कुलं पवित्रं जननी कृतार्था वसुन्धरा पुण्यवती च येन।

कुलं पवित्रं जननी कृतार्था वसुन्धरा पुण्यवती च येन।


(पूज्य बापू जी का अवतरण दिवसः 4 अप्रैल)

पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से

शास्त्रों में भगवान के कई अवतार बताये गये हैं। उनमें से एक है नित्य अवतार, जो संत-महापुरुषों के रूप में होता है। ऐसे नित्य अवतारस्वरूप अनेक संत इस धरती पर अवतरित हुए हैं, जैसे – वल्लभाचार्य, शंकराचार्य, निम्बकाचार्य, कबीर जी, नानक जी, श्री रामकृष्ण परमहंस, परम पूज्य श्री लीलाशाह जी बापू।

कुलं पवित्रं जननी कृतार्था

वसुन्धरा पुण्यवती च येन।

अर्थात जिस कुल में वे महापुरुष अवतरित होते है वह कुल पवित्र हो जाता है, जिस माता के गर्भ से उनका जन्म होता है वह भाग्यवती जननी कृतार्थ हो जाती है और जहाँ उनकी चरणरज पड़ती है वह वसुन्धरा भी पुण्यवती हो जाती है।

साधारण जीव का जन्म कर्मबन्धन से, वासना के वेग से होता है। भगवान या संत-महापुरुषों का जन्म ऐसे नहीं होता। वास्तव में तो उनका मनुष्य रूप में धरती पर प्रकट होना, जन्म लेना नहीं अपितु अवतरित होना कहलाता है।

भगवान या संत महापुरुष तो लोकमांगल्य के लिए, किसी विशेष उद्देश्य को पूरा करने के लिए अथवा लाखों-लाखों लोगों द्वारा करूण पुकार लगायी जाने पर अवतरित होते है अर्थात् हमारी सदभावनाओं को, हमारे ध्येय को, हमारी आवश्यकताओं को साकार रूप देने के लिए जो प्रकट हो जायें वे अवतार या भगवत्प्राप्त महापुरुष कहलाते हैं।

शरीर का जन्म होना और उसका जन्मदिन मनाना कोई बड़ी बात नहीं है बल्कि उसके जन्म का उद्देश्य पूर्ण कर लेना यह बहुत बड़ी बात है। जिन्होंने इस उद्देश्य को पूर्ण कर लिया है, ऐसे परब्रह्म परमात्मा में जगे हुए महापुरुषों का अवतरण-दिवस हमें भी जीवन के इस ऊँचे लक्ष्य की ओर प्रेरित करता है, इसलिए वह उत्सव मनाने का एक सुन्दर अवसर है और सबको मनाना चाहिए।

जहाँ में उसने बड़ी बात कर ली।

जिसने अपने आप से मुलाकात कर ली।।

धऱती पर लगभग छः सौ अस्सी करोड़ मनुष्य विद्यमान हैं और उनमें से लगभग पौने दो करोड़ लोगों का हररोज जन्मदिवस होता है। जन्मदिवस मनाने का लाभ तो तभी है जब जीवन में कुछ-न-कुछ उच्च संकल्प लिया जाय। मान लो, आपके जीवन के 30 वर्ष पूरे हो गये और अब आप 31वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। आप बीते हुए वर्षों का निरीक्षण करें कि मुझसे क्या-क्या गलत कार्य हुए हैं। जन्मदिवस के शुभ अवसर पर उन गलत कार्यों का दुबारा न करने का व नये शुभ कार्य करने का संकल्प लें। अगर आप ऐसा करते हैं तब ही जन्मदिवस मनाने का महत्व है।

वास्तव में ज्ञानदृष्टि से देखा जाय तो आपका जन्म कभी हुआ ही नहीं है।

न जायते म्रियते वा कदाचि-

न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।

अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो

न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।

‘यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता।’ (भगवदगीताः 2.20)

लोग बोलते हैं- “बापू जी ! आपको बधाई हो।”

“किस बात की बधाई ?”

“आपका जन्म दिवस है।”

यह सब हम नहीं चाहते क्योंकि हम जानते हैं कि जन्म तो शरीर का हुआ है, हमारा जन्म तो कभी होता ही नहीं।

जन्म दिवस पर हमें आपकी कोई भी चीज-वस्तु, रूपया-पैसा या बधाई नहीं चाहिए। हम तो केवल आपका मंगल चाहते हैं, कल्याण चाहते हैं। आपका मंगल किसमें है ?

आपको इस बात का अनुभव हो जाय कि संसार क्षणभंगुर है, परिस्थितियाँ आती जाती रहती हैं, शरीर जन्मते-मरते रहते हैं परंतु आत्मा तो अनादिकाल से अजर अमर है।

जन्मदिवस की बधाई हम नहीं लेते… फिर भी बधाई ले लेते हैं क्योंकि इसके निमित्त भी आप सत्संग में आ जाते हैं और स्वयं को शरीर से अलग चैतन्य, अमर आत्मा मानने का, सुनने का अवसर आपको मिल जाता है। इस बात की बधाई मैं आपको देता भी हूँ और लेता भी हूँ…..

यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम्।

असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते।।

‘जो मुझको अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्मरहित, अनादि और लोकों का महान ईश्वर, तत्त्व से जानता है, वह मनुष्य में ज्ञानवान पुरुष सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है।’

(भगवदगीताः 10.3)

वास्तव में संतों का अवतरण-दिवस मनाने का अर्थ पटाखे फोड़कर, मिठाई बाँटकर अपनी खुशी प्रकट कर देना मात्र नहीं है, अपितु उनके जीवन से प्रेरणा लेकर व उनके दिव्य गुणों को स्वीकार कर अपने जीवन में भी संतत्त्व प्रकट करना ही सच्चे अर्थों में उनका अवतरण-दिवस मनाना है।

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जन्मदिवस पर महामृत्युंजय मंत्रजप व हवन

जन्मदिवस के अवसर पर महामृत्युंजय मंत्र का जप करते हुए घी, दूध, शहद और दूर्वा घास के मिश्रण की आहूतियाँ डालते हुए हवन करना चाहिए। ऐसा करने से आपके जीवन में कितने भी दुःख, कठिनाइयाँ, मुसीबतें हों या आप ग्रहबाधा से पीड़ित हों, उन सभी का प्रभाव शांत हो जायेगा और आपके जीवन में नया उत्साह आने लगेगा। अथवा शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए ॐ नमः शिवाय का 108 बार जप करें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2010, पृष्ठ संख्या 2,3 अंक 207

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