चरित्र की पवित्रता

चरित्र की पवित्रता


चरित्र की पवित्रता हर कार्य में सफल बनाती है। जिसका जीवन संयमी है, सच्चचरित्रता से परिपूर्ण है उसकी गाथा इतिहास के पन्नों पर गायी जाती है। हरि सिंह नलवा का व्यक्तित्व ऐसा ही था।

पंजाब के पड़ोसी काबुल द्वारा बार-बार पंजाब के सीमावर्ती इलाकों पर आक्रमण हो रहा था। उसका सामना करने के लिए प्रधान सेनापति हरिसिंह नलवा के नेतृत्व में सेना ने काबुल की ओर प्रस्थान किया।

हरिसिंह के शौर्य के आगे काबुली सेना ज्यादा देर न टिक सकी। उनका सरदार हरिसिंह के हाथों मारा गया।

काबुली सरदार की पुत्री मेहर खूबसूरत भी थी और वीरांगना भी। उसने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेना चाहा। उसने सोचाः ‘यदि आमने सामने प्रतिशोध पूरा न कर सकी तो रूप जाल में फँसाकर हरिसिंह को खत्म कर दूँगी। आखिर वह अभी युवा है और बहादुर होने का साथ मोहक भी है। उसका प्रचंड पौरूष मेरे रूप लावण्य के आगे न टिक सकेगा।’

एक दिन उसे हरिसिंह के तंबू का सुराग मिल ही गया। वह रात्रि के अँधेरे में अकेली ही तलवार लेकर निकल पड़ी। रात्रि का दूसरा पहर बीत रहा था, किंतु हरिसिंह के सैनिक पूरी तरह सजाग थे। उन्होंने मेहर को रोक दिया और पूछाः

“इस मध्य रात्रि में इस तरह अकेली क्यों आयी हो ?”

मेहरः “तुम्हारे सेनापति से मिलना है।”

प्रहरी चौंका कि इतनी रात में ! उसने कहाः “तुम सुबह आओ। वैसे भी हमारे सेनापति स्त्रियों से दूर रहते हैं। तुम यहाँ से चली जाओ।”

मेहरः “असंभव ! मैं हरि सिंह से मिले बिना नहीं जाऊँगी। तुम उनसे जाकर कह दो कि काबुल के सरदार की बेटी मेहर आयी है।”

हरिसिंह ने सुना तो उसे सादर बुला लिया।

मध्य रात्रि थी, पूर्ण एकांत था और मेहर की वेशभूषा एवं श्रृंगार उसे और अधिक मादक बना रहा था, लेकिन हरि सिंह किसी और ही धातु के बने थे। उन्होंने मेहर की ओर एक नजर डालकर मुस्कुराते हुए कहाः “बैठो, बहन  !”

हरिसिंह की निश्छल मुस्कान और ‘बहन’ के संबोधन को सुनकर मेहर के हृदय का सारा प्रतिशोध ठंडा हो गया। वह आश्चर्यचकित होकर बोल उठीः

“आपने मुझे ‘बहन’ कहा ?”

हरिसिंहः “हाँ। तुम उम्र में मुझसे कुछ छोटी ही होगी। इसलिए मेरी छोटी बहन के समान हो। हमें तुम्हारे पिता के मारे जाने का बेहद अफसोस है। पर, तुम हमारी मजबूरी समझने की कोशिश करो। क्या तुम अपने यहाँ के लोगों के आतंक से परिचित नहीं हो ? हमारी लगातार चेतावनी से भी जब वे बाज नहीं आये, तब हमें सैनिक अभियान के लिए विवश होना पड़ा।”

मेहर इस सत्य से अवगत थी, लेकिन अबी तक उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई व्यक्ति इतना संवेदनशील और उज्जवल चरित्रवाला भी हो सकता है, क्योंकि उसके देश में यह असंभव सा था। उसने नतमस्तक होते हुए कहाः

“भाईजान ! हमने आपकी बहादुरी के बहुत किस्से सुने थे। पर आज जान लिया कि उसका वास्तविक रहस्य क्या है।”

तब हरिसिंह ने कहाः “मेरे ही नहीं, किसी के भी शौर्य का रहस्य उसके उज्जवल चरित्र में निहित होता है।”

वस्तुतः, मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ संपत्ति उसका उज्जवल चरित्र ही है। जिसके जीवन में चरित्र की पवित्रता है उसका जीवन सदैव सफलताओं से भरपूर रहता है। वह साहसी, निडर, बुद्धिमान एवं धैर्यवान होता है। क्षमा, दया आदि सदगुण उसके जीवन सहज ही खिलने लगते हैं।

हे भारत के नौजवानों ! तुम भी इस रहस्य को जान लो। पाश्चात्य भोगवाद के अंधानुकरण से बचो। अपने देश भारत के वीर, साहसी एवं ऐतिहासिक पुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को भी चरित्र की पवित्रता से सुरभित होने दो…..युवाधन सुरक्षा के उपायों को अपनाकर, संतों-महापुरुषों का सान्निध्य एवं मार्गदर्शन पाकर अपने जीवन को तो उन्नत करो ही, साथ ही, दूसरों को भी उन्नति की ओर चलने के लिए प्रेरित करो। सबकी उन्नति में ही देश की  उन्नति निहित है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2001, पृष्ठ संख्या 20,21 अंक 108

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *