अपनी कद्र करना सीखें – पूज्य बापू जी

अपनी कद्र करना सीखें – पूज्य बापू जी


हमको श्रद्धा के साथ-साथ सत्संग के द्वारा समझना चाहिए कि शिवलिंग यह भगवान तो है लेकिन इस भगवान में घन सुषुप्ति में चैतन्य बैठा है । तर्क करना हो और अश्रद्धा करनी हो तो भगवान साक्षात् आ जायें तो भी दुर्योधन जैसा व्यक्ति उनमें भी अश्रद्धा करता है । दुर्योधन ने श्रीकृष्ण को कैद करने का आदेश दिया तो श्रीकृष्ण द्विभुजी से चतुर्भुजी होकर आकाश में स्थित हुए लेकिन दुर्योधन कहता है कि यह तो जादूगर है । दुर्योधन और शकुनि श्रीकृष्ण के लिए कुछ-का-कुछ बकते हैं लेकिन अर्जुन श्रीकृष्ण से फायदा उठाता है, गीता बनी और हम लोग भी फायदा उठा रहे हैं ।

श्रद्धाविहीन लोग श्रीकृष्ण के दर्शन व चतुर्भुजी नारायण के दर्शन के बाद भी दुर्बुद्धि का परिचय देते हैं । ऐसे दुर्योधनों की कमी नहीं है समाज में । श्रद्धालु व समझदार सज्जन तो शालग्राम, शिवलिंग और मूर्ति में श्रद्धा एवं भगवद्भाव से अपनी बुद्धि और जीवन में चिन्मय चैतन्य को प्रकट करते हैं ।

जिसके जीवन में सूझबूझ है, जिसे अपने जीवन की कद्र है वह महापुरुषों, शास्त्रों, वेदों की कद्र करेगा । शराब व माँस का सेवन करने वालों की मति ईश्वरप्राप्ति के योग्य नहीं रहती । ऐसे लोग स्वयं का ही अवमूल्यन करते हैं । ‘गुरुवाणी’ में आता हैः

जे रतु1 लगै कपड़ा जामा2 होइ पलीतु3

जो रतु पीवहि माणसा तिन किउ4 निरमलु चीतु5 ।।

1 रक्त 2 वस्त्र 3 अपवित्र 4 कैसे 5 शुद्ध चित्त ।

भगवान राम कहते हैं-

निर्मल मन जन सो मोहि पावा ।

शराब और मांस निर्मल मति को मलिन कर देते हैं । आत्मसाक्षात्कार की योग्यतावाला मनुष्य अपने को अयोग्य बनाने वाला खान-पान और चिंतन करे, अपने आत्मदेव को छोड़कर देश-देशान्तर में ईश्वर को माने या स्वर्ग अथवा बिहिश्त की कल्पना करे यह कितनी तुच्छ बात है ! कितनी छोटी मान्यता, मति गति है !

जिसको अपने जीवन की कद्र नहीं है वह शास्त्रों की कद्र क्या करेगा, महापुरुषों की कद्र क्या करेगा, अपना ही जीवन खपा देगा । यदि तुमको अपने जीवन की कद्र है, अपने जीवनदाता की, शास्त्रों की, अपने माता-पिता की कद्र है कि कितनी मेहनत करके तुम्हें पढ़ाया, बड़ा किया तो तुम ऐसे कर्म करो जिनसे तुम्हारे सात कुल तर जायें ।

दुःख आया तो दुःखी हो गये, सुख आया तो सुखी हो गये तो तुम्हारे-हमारे में और कुत्ते में क्या फर्क है ? अरे, सुख को सपना, दुःख को बुलबुला, दोनों को मेहमान जान…. अपने को दास क्यों बनाता है ? पदोन्नति हो गयी तो हर्षित हो गये, बदली हो गयी तो सिकुड़ गये । इतनी लाचार जिंदगी क्यों गुज़ारता है ? गुरु की शरण जा । जरा सा किसी ने डाँट दिया, तेरी खुशी गायब ! ज़रा सा किसी ने पुचकार दिया तो खुश ! तो तू तो जर्मन का खिलौना है और क्या है ? जरा सा नोटिस आ गया तो तेरी चिंता बढ़ गयी । जरा सा कहीं छापा पड़ा तो तेरी मुसीबत बढ़ गयी । जरा सी अफसर से पहचान हो गयी तो तूने छाती फुला दी । तू इन खिलौनों को सच मानकर क्यों उलझ रहा है ? अपने आत्मा को जानने के लिए कुछ तो आगे बढ़ भाई ! जो परम मित्र, परम हितैषी है उसका अहोभाव से चिंतन कर, उसकी स्मृति कर और उसका ज्ञान पाकर उसी में आनंदित हो, प्रशांत हो और विश्रांति पा ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2009, पृष्ठ संख्या 9 अंक 194

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