जगत क्या है ?

जगत क्या है ?


संत श्री आसाराम जी बापू के सत्संग-प्रवचन से

‘श्री योगवाशिष्ठ महारामायण’ में पाँच प्रकार से जगत की व्याख्या करते हुए भगवान श्रीराम कहते हैं- 1. जगत मिथ्या है। 2. जगत आत्मा में आभासरूप है। 3. जगत कल्पनामात्र है। 4. जगत अनादि अविद्या से भासता है। 5. जगत का स्वभाव परिणामी है।

जगत पहले नहीं था –  यह पहले नहीं था, बाद में नहीं रहेगा, अब भी बदल रहा है। पहले जहाँ बीहड़ जंगल था या खाइयाँ थीं, वहाँ अब मकान बन गये हैं और जहाँ पहले मकान थे, वहाँ अब खाइयाँ हो गयी हैं। जहाँ कभी समुद्र था, वहाँ अभी इमारतें खड़ी हैं और जहाँ इमारतें थीं, वहाँ अभी समुद्र लहरा रहा है। सब सपना हो जाता है।

जगत आत्मा में आभासरूप है – अपनी आत्मा में भासता है। जैसा विचार करो वैसा ही जगत भासता है। कुत्ते को जगत अपने ढंग का दिखता है, हाथी को अपने ढंग का। बाजार में कोई भेड़ दिखे तो कसाई सोचेगा कि ’15 किलो माल (मांस) है’, चमार सोचेगा कि ‘3 या 4 फीट माल (चमड़ा) है’, और ग्वाला सोचेगा कि ‘1 किलो दूध देगी’। यदि कोई भक्त देखेगा तो सोचेगा कि ‘भगवान की सृष्टि का मूक प्राणी है’ और ज्ञानी देखेगा तो सोचेगा कि ‘इसका शरीर प्रकृति का है, परंतु इसके अंदर जो परमात्म-चेतना कार्य कर रही है, सबके अंदर भी वही चेतना है’। इस प्रकार जिसकी जैसी दृष्टि, वैसा ही उसे जगत भासता है।

तुम तो वही के वही हो, परंतु तुम्हारे प्रति जो शुभ भाव रखते हैं उन्हें तुम सज्जन लगोगे और निंदक को बेकार लगोगे। अतः जो जैसी सोच रखता है, उसे जगत वैसा ही होकर भासता है।

जगत कल्पनामात्र है – यदि कोई स्वर्ग में बैठा है और नरक की कल्पना करता है तो उसके लिए स्वर्ग भी नरकरूप हो जाता है, क्योंकि उसने नरक की कल्पना की है। अतः जिसकी जैसी मान्यता होती है, जगत वैसा ही भासता है।

जगत अनादि अविद्या से भासता है – जैसे, खरगोश के सींग और आकाश के फूल असत् होते हैं, वैसे ही जगत असत् है, परंतु असत् रूप अविद्या से सत्य होकर भासता है।

जगत का स्वभाव परिणामी है – जैसे दूध को बिना गरम किये रख दो फट जाता है अथवा जमने पर दही हो जाता है, वैसे ही पूरा जगत परिणामी है। जो बच्चा कुछ वर्ष पहले किलकारी कर रहा था, वही अब वृद्ध होकर, लकड़ी टेककर चल रहा है। वही सिपाही था जो चलते – चलते कई कीड़े मकोड़ों को पैरों तले रौंदता था, उसे पता भी नहीं चलता था। युद्धभूमि में घायल होने पर या मरने पर उसी के शरीर को गीध, कुत्ते, सियार नोचते हैं। ऐसा है जगत का परिणामी जीवन ! यही है संसार !

इस संसार को मिथ्या जानो, आभासमात्र जानो, अविद्यामय जानो, कल्पनामात्र जानो, परिणामी जानो। जो मूढ़ हैं, अल्पमति हैं, वे ही संसार को सत्य मानकर आसक्त होते हैं और फँस मरते हैं। वे संसारी होकर जन्मते-मरते रहते हैं। परंतु जो समझदार हैं, बुद्धिमान हैं, वे जगत के इन 5 लक्षणों को जानकर जगत से उपराम हो जाते हैं और अपने नित्य-शुद्ध-बुद्ध-मुक्त स्वभाव में जग जाते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2002, पृष्ठ संख्या 9, अंक 118

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *