निष्काम कर्मयोग

निष्काम कर्मयोग


एक बार श्री रमण महर्षि से ‘वूरीज कॉलेज, वैलोर’ के तेलगु पंडित श्री रंगचारी ने निष्काम कर्म-विषयक जानकारी के लिए जिज्ञासा प्रकट की । महर्षि ने कोई उत्तर नहीं दिया । कुछ समय पश्चात महर्षि पर्वत पर घूमने गये । पंडित सहित कुछ अन्य व्यक्ति भी उनके साथ थे । मार्ग में एक काँटेदार लकड़ी पड़ी थी । महर्षि ने उसे उठा लिया और वहीं बैठकर धीरे-धीरे उसे ठीक करना प्रारम्भ कर दिया ।

काँटे तोड़े गये, गाँठें घिसकर समतल की गयीं, पूरी छड़ी एक खुरदरे पत्ते से रगड़कर चिकनी बनायी गयी । इस पूरे कार्य में लगभग छः घंटे लगे । एक काँटेदार लकड़ी से इतनी सुंदर छड़ी बन जाने पर सब आश्चर्य कर रहे थे । जैसे ही सब चले, मार्ग में एक गडरिया लड़का दिखा । उसकी छड़ी खो गयी थी इसलिए वह परेशान था । महर्षि ने तुरंत वह नयी छड़ी उस लड़के को दे दी और चल दिये ।

तेलगू पंडित ने कहाः “यह मेरे प्रश्न का यथार्थ उत्तर है ।”

तेलगू पंडित को अपने प्रश्न का उत्तर कैसे मिला, सोचें । पाठक इसमें अपनी मति लगायें ।

ममतावालों की परेशानी मिटानी स्वार्थ है । जिनसे ममता नहीं है उनकी परेशानी मिटाना यह निष्काम कर्म है । निरूद्देश्य कर्म नहीं, स्वार्थपूर्ण कर्म नहीं, कर्म से पलायनता नहीं, कर्म में डूबे रहना भी नहीं, कर्म के फल की लोलुपता भी नहीं !

विचरते-विचरते निर्लेप नारायण में थोड़ा शांत होना शुरु करो… फिर विचारो, फिर शांत हो । ॐकार का दीर्घ जप भी परम सत्कर्म है । ध्यान, शास्त्र-पठन और दूसरों को संस्कृति के प्रचार की ओर मोड़ना यह सीधा कर्मयोग है । धनभागी हैं ‘ऋषि प्रसाद’ की सेवा करने वाले ! धनभागी हैं समाज में सद्विचार, सद्भाव व सत्शास्त्र का प्रचार करने वाले ! जैसे गडरिये को सहारा मिला छड़ी का, ऐसे ही संसार में सद्विचार का सहारा मिलता है । यह निष्काम कर्म, ज्ञान की छड़ी लोक परलोक में भी रक्षा करती है । ॐ श्री परमात्मने नमः । ॐ शांति… हे स्वार्थ ! हे छल, छिद्र, झूठ, कपट ! दूर हटो । निश्छल नारायण में, सत्यस्वरूप प्रभु में, ज्ञानस्वरूप-साक्षीस्वरूप में वासनाओं की क्या आवश्यकता है ? छल, छिद्र कपट की क्या आवश्यकता है ? ॐ…ॐ…ॐ…

भगवान राम कहते हैं

मोहि कपट छल छिद्र न भावा ।

स्वार्थ में ही छल, छिद्र, कपट होते हैं । ऊँचे उद्देश्य में कहाँ छल, छिद्र, कपट और वासना ! आपका ऊँचा ‘मैं’, ब्रह्मस्वभाव प्रकट करो । देर मत करो ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2009, पृष्ठ संख्या 11 अंक 194

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