संतों के खिलाफ सोची-समझी साजिश

संतों के खिलाफ सोची-समझी साजिश


श्री कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम् महाराज

आज यह जो राजू चांडक नामक शख्स संत आसारामजी बापू पर घिनौने लगा रहा है वह पूर्व में हमसे भी कई बार मिला था, क्योंकि हमको बहुत से व्यक्ति मिलते हैं। मुझे उसके क्रियाकलापों से ऐसा लगता है कि वह संत आसारामजी के बहुत ही खिलाफ था और उनके खिलाफ वह तमाम तरह के सबूत इकट्ठा करने की तरह-तरह की बात कर रहा था। यह एक बहुत ही विचारणीय प्रश्न है।

हमारे भारत का जो संविधान है, सर्वोच्च न्यायालय है, वहाँ भी न्याय प्रक्रिया में एक बात स्पष्ट है कि अगर दस दोषियों को भी छोड़ना पड़े तो छोड़ा जा सकता है लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए। क्या आरोप लगाने मात्र से व्यक्ति दोषी हो जाता है ? नहीं उसकी जाँच-प्रक्रिया है। भारत के अंदर संवैधानिक व्यवस्था है। हर आदमी को अपना पक्ष रखने का अधिकार है।

निर्दोष लोगों पर गुजरात की पुलिस ने जिस तरह से बर्बरता दिखायी है, उससे तो ऐसा लगता है कि वहाँ तालिबानी शासन है। वहाँ कानून का राज्य नहीं है। एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा हुआ है कि जो सरकार हिन्दू धर्माचार्यों और हिन्दू धर्म का नाम लेकर वहाँ स्थापित हुई  है, पूरे देश में एक मैसेज है कि बी.जे.पी. जो है वह संतों का बहुत आदर करती है, संतों के बड़े पक्ष में रहती है लेकिन गुजरात की सरकार ने राम-मंदिर, कृष्ण-मंदिर, कितने-कितने मंदिर वहाँ तोड़े विकास के नाम पर !

हमारा इतिहास साक्षी है कि जब-जब कोई धर्म की बात करता है, सत्य की बात करता है, समाज को सुधारने की बात करता है तो उस पर आरोप हमेशा से लगते आये हैं लेकिन यहाँ बात दूसरी है। इसमें एक संत के ऊपर एक बार एक आरोप लगा, दूसरी बार दूसरा, तीसरी बार तीसरा, फिर किसी दूसरे संत पर आरोप लगता है, फिर किसी तीसरे पर लगता है। यह संतों के खिलाफ बहुत बड़ी सोची-समझी साजिश है, जो हमारे देश में बहुत दिनों से चल रही है। बहुत बड़ी ताकते हैं जो संतों की छवि धूमिल करना चाहती हैं।

संत कृपालु जी पर एक लड़की द्वारा चारित्रिक आरोप लगाया गया। इस तरह के जो आरोप लगते हैं, उनके पीछे जो बहुत बड़े हाथ होते हैं उन तक पहुँचना जरूरी है।

आज मीडिया के कुछ लोग आसारामजी बापू के विरूद्ध अभद्र भाषा का प्रयोग कर निरंतर मनगढंत समाचार दे रहे हैं, इससे हमारे देश का पूरा संत समाज दुःखी है।

देखिये जीसस को क्रॉस पर चढ़ाया गया। उन्होंने कहा था कि ‘प्रेम ही ईश्वर है।’ मीरा को वेश्या कहा गया। उन्होंने कहा था कि ‘मैं भगवान श्रीकृष्ण से प्रेम करती हूँ।’ सुकरात व ऋषि दयानंद के जहर दिया गया। संतों के खिलाफ अत्याचार इसलिए होता है कि संत जो सड़ी-गली व्यवस्थाएँ हैं, जो असत्य वह अधर्म की बात है उसके खिलाफ सत्य के पक्ष में बात करते हैं और जो सत्य के पक्ष में रहता है उसके खिलाफ षड्यंत्र होते हैं। गुजरात की स्थिति से हमें बहुत आशंका है कि आसारामजी बापू को फँसाने के लिए यह सब षड्यंत्र के तहत हो रहा है।

गुजरात की पुलिस ने संत आसारामजी बापू के आश्रम में जाकर तांडव किया है और निर्दोष लोगों को मारा-पीटा है, उन सब पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज होनी चाहिए। निर्दोष साधक-भक्तों को अपमानित किया जा रहा है, क्या यह अत्याचार नहीं है ? गुजरात की सरकार को हम आगाह करना चाहते हैं कि किसी भी संत पर इस तरह का अत्याचार और उनके आश्रमों पर छापे मारकर उनकी छवि को धूमिल करने का प्रयास न करे।

जैसे आरूषि हत्याकांड में हुआ, पूरी दुनिया में यह प्रचारित किया गया कि आरूषि के माता-पिता ही उसमें सम्मिलित हैं। अंत में सी.बी.आई. ने उन्हें निर्दोष घोषित कर दिया। तो जो बदनामी, जो दर्द, जो घुटन उसके माँ-बाप ने सही है, क्या उसे मिटाया जा सका ? ठीक उसी प्रकार बापू के भक्तों के हृदय को जो पीड़ा पहुँच रही है, क्या वे घाव भरे जा सकेंगे?

स्रोतः ऋषि प्रसाद जनवरी 2010, पृष्ठ संख्या 6,7

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