अमृत प्रजापति हुआ बेनकाब, अपने ही मुँह से उगले राज

अमृत प्रजापति हुआ बेनकाब, अपने ही मुँह से उगले राज


कुप्रचारकों, निंदकों की खुल गयी पोल

शातिर दिमाग के कुछ स्वार्थी, उपद्रवी लोगों ने मीडिया में आश्रम के बारे में झूठी अफवाहें, बेसिर पैर की बातें, अनर्गल आरोप लगा के आश्रम को बदनाम व समाज को गुमराह करने में एड़ी-चोटी एक कर दी। नदी में दो बच्चों की आकस्मिक मृत्यु के संदर्भ में जुलाई 2008 से जाँच कर रहे न्यायाधीश श्री डी.के. त्रिवेदी आयोग के सामने भी उन्होंने बनावटी किस्से कहानियाँ बनाकर आश्रम पर मनगढंत आरोप लगाये। उनके बयानों की जाँच करने के लिए गुजरात उच्च न्यायालय के अधिवक्ता श्री बी.एम. गुप्ता ने उन्हें आयोग के समक्ष दुबारा बुलवाया और उनसे विशेष पूछताछ की। इसमें इन कुप्रचारकों ने खुद के द्वारा लगाये गये आरोपों की पोल स्वयं अपने ही मुँह से उगली तथा वास्तविकता को स्वीकार किया।

आश्रम से निकाले गये वैद्य अमृत गुलाबचंद प्रजापति ने मीडिया में आरोप लगाया था कि आश्रम में तंत्रविद्या होती है। 13.3.2010 को छः घंटे तक चली विशेष पूछताछ में इसने स्वीकार करते हुए कहाः “मुझे तांत्रिक विधि के बारे में कोई जानकारी नहीं है। तंत्रविद्या क्या है ? तंत्रविद्या किस प्रकार होती है ? इस बारे में मैंने कोई जाँच नहीं की है। मैं जितना समय आसारामजी के आश्रम में रहा हूँ, वहाँ मैंने तंत्रविद्या होते हुए देखा नहीं है। यह बात सत्य है कि मैंने जब से आश्रम छोड़ा तब से ही तांत्रिक विधि की बात कही है।

दीपेश व अभिषेक की मृत्यु की घटना के विषय में मुझे कोई भी व्यक्तिगत जानकारी नहीं है।”

8 अगस्त 2008 को एक फैक्स के माध्यम से पूज्य बापू जी को जान से मारने की धमकी दी गयी थी तथा बापू जी से 50 करोड़ रूपये की फिरौती माँगी गयी थी। एक सप्ताह में फिरौती ने देने पर पूज्य बापू जी व नारायण साँई को तंत्रविद्या के जमीनों के, लड़कियों के तथा अन्य फर्जी केसों में फँसाने की धमकी दी गयी थी। इस फैक्स के संदर्भ में अमृत वैद्य ने स्वीकार किया कि “इसमें जो मोबाईल नम्बर और लैंडलाइन नम्बर लिखे है, वे मेरे ही हैं। इस फैक्स में जो नाम लिखे हैं – दिनेश भागचंदानी-अहमदाबाद, शेखर-दिल्ली, महेन्द्र चावला-पानीपत, राजू चांडक-साबरमती, शकील अहमद तथा के.पटेल – इनको मैं पहचानता हूँ।”

इस फैक्स के अनुसार फिरौती न मिलने पर पूर्व-योजना के अनुसार अमृत प्रजापति ने सप्ताह भर में ही एक बुरकेवाली औरत को मीडिया के सामने पेश कर बापूजी पर झूठे आरोप लगवाने का नीच कर्म किया था। इस बारे में प्रश्न पूछे जाने पर उसने असलियत स्वीकार करते हुए कहाः “मैंने व मेरी पत्नी ने पत्रकारों को बापू के खिलाफ बयान दिये हैं। इस हेतु मैंने मेरी पत्नी को स्वयं अपने हाथों से बुरका पहनाया और पत्रकारों के सामने पेश किया। पत्रकारों के द्वारा उसका फोटो लिया गया। मेरी पत्नी दिल्ली की है, उसका नाम सरोज है।”

