उन्नति की कुंजियाँ

उन्नति की कुंजियाँ


साधक की उन्नति के प्रधान चिन्ह क्या हैं ?

साधन में प्रेम होना, साधन में जरा-भी परिश्रम न प्रतीत होना, महापुरुषों के जीवन में श्रद्धा होना और भगवान पर  विश्वास होना – इन चार सदगुणों से सम्पन्न साधक द्रुतगति से अपने साधना-मार्ग में आगे बढ़ाता है।

आपके जीवन का मुख्य कार्य प्रभु-प्राप्ति ही है। शरीर से संसार में रहो किन्तु मन को हमेशा भगवान में लगाये रखो।

केवल बड़ी-बड़ी बातें बनाने से कुछ हाथ नहीं लगेगा। अपने मन को परमात्मा में लगाने की साधना तुम्हें खुद करनी पड़ेगी।

भगवद्स्मरण, भगवद्गुणगान और भगवद्चिन्तन में समय व्यतीत करना ही समय का सदुपयोग है। आपका हर कार्य भगवद्भाव से युक्त हो, भगवान की प्रसन्नता के ले हो इसका ध्यान रखें।

किसी भी व्यक्ति, किसी भी परिस्थिति, घटना और काल का आप पर कोई प्रभाव न पड़े। सारे प्रभावों से छूटकर केवल अपने आत्म-परमात्म स्वभाव में रहने की भरपूर चेष्टा करें। आपके मन में परमात्मा के सिवाय अन्य किसी की आवश्यकता या चाह न हो तो आवश्यक वस्तुएँ स्वयमेव आपकी सेवा में हाजिर हो जायेंगी। एक बार अपना जीवन ऐसा बनाकर तो देखो।

केवल भगवान में ही विश्वास, केवल भगवान की ही आवश्यकता, केवल भगवान की ही चाह और केवल भगवान ही साधन – ये चार बातें जिस साधक में होती हैं उसका योगक्षेम भगवान स्वयं वहन करते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2002, पृष्ठ संख्या 4, अंक 112

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