, जहाँगीरपुरा,

वरिवाय रोड, सूरत।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2000, पृष्ठ संख्या 28,29 अंक 89

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