जीवन-संजीवनी – श्री परमहंस अवतारजी महाराज

जीवन-संजीवनी – श्री परमहंस अवतारजी महाराज


भोजन सत्त्वगुणी, हलका और कम खाओ तो श्वास सरलता से चलेंगे और भजन में सहयोग प्राप्त होगा।

शारीरिक रोग अथवा कष्ट तो गुरुमुख पर भी आते हैं लेकिन वह मालिक (ईश्वर) के नाम में इतना लवलीन रहता है कि उसे दुःखों का आभास ही नहीं होता।

गुरुमति का मूल्य है मनमति का त्याग। इसके बिना भक्तिमार्ग में सफलता प्राप्त करना असम्भव है।

किसी की भी निंदा न करो क्योंकि उससे तुम्हारी भी हानि होगी। तुम्हारे सब शुभ कर्मों का फल उसके पास चला जायेगा। जिसकी तुम निंदा कर रहे हो।

जिस सेवक का सदगुरु के चरणों में प्रेम है वह नाम का अभ्यास करे। नाम का अर्थ है ‘मैं’ नहीं हूँ। संतों का फरमान है कि भगवान को अहंकार नहीं सुहाता। जहाँ नाम होगा वहाँ अहंकार नहीं होगा। सेवक को अपनी सुरति नाम से ऐसी जोड़नी चाहिए कि केवल ‘तू-ही-तू’ रह जायि और ‘मैं-मैं’ भूल जाय, इसी को कहते हैं सच्चा प्रेम।

आत्मिक लाभ-हानि की पूर्ण जानकारी सदगुरु को होती है। जीव की प्रायः यही दशा होती है कि थोड़ा भजन या सेवा करके स्वयं को कुछ समझने लगता है, इसलिए हानि की ओर जाता है और समझता यही है कि मैं लाभ की ओर जा रहा हूँ। यदि हृदय में दीनता धारण करोगे तो सुरक्षित रहोगे।

जिसको प्रभुप्राप्ति की अभिलाषा हो, उसे अन्य सभी इच्छाएँ त्याग देनी चाहिए।

यदि स्वयं को प्रेम-रंग में रँगना चाहते हो तो पहले मोह-ममता की मैल को सत्संगरूपी सरोवर पर जाकर धोओ।

सुमिरन में महान शक्ति है। जैसे लोहा लोहे से काटा जाता है, उसी प्रकार नाम के सुमिरन से अन्य सभी मायावी विचारों को काट दो।

घण्टे दो घण्टे तीन घण्टे भजन नियम करके शेष समय सेवा, सत्संग, स्वाध्याय में अपने मन को लगाकर मालिक से दिल का तार जोड़े रखोगे तो आत्मिक शांति बनी रहेगी।

जिस मनरूपी शत्रु ने कई जन्मों ने तुम्हें धोखा दिया है, उस पर विश्वास न करो। गुरु शब्द पर दृढ़ विश्वास करके उस पर विजय प्राप्त कर लो।

जो बीती सो बीती, शेष श्वास मालिक को अर्पण करो।

शांति के अमृत से जीवन को मधुर बनाओ।

जैसे परीक्षा के दिन निकट आने पर बालक अधिक पढ़ाई करते हैं, वैसे ही सेवक को भी चाहिए कि जैसे-जैसे जीवन के दिन व्यतीत होते जायें, वैसे-वैसे अभ्यास के लिए समय और पुरुषार्थ बढ़ाता चले।

मन का सुमिरन करने का स्वभाव तो है ही, फिर क्यों न उससे लाभ उठाया जाय। जैसे चलती हुई रेल का काँटा बदलने से रेल एक ओर से दूसरी ओर चली जाती है, इसी प्रकार मन के सुमिरन का काँटा विषय-विकारों से बदल कर नाम-सुमिरन में लगाया जायेगा तो चौरासी से बचकर परम पद को प्राप्त करोगे।

पूर्ण एकाग्रता से सुमिरन करो तो अथाह शक्ति उपलब्ध होगी। सासांरिक दुःख आपके सम्मुख ठहर ही नहीं सकेंगे।

सदैव प्रसन्न रहने का प्रयत्न करो। प्रसन्नता सदा सत्पुरुषों का संगति से ही मिलती है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 11, अंक 213

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *