Monthly Archives: May 2010

विकारों से बचने हेतु


संकल्प-साधना

(भगवत्पाद स्वामी श्री श्री लीलाशाहजी महाराज)

विषय विकार साँप से विष से भी अधिक भयानक हैं, इन्हें छोटा नहीं समझना चाहिए। सैंकड़ों लिटर दूध में विष की एक बूँद डालोगे तो परिणाम क्या मिलेगा ? पूरा सैंकड़ों लिटर दूध व्यर्थ हो जायेगा।

साँप तो काटेगा तभी विष चढ़ पायेगा किंतु विषय-विकार का केवल चिंतन ही मन को भ्रष्ट कर देता है। अशुद्ध वचन सुनने से मन मलिन हो जाता है।

अतः किसी भी विकार को कम मत समझो। विकारों से सदैव सौ कोस दूर रहो। भ्रमर में कितनी शक्ति होती है कि वह लकड़ी को भी छेद देता है, परंतु बेचारा फूल की सुगंध पर मोहित होकर पराधीन हो के अपने को नष्ट कर देता है। हाथी स्पर्श के वशीभूत होकर स्वयं को गड्ढे में डाल देता है। मछली स्वाद के कारण काँटे में फँस जाती है। पतंगा रूप से वशीभूत होकर अपने को दीये पर जला देता है। इन सबमें सिर्फ एक-एक विषय का आकर्षण होता है फिर भी ऐसी दुर्गति को प्राप्त होते हैं, जबकि मनुष्य के पास तो पाँच इन्द्रियों के दोष हैं। यदि वह सावधान नहीं रहेगा तो तुम अनुमान लगा सकते हो कि उसका क्या हाल होगा !

अली पतंग मृग मीन गज, एक एक रस आँच।

तुलसी तिनकी कौन गति जिनको ब्यापे पाँच।।

अतः भैया मेरे ! सावधान रहें। जिस-जिस इन्द्रिय का आकर्षण है उस-उस आकर्षण से बचने का संकल्प करें। गहरा श्वास लें और प्रणव (ॐकार) का जप करें। मानसिक बल बढ़ाते जायें। जितनी बार हो सके बलपूर्वक उच्चारण करें, फिर उतनी ही देर मौन रहकर जप करें। ‘आज उस विकार में फिर में नहीं फँसूँगा या एक सप्ताह तक अथवा एक माह तक नहीं फँसूँगा….’ ऐसा संकल्प करें। फिर से गहरा श्वास लें और ‘हरि ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ…’ ऐसा उच्चारण करें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2010, पृष्ठ संख्या 19, अंक 209

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विद्या क्या है ? – पूज्य बापू जी


 

विद्या ददाति विनयम्। विद्या से विनय प्राप्त होता है। यदि विद्या पाकर भी अहंकार बना रहा तो ऐसी विद्या किस काम की ! ऐसी विद्या न तो स्वयं का कल्याण करती है न औरों के ही काम आती है।

एक समय जयपुर में राजा माधवसिंह का राज्य था। राज्य-सिंहासन पर बैठने से पूर्व माधवसिंह एक सामान्य जागीरदार का पुत्र था। बाल्यकाल से ही वह बड़ा ऊद्यमी और शैतान था। पढ़ने लिखने में उसकी रूचि न थी।

उसके बाल्यकाल के गुरू थे संसारचन्द्र। यदि माधवसिंह को कोई पाठ नहीं आता तो वे उसे कठोर सजा देते। सच्चे गुरू शिष्य का अज्ञान कैसे सहन कर लेते ! बड़ा होने पर बचपन का वही ऊधमी माधवसिंह जयपुर का राजा बना।

एक दिन माधवसिंह बड़ा दरबार लगाकर बैठा था, तब किसी ने राजदरबार में आकर संसारचन्द्र की शिकायत की, जबकि वे बिल्कुल निर्दोष थे।

माधवसिंह ने संसारचन्द्र को राजदरबार को उपस्थित करने का आदेश दिया। संसारचन्द्र निर्भयतापूर्वक राजदरबार में आये।

माधवसिंह बोलाः “गुरूजी ! आपको याद होगा कि किसी जमाने में आप मेरे गुरु थे और मैं आपका शिष्य।”

