इनको कभी न खोयें – पूज्य बापू जी

इनको कभी न खोयें – पूज्य बापू जी


पाँच चीजें कभी नहीं खोनी चाहिए।

अपना समय व्यर्थ न खोयें-

आपका समय इतना बहुमूल्य है कि समय देकर आप दुनिया की सब चीजें प्राप्त कर सकते हैं लेकिन दुनिया की सब चीजें न्योछावर करके भी आप बीते हुए आयुष्य का सौवाँ हिस्सा भी वापस नहीं पा सकते।

पचास-साठ साल, अस्सी साल देकर आपने जो कुछ भी एकत्र किया, वह सब का सब आप दे दें, फिर भी पचास-साठ घण्टे तो क्या पाँच मिनट भी आप अपना आयुष्य नहीं बढ़ा सकते। इसलिए अपने अमूल्य समय को व्यर्थ न गँवाये, उसका खूब-खूब सदुपयोग करेंक। समय को किसी के आँसू पोंछने में लगायें, ईश्वरप्राप्ति में लगायें।

जो लोग गपशप में, विषय-भोग में, मित्रों के साथ घूमने-फिरने में, कामनाओं की पूर्ति में, हास्य-विलास में समय को नष्ट कर देते हैं, वे लोग बड़ी गलती करते हैं। समय को बर्बाद करने वाले स्वयं बर्बाद हो जाता है। अतः अपने जीवन के क्षण-क्षण को सँभालकर ऊँचे-में-ऊँचे, अति ऊँचे काम में लगाना चाहिए। आप समय को जैसे हलके, मध्यम या उत्तम काम में खर्च करते हैं तो बदला भी वैसा ही मिलता है। परम श्रेष्ठ परमात्मा के लिए समय खर्च के लिए समय खर्च करते हैं तो बदले में आप परमातममय बन जाते हैं। समय के सदुपयोग की बलिहारी है !

स्वास्थ्य नहीं खोना चाहिए-

सुखी जीवन के लिए शरीर और मन की स्वस्थता जरूरी है। घर, गाँव, क्षेत्र और शुभाशुभ कर्म पुनः पुनः प्राप्त हो सकते हैं किंतु मनुष्य-शरीर पुनःपुनः प्राप्त नहीं हो सकता। इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को सदैव स्वास्थ्य की रक्षा करते हुए पुण्य का अर्जन करना चाहिए।

शरीर जितना नीरोग, स्वच्छ व पवित्र रहेगा, उतना ही आत्मा का प्रकाश इसमें अधिक प्रकाशित होगा। यदि दर्पण ही ठीक न होगा तो प्रतिबिम्ब कैसे दिखायी देगा ! यदि नींव ही कमजोर है तो इमारत कैसे बुलंद होगी ! शास्त्रों में आता हैः शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्। शरीर धर्म का साधन है। शरीर को स्वस्थ रखना जरूरी है। जो आदमी शरीर को स्वस्थ रखना जरूरी है। जो आदमी शरीर को स्वस्थ रखने की कला जानता है, वह बार-बार बीमारी का शिकार नहीं होता है। भगवान ने ‘गीता’ (6.17) में भी शरीर स्वस्थ रखने की बात कही हैः

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।

युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा।।

‘दुःखों का नाश करने वाला योग तो यथायोग्य आहार-विहार करने वाले का, कर्मों में यथायोग्य चेष्टा करने वाले का और यथायोग्य सोने तथा जागने वाले का ही सिद्ध होता है।’

शरीर एक मंदिर है जिसमें जीवात्मा का पूर्ण विकास हो सकता है। अतः हमें शरीर-स्वास्थ्य संबंधी कुछ हितकारी उपायों को जानकर अपने जीवन में उन्हें आत्मसात् करके स्वास्थ्य-लाभ लेना चाहिए, जिससे फिर स्वस्थ शरीर का उपयोग अशरीरी परमात्मा की प्राप्ति के निमित्त प्राणिमात्र की सेवा में हो सके और शास्त्र की यह बात चरितार्थ हो सकेः