17.10.2008 को सूरत के रांदेर पुलिस थाने में भी उसने उपरोक्त बात स्वीकार की थी। जबकि बुरकेवाली को मीडिया के समक्ष पेश करते समय कपटमूर्ति अमृत ने झूठ बोला था कि “यह पंजाब से आयी है व मैं इसे नहीं जानता हूँ।”

नवम्बर 2008 में पूज्य बापू जी के बड़ौदा सत्संग-कार्यक्रम में विघ्न डालने की नाकाम कोशिश करने वाले सत्संगविरोधी अमृत  वैद्य ने पूछताछ में स्वीकार कियाः “यह बात सत्य है कि जब बड़ौदा में आसारामजी के सत्संग-कार्यक्रम की तारीख निश्चित हुई, तब मैंने उसका विरोध किया और इसी से पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया।”

अमृत ने यह भी कबूल किया कि 20.8.2008 को वह तथा राजू चांडक (राजू लम्बू) अहमदाबाद में बिजलीघर के पास एक गेस्ट हाऊस में काले कपड़े, काले जादूवाले तथाकथित ‘औधड़’ ठग सुखाराम व राजू चांडक से फोन पर अनेकों बार बातचीत भी हुई थी। राजू चांडक ने स्टिंग ऑपरेशन में स्वीकार किया था कि 40 हजार रूपये, शराब की बोतलें एवं कुकर्म के लिए बाजारू लड़कियाँ देकर बापू पर आरोप लगाने के लिए हमने ठग सुखाराम को खरीदा था। इन तीनों की गोपनीय गोष्ठी के पाँच दिन बाद ही 26.8.2008 को ठग सुखाराम ने पूज्य बापूजी पर आरोप लगाये थे।

अमृत वैद्य को आश्रम से निकालते समय (दिनांक 9.2.2005) की एक वीडियो सी.डी.जाँच आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी। सी.डी. में अमृत वैद्य ने उसके द्वारा आश्रम के नियमों को भंग किये जाने की बात स्वयं ही कबूल की थी। अमृत वैद्य ने साधुताई के कपड़े उतारकर पैंट-शर्ट स्वयं अपने हाथों से पहने थे। सी.डी. देखकर चकित हुए न्यायाधीश श्री डी.के. त्रिवेदी ने जब अमृत से पूछा कि “क्या यह तुम ही हो ?तो अमृत ने लज्जित होते हुए गर्दन झुकाकर जवाब दियाः “हाँ साहब ! यह मैं ही हूँ।” अंत में सच का सामना करते हुए मजबूर, दुष्कर्मी अमृत ने स्वीकार कियाः “यह सी.डी. मैंने अभी देखी। मुझे आश्रम से निकाल दिया गया था यह हकीकत है, सत्य है।”

उल्लेखनीय है कि बड़ौदा में पी.एच.डी. कर रहा एक नवयुवक हरिकृष्ण ठक्कर अप्रैल 2009 में इस अमृत वैद्य की लापरवाही व गलत इलाज से मर गया बेचारा ! अमृत वैद्य आखिर विष वैद्य साबित हुआ ! अपनी नेम प्लेट पर बिना प्रमाणपत्र के ही ‘एम.डी.’ लिखकर लोगों को ठगने वाले इस वैद्य ने पत्रकारों के समक्ष स्वयं माना कि उसने किसी भी विश्वविद्यालय से एम.डी. नहीं की है। अपने को चरक (प्रसिद्ध आयुर्वैदिक दवा कम्पनी) का मान्यताप्राप्त कन्सलटैन्ट बताकर लोगों से पैसे ऐंठने वाले अमृत के बारे में चरक कम्पनी के प्रबंधक ने पत्रकारों को बताया कि अमृत प्रजापति को हम बहुत पहले ही निकाल चुके हैं। हमारी कम्पनी का उससे किसी प्रकार का कोई भी संबंध नहीं है।

आखिर धूर्त अमृत वैद्य का सच सामने आ ही गया। ऐसे कुप्रचार सच्चाई सामने आने पर अब चौतरफा बरस रही लानत के पात्र बन रहे हैं। खबरें और भी हैं। अन्य षडयन्त्रकारियों के काले कारनामों की पोल खुलेगी आगामी अंकों में क्रमशः।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2010, पृष्ठ संख्या 6,7 अंक 209

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