एक भरोसा, एक आस, एक विश्वास…. – पूज्य बापू जी

एक भरोसा, एक आस, एक विश्वास…. – पूज्य बापू जी


सच्चिदानंदरूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे।

तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुमः।।

जो सत् है, चित् है, जो आनन्दस्वरूप है उस पूर्ण परमात्मा का भरोसा, उसी की आस, उसी का विश्वास …..! पूर्ण की आस पूर्ण कर देगी, पूर्ण का भरोसा पूर्णता में ला देगा, पूर्ण का विश्वास पूर्णता प्रदान कर देगा। नश्वर की आस, नश्वर का भरोसा, नश्वर का विश्वास नाश करता रहता है।

एक भरोसो एक बल, एक आस बिस्वास।

संत तुलसीदास जी कहते हैं कि एक भगवान का ही भरोसा, भगवान को पाने की ही आस और परम मंगलमय भगवान ही हमारे हितकारी हैं, ऐसा विश्वास हमें निर्दुःख, निश्चिंत, निर्भीक बना देता है। जगत का भरोसा, जगत की आस, जगत का विश्वास हमें जगत में उलझा देता है। भरोसा, आस और विश्वास मिटता नहीं, यह तो रहता है लेकिन जो इसे नश्वर से हटाकर शाश्वत में ला देता है वह धनभागी हो जाता है।

चहौं न सुगति, सुमति, संपति कछु,

रिधि-सिधि बिपुल बड़ाई।

यह बिनती रघुबीर गुसाई।

और आस-बिस्वास-भरोसो,

हरो जीव-जड़ताई।।

नश्वर चीजों की आस, नश्वर चीजों का भरोसा, नश्वर चीजों का विश्वास यह जीवात्मा की जड़ता है। हे प्रभु ! आप शाश्वत हैं, हमारा आत्मा होकर बैठे हैं। आप पर विश्वास, आपका भरोसा और आपकी आस छोड़कर जो वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति, संबंध, सम्पदा पहले नहीं थी, बाद में नहीं रहेगी और अब भी बदल रही है उन्हीं की आस, विश्वास और भरोसा करना यह हमारी जड़ता है। इस जड़ता को हर लो महाराज, बस।

नश्वर चीजों की आशा है – पेंशन आयेगी फिर आराम से भजन करूँगा। हे भैया ! आराम तो अपने राम में है। सुविधाजन्य भजन तेरे को खोखला बना देगा। पेंशन का आधार, मित्र का आधार, कुटिया का आधार, वातावरण का आधार तेरे को खोखला बना देगा।

मैंने भी यह गलती की थी। गुरुजी ने आज्ञा दी की ‘डीसा में जाकर रहो’। जहाँ कुटिया थी उसके आसपास में झोंपड़पट्टी थी। एक दिन भी रहने की इच्छा नहीं होती थी। कुछ दिन रहा, फिर गुरुजी को चिट्ठी लिखी कि ‘कृपा करके आज्ञा प्रदान करें कि मैं नर्मदा किनारे मेरे मित्र संत की गुफा है, वहाँ स्वतन्त्रता से रहके अनुष्ठान आदि आराम से कर  सकता हूँ, मैं वहाँ रहूँ ?”

गुरुजी ने उत्तर भेजा कि ‘वहें रहो।’ महीना-दो महीना खींचा, मन को सँभाल के फिर चिट्ठी लिखीः ‘हे गुरुदेव ! आपको न कहूँगा तो किसको कहूँगा। मेरे मन में आता है कि कुटिया को और बाउण्ड्री को ताला लगाकार चाबियाँ बाउण्ड्री में फेंककर नर्मदा किनारे भाग जाऊँ। वहाँ शांति है, एकांत है और तपस्या भूमि है। यहाँ झोंपड़पट्टी के बच्चे दिन-रात चिल्लाते रहते हैं, आपस में गालियाँ बोलते और दीवालों पर भी लिखते रहते हैं।’ गुरुजी ने कहाः ‘गालियाँ निकालते हैं तो वे तो आकाश में चली गई, रात को कुत्ते भौंकते हैं तो ॐ ॐ बोलते हैं – ऐसी भावना क्यों नहीं करते ! बैठे रहो वहीं !’

सात साल वहाँ निकाले और गुरुदेव ने ऐसा पक्का, मजबूत बना दिया कि हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि इतनी भीड़, बाहर की इतनी प्रवृत्ति के अंदर भी निर्लेप नारायण की आस, भरोसा, विश्वास पर मौज ही मौज, आनन्द ही आनन्द है।

हम अपनी मान्यता की आशा रखते हैं, अपनी चीज वस्तु, बुद्धिमत्ता का भरोसा रखते हैं लेकिन ये सब बेचारे, बेचारे ही हैं। एक आस, एक भरोसा, एक विश्वास परमात्मा को देखो।

संत तुलसीदास जी कहते हैं कि और देवियों की पूजा करो तो खुश होती हैं लेकिन आशा देवी का भरोसा छोड़ने से आप पूर्ण सुखी हो जाते हैं।

आशा देवी की पूजा छोड़ दो, आशा देवी का भरोसा छोड़ दो, आशा का विश्वास न करो, आशाओं के दास न बनो, आशा के राम बन जाओ बस !

आशा तो एक राम की, और आस निराश।

अगर मिले तो राम मिले, और मिला तो क्या मिला ! मिलकर बिछड़ जायेगा। यह जीव की जड़ता ही है कि आशा छोड़ नहीं सकता। कहीं न कहीं विश्वास तो रखना ही पड़ता है, किसी-न-किसी पर भरोसा रखना ही पड़ता है तो रखिये भरोसा प्रकृति से परे उस परमात्मा पर।

असंगो ह्यं पुरुषः।

आप उसी की आस, उसी का भरोसा और उसी में विश्वास करते हो तो जैसी आस, जैसा भरोसा, जैसा विश्वास रखते हैं और जैसा आपका भाव होता है, वह सत्-चित्-आनंदघन परमात्मा उसी रूप में आपके आगे लीला करके आपको संतुष्ट कर सकते हैं। परंतु आप अपना आग्रह छोड़िये की ‘ठाकुरजी ! आप ऐसे रूप में मिलो, वैसे रूप में मिलो……।’ नहीं, आप तो प्रार्थना करो। ‘महाराज ! तुम कैसे हो यह हम नहीं जानते लेकिन हम कैसे हैं तुम जानते हो। मम हृदय भवन प्रभु तोरा। मेरा हृदय तो तेरा भवन है मेरे परमेश्वर ! तू सत् है, तू चित् है, तू आनन्दस्वरूप है यह हम जानते नहीं हैं, शास्त्र और महापुरुषों के वचनों से मानते हैं।

जगत की ऐसी वस्तु मिलेगी, ऐसा निवास मिलेगा, ऐसा एकांत मिलेगा, ऐसी साधना मिलेगी तब मैं भजन करूँगा – यह मेरी आशा हर लो महाराज ! आप सर्वत्र हो, हर हाल में हो।’

स्वामी रामतीर्थ ने उस परमेश्वर की महिमा को कुछ जानते हुए गुनगुनायाः

कोई हाल मस्त, कोई माल मस्त,

कोई तूती मैना सूए में।

कोई खान मस्त, पहरान मस्त,

कोई राग रागिनी दोहे में।।

‘ऐसा हाल हो तब मैं सुखी होऊँगा’ – यह भ्रम निकाल दो। इतनी माल मिल्कियत होगी तब सुखी होंगे’ – यह आशा भटकाती है। इन तुच्छ अवस्थाओं की आशा, विश्वास और भरोसा करके हम फँस जाते हैं। इनके बिना भी हम अपने-आप में पूर्ण सुखी रह सकते हैं।

नानक जी कहते हैं-

पूरा प्रभु आराधिआ पूरा जा का नाउ।

नानक पूरा पाइआ पूरे के गुन गाउ।।

सुखमनी साहिब

कोई अवस्था अभी नहीं है, आयेगी तब हम सुखी होंगे तो आप नश्वर की आशा करते हैं, नश्वर पर भरोसा करते हैं, नश्वर पर विश्वास करते हैं।

एक बार दरिया में जोरों का तुफान उठा। पालवाली नाव तरंगो में उछलने लगी। समुद्री तुफान को देख यात्रियों के प्राण कंठ में आ गये। अब क्या करें, किसकी आशा करें, किसका भरोसा करें, किस पर विश्वास करें ? अब गये-अब गये, रोये चीखे चिल्लाये। यात्रियों में एक दूल्हा-दुल्हन भी थे। दुल्हन देख रही थी के मेरे पति आकाश की ओर शांत भाव से देख रहे हैं।

वह बोलीः “अजी ! ऐसी आँधी चल रही है, तुफान आ रहा है। अब क्या होगा, कोई पता नहीं। सब चीख रहे हैं, हे प्रभु ! बचाओ। और आप निश्चिंत हो !”

दूल्हे ने म्यान में तलवार निकाली और उसके गले पर रख दी। दुल्हन पति के सामने देखने लगी।

पति बोलाः तुझे डर नहीं लगता ? मौत तेरे सिर पर आ गयी है।”

“मैं क्यें डरूँगी ! तलवार है तो मेरी गर्दन पर लेकिन मेरे स्वामी के हाथ में है। यह तलवार मेरा क्या बिगाड़ेगी !”

“तेरा अपने स्वामी पर भरोसा है तो तू निश्चिंत है, तो मेरा भी मेरे स्वामी पर भरोसा है इसलिए मैं निश्चिंत हूँ। मेरे स्वामी पर मेरा विश्वास है कि जो करेंगे भले के लिए करेंगे। अगर यह नाव डुबाते हैं तो नया शरीर देना चाहेंगे, उसमें भी मेरा भला है और इसी जीवन में सत्संग-साधना में आगे बढ़ाना चाहेंगे तो नाव किनारे लगायेंगे। हमारे हाथ की बात तो है नहीं कि आँधी, तूफान को रोक दें लेकिन आशा, विश्वास और भरोसा उन्हीं का है, उनको जो भी अच्छा लगेगा ये करेंगे।”

एक भरोसो एक बल एक आस बिस्वास।

एक राम घन स्याम हित चातक तुलसीदास।।

तुलसी दोहावलीः 277

जैसे चातक की नजर एक ही जगह पर होती है, ऐसे ही हे प्रभ ! हमारी दृष्टि तुम पर रख दो। भगवान पर भरोसा करोगे तो क्या शरीर बीमार नहीं होगा, बूढा नहीं होगा, मरेगा नहीं ? अरे भाई ! जब शरीर पर, परिस्थितियों पर भरोसा करोगे तो जल्दी बूढ़ा होगा, जल्दी अशांत होगा, अकाल भी मर सकता है। भगवान पर भरोसा करोगे तब भी बूढ़ा होगा, मरेगा लेकिन भरोसा जिसका है देर-सवेर उससे मिलकर मुक्त हो जाओगे और भरोसा नश्वर पर है तो बार-बार नाश होते जाओगे। ईश्वर की आशा है तो उसे पाओगे व और कोई आशा है तो वहाँ भटकोगे। पतंगे का आस-विश्वास-भरोसा दीपज्योति के मजे पर है तो उसे क्या मिलता है ? परिणाम क्या आता है ? जल मरता है ।

मत कर रे गुमान, गुलाबी रंग उड़ी जावेलो।

इस बाहर के सौंदर्य पर, बाहर के धन पर, बाहर के प्रमाणपत्रों पर आस, विश्वास, भरोसा न रख, उस अंतर्यामी परमात्मा पर आस, विश्वास भरोसा कर। तू तो तर जायेगा, तू तो ‘उस’ मय हो जायेगा और तेरे सम्पर्क में आने वाले भी तर जायेंगे।

एक आस, एक भरोसा, एक विश्वास…. परमात्मा के ज्ञान में ही रहना और दूसरों को लगाना, आप प्रसन्न रहना और दूसरों को प्रसन्न करना – इस ईश्वरीय सिद्धान्त में रहे।

यह संसार तो ऐसा है, आप झूठ का मिथ्या आरोप का, कपट का आश्रय लेते हैं, उस पर विश्वास रखते हैं तो देर सवेर बेड़ा गर्क होता है परंतु सत्य का आश्रय लेते हैं, सत्यस्वरूप ईश्वर पर विश्वास रखते हैं, भरोसा रखते हैं तो आपकी नाव डोलेगी तो सही लेकिन डूबेगी नहीं। अगर वह डुबाकर भी पूरा वचन करना चाहता है तो आपको दिव्य जीवन देने की उसकी व्यवस्था होगी क्योंकि अपने उसका भरोसा किया है। उसकी आस, उस पर विश्वास किया है। एक आस, एक भरोसा, एक विश्वास बस !

यह मत सोचो कि क्या खायेंगे, क्या होगा ? जब उसके लिए चल पड़े तो फिर क्या है !

अखण्डानंद जी चल पड़े थे, उड़िया बाबा चल पड़े थे। जहाँ किसी व्यक्ति की संभावना नहीं, वहाँ भी कोई न कोई आकर दे जाता, खिला जाता है। मार्ग भूलते हैं तो कोई रास्ता दिखा जाता है। कोई डूबने लगता है और उसी की आस, उसी का भरोसा रखकर पुकारता है तो उस जल में कौन सी ऐसी सत्ता है जो हाथ पकड़कर किनारे पर देती है ?

कर्तुं शक्यं अकर्तुं शक्यं अन्यथा कर्तुं शक्यम्।

उस परमात्मा की आस, भरोसा और विश्वास परम हितकारी, परम मंगलमय है। इसका मतलब यह नहीं कि अपना पुरुषार्थ छोड़ दें, चलो बैठे रहें। नहीं, पुरुषार्थ करें किंतु अपने अहं पर भरोसा करके पुरुषार्थ न करें, शाश्वत आत्मा-परमात्मा का भरोसा…. नश्वर का भरोसा, नश्वर की आस, नश्वर का विश्वास नाश की तरफ ले जाता है। शाश्वत आत्मा-परमात्मा का भरोसा, उसी को पाने की आस और उसी पर विश्वास उसी से मिला देता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2010, पृष्ठ संख्या 2,3,4,8. अंक 210.

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