संसारचन्द्र याद करने लगे तो माधवसिंह ने पुनः कहाः “जब मुझे कोई पाठ नहीं आता था तब आप मुझे डंडे से मारते थे।”

संसारचन्द्र के प्राण कंठ तक आ गये। उन्होंने सोचा कि ‘अब माधवसिंह जरूर मुझे फाँसी पर लटकायेगा। इसकी क्रूरता तो प्रख्यात है।’ किन्तु तभी स्वस्थ होकर संसारचन्द्र ने कहाः “महाराज ! सत्ता का नशा मनुष्य को खत्म कर देता है। यदि मुझे पहले से ही इस बात का पता होता कि आप जयपुर नरेश बनने वाले हैं तो मैंने आपको उससे भी ज्यादा कठोर सजाएँ दी होतीं। आपको राजा की योग्यता दिलाने के लिए मैंने ज्यादा दंड दिया होता। यदि मैं ऐसा कर पाता तो जो आज आप विद्या को लज्जित कर रहे है, उसकी जगह उसे प्रकाशित करते।”

सारी सभा मन-ही-मन संसारचन्द्र की निर्भयता की प्रशंसा करने लगी। माधवसिंह को भी अपनी क्रूरता के लिए पश्चाताप होने लगा। उसने गुरु संसारचन्द्र से क्षमा माँगी और उन्हें सम्मानपूर्वक विदा किया।

जो विद्या अहं को जगाकर विकृति पैदा करे, वह विद्या ही नहीं है। विद्या तो मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारने का काम करती है और ऐसी विद्या प्राप्त होती है ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों के चरणों में।

धन्य हैं स्पष्टवक्ता संसारचन्द्र और धन्य हैं गुरु को हितैषी मानकार राजमद छोड़ने व अपनी चतुराई चूल्हे में डालने वाला माधवसिंह ! राजसत्ता का मद छोड़कर सदगुरू का आदर करने वाले छत्रपति शिवाजी की नाईं इस विवेकी ने भी अपनी उत्तम सूझबूझ का परिचय दिया।

क्या आप लोग भी अपने हितैषियों की कठोरता का सदुपयोग करेंगे ? या बचाव की बकवास करके अवहेलना करेंगे ?

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2010, पृष्ठ संख्या 9, अंक 209

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ठग सुक्खा सलाखों के पीछे


कहते हें- विनाशकाले विपरीतबुद्धिः।

जब गीदड़ की मौत आती है तब वह शहर की ओर भागता है। ऐसा ही हुआ ठग सुखाराम के साथ जिसने पूज्य बापू जी जैसे महान, पवित्र, ब्रह्मज्ञानी संत को बदनाम करने की साजिश की। शायद उसे यह पता नहीं था कि

संत सताये तीनों जायें, तेज, बल और वंश।

ऐसे ऐसे कई गये, रावण कौरव और कंस।।

इसी से उसकी बुद्धि विपरीत हो गई और उसने सीधा अतिरिक्त जिला कलेक्टर को ही ठगने की योजना बना ली। यह भी नहीं सोचा कि यदि मैं पकड़ा गया तो क्या होगा ?

ठगी व धोखाधड़ी के कई मामलों में लिप्त इस कुख्यात ठग सुक्खा उर्फ तांत्रिक सुखाराम उर्फ आस्ट्रेलियन बाबा उर्फ प्रीस्ट सुखविंदर सिंह उर्फ हरविंदर सिंह को आखिरकार पुलिस ने चार सौ बीसी के मामने में गिरफ्तार कर ही लिया व न्यायालय ने उसे रिमांड में भेज दिया है। ऐसे शातिर दिमागवाले अपराधी के बेबुनियाद आरोपों को उछालने वाले कुछ स्वार्थी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वाले असलियत सामने आने पर अब चुप्पी साध के बैठे हैं।

क्या था मामला ?

उदयपुर के अतिरिक्त जिला कलेक्टर (ए.डी.एम.) एवं राजस्थान प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी श्री माँगी लाल चौहान की माँ वैष्णों देवी तीर्थ स्थल में लापता हुई। उन्हें तलाश लाने का दावा करते हुए तांत्रिक सुक्खा डेढ़ लाख रूपये की ठगी कर गायब हो गया। पिछले दिनों तांत्रिक सुखाराम ने पूज्य बापू जी के बारे में कुछ टी.वी. चैनलों पर फिर से टिप्पणी की थी। वह प्रसारण अब चौहान ने देखा तो वे बोल उठेः अरे ! यह तो तान्त्रिक सुक्खा है, जिसने हमें ठगा है। उनके भाई राजेश चौहान द्वारा तुरंत सुक्खा के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवायी गयी।

शिकायत में लिखा गया है….

इन्दौर आ जाना, मैं तुम्हें तुम्हारी माँ के साक्षात् दर्शन करवा दूँगा। ऐसा झूठा आश्वासन देकर सुखाराम ने मुझे इन्दौर बुलाया। रात्रि करीब डेढ़ बजे एक पुलिस सब इंसपेक्टर एवं अन्य साथी मुझे एक मारूति कार में बिठाकर देवास श्मशान तक ले गये। वहाँ सुखाराम ने श्मशान ने जलते अँगारों पर शराब एवं अन्य सामग्री से तांत्रिक क्रिया की। वापसी में एक बहती नदी पर गाड़ी रोककर मुझे एक कपड़े में लपेटी हुई वस्तु दी और कहाः “ऐसा बोलकर फेंक देना कि जाओ कालू ! मेरी माँ का पता लगाकर आओ। मैंने ऐसा ही किया। वस्तु पानी में गिरते ही दो विस्फोट हुए। फिर सुक्खा ने कहा कि “मैं तुम्हारी माँ को ढूँढने वैष्णो देवी जाऊँगा, मुझे पैसा दो।” इस प्रकार कुल डेढ़ लाख रूपये कि ठगी करके वह गायब हो गया और मोबाईल भी बंद कर दिया। काफी प्रयास के बाद भी हमारा सुक्खा से सम्पर्क नहीं हो पाया।

कैसे दबोचा इस शातिर ठग को ?

उदयपुर पुलिस दल ने सादे वस्त्रों में जाकर सुक्खा के देवास (म.प्र.) स्थित अड्डे की छानबीन की। वहाँ पता चला कि पिछले छः महीनों से उसने अपना अड्डा बदल दिया है और वह इंदौर से 27 कि.मी. दूर अरनिया कुंड, खुड़ैल में रह रहा है। पुलिस दल वहाँ पहुँचा तो उसने उसके अड्डे में तांत्रिक गतिविधियाँ देखीं। 27 अप्रैल को वहाँ छापा मारकर ठग कुकर्मी सुक्खा को दबोचा गया। प्रतापनगर (उदयपुर) थाना प्रभारी ने बताया कि रिमांड अवधि में  सुखाराम से अन्य ठगी के मामलों के बारे में भी पता लगाया जायगा।

खुल रहे हैं सुक्खा के धोखाधड़ी के कई और मामले…..

हाल ही में गुरुद्वारा श्री गुरुनानक दरबार, जवाहरनगर, जयपुर (राज.) के तत्कालीन सचिव प्रीतपाल सिंह ने उनके बेटे व भतीजे को आस्ट्रेलिया में नौकरी दिलाने का झाँसा देकर 60 हजार रूपये ठगने के मामले में सुक्खा के खिलाफ पुलिस में एफ आई आर दर्ज करवायी है। एक अन्य मामले में सुक्खा ने रायकुण्डा, जि. इन्दौर की आदिवासी महिला सीताबाई के पुत्र की शराब की लत छुड़ाने के बहाने 20 हजार रूपये की ठगी और सुक्खा की साथी महिलाओं ने सीताबाई को गाली-गलौज, मारपीट की व हाथ-पैर तुड़वा देने की धमकियाँ दी। इसकी शिकायत इन्दौर पुलिस मं दर्ज करायी गयी है।

इतने वर्षों से लोगों से ठगी करने वाला यह शातिर आज तक पुलिस की गिरफ्त में नहीं आया था पर संत को सताने, उनकी बदनामी करने का फल प्रकृति ने इस ठग को दे ही दिया।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2010, पृष्ठ संख्या 4,5 अंक 209

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