सर्व भवन्तु सुखिनः सर्व सन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।।

‘सभी सुखी हो, सभी नीरोगी रहें, सभी सबका मंगल देखें और कोई दुःखी न हो।’

संयम नहीं खोना चाहिए।

जिसके जीवन में संयम नहीं है वह पशु से भी गया-बीता हो जाता है। इसलिए जीवन में संयम की बहुत आवश्यकता है। संयमहीन मानव किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो पाता और कभी प्रारब्ध से कुछ सफलता प्राप्त भी कर लेता है तो अहंकार में फूलकर अपने सर्वनाश को निमंत्रित करता है। जो मन संयम नहीं बरतता, वह किसी बड़े काम के लायक नहीं है। पशुओं के लिए चाबुक होता है परंतु मनुष्य को बुद्धि की लगाम है। सरिता भी दो किनारों से बँधी रहती है और सागर तक पहुँचती है। जिसने संयम, साधना करके अपने अंतःकरण के ज्ञान-स्वभाव की रक्षा की वह महान हो गया।

हे भारते के युवानो ! तुम भी उसी गौरव को हासिल कर सकते हो। यदि जीवन में संयम को अपना लो, सदाचार को अपना लो एवं समर्थ सदगुरु का सान्निध्य पा लो तो तुम भी महान-से-महान कार्य करने में सफल हो सकते हो। लगाओ छलाँग… कस लो कमर…. संयमी बनो… ब्रह्मचारी बनो और ‘युवाधन सुरक्षा अभियान’ के माध्यम से अपने भाई-बंधुओं, मित्रों, पड़ोसियों को तो क्या सम्पूर्ण राष्ट्रवासियों को संयम की महिमा समझाओ, जिससे वे भी संयम का सहारा लेकर अपनी महिमा में जगने में सफल हो सकें।

सम्मान देने का गुण नहीं खोना चाहिए।

छोटे-से-छोटा और बड़े-से-बड़ा व्यक्ति भी सम्मान चाहता है। सम्मान देने में रूपया-पैसा नहीं लगता है और सम्मान देते समय आपका हृदय भी पवित्र होता है। अगर आप किसी से निर्दोष प्यार करते हैं तो खुशामद से हजार गुना ज्यादा प्रभाव उस पर पड़ता है। अतः स्वयं मान पाने की इच्छा न रखो वरन् औरों को सम्मान दो। मान योग्य कर्म करो पर हृदय में मान की इच्छा न रखो, आप अमानी रहो, इससे आपका हृदयकमल खिलेगा, भगवान को पाने के योग्य होगा।

अपना अच्छा स्वभाव नहीं खोना चाहिए-

जो अच्छा कार्य, अच्छा चिंतन करता है उसको अच्छी चीजें, अच्छी संगति, अच्छे विचार, अच्छी आयु मिलती है। उसका स्वभाव अच्छा होने से मन भी अच्छा रहता है, स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है और अच्छे संस्कार लेकर वह सदगति को पा लेता है। जो बुरे कार्य करता है, बुरे विचार करता है और बुराई के पीछे लगा रहता है उसको वैसे ही विचार, वैसे ही मित्र भी मिल जाते हैं और  फिर उसकी गति भी ऐसी ही हो जाती है।

समय रहते अपने विवेक को जगाकर अपना ऐसा-वैसा स्वभाव बदलकर पशुता से मनुष्यता, मनुष्ता से देवत्व और देवत्व से देवेश्वरत्व (परमात्म-तत्त्व) की तरफ जाने से आपका तो मंगल होगा, आपके कुल-खानदान में जो पैदा होने वाले हैं उनका भी मंगल हो जायेगा। इसलिए भगवान ने कहा हैः स्वभावविजयः शौर्यम्।

आप अपने स्वभाव पर विजय पाओ।

बस ये पाँच चीजें हैं – समय, स्वास्थ्य, संयम, सम्मान और स्वभाव, इन पाँच चीजों की जो रक्षा करता है, वे उसी की रक्षा करके उसको महान बना देती हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2010, पृष्ठ संख्या 11, अंक 208

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