अत्याचारी की कीमत !

अत्याचारी की कीमत !


जिसके जीवन में धर्म नहीं है, परदुःखकातरता नहीं है, संतों-महापुरुषों का, माता-पिता का, सदगुरु का आदर-सत्कार करने का, उनकी आज्ञा में चलकर मानव-जन्म सफल बनाने का सदगुण नहीं है, सत्संग नहीं है, सत्शास्त्रों का पठन-मनन नहीं है तो उसके जीवन की कोई कीमत नहीं। अमूल्य मानव-जन्म पाकर यदि अपने जन्म-जन्मान्तरों के बंधन काटने वाला सत्संग नहीं सुना, स्वार्थ में, ‘मैं-मेरे’ की भावना में ही अटका रहा, केवल एक शरीर को ही सब कुछ मानकर उसीकी सुख-सुविधा के पीछे जीवन बर्बाद करता रहा तो वह मनुष्य के रूप में पशु माना गया है।

मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।

एक बार तैमूरलंग ने बहुत से गुलाम पकड़े। उन गुलामों को बेचने के लिए वह स्वयं मोल भाव करता था। सौदा तय होने पर बेच देता था। उसके द्वारा पकड़े हुए गुलामों में एक बार तुर्किस्तान के दार्शनिक अहमदी था। उसने उनसे पूछाः “बताइये, पास में खड़े इन दो गुलामों की कीमत क्या होगी ?”

अहमदी ने कहाः “ये समझदार मालूम होते हैं, इनकी कीमत चार हजार अशर्फी से कम नहीं हो सकती।”

तैमूरलंग ने फिर प्रश्न कियाः “अच्छा ! बताइये, मेरी कीमत क्या होगी ?”

कुछ सोचकर अहमदी बोलेः “दो अशर्फी।” तैमूरलंग गुस्से से तमतमा उठा। गरजकर बोलाः “मेरा अपमान ! इतने पैसों की तो केवल मेरी चादर ही है।”

दार्शनिक ने तैमूर के तमतमाते चेहरे को देखकर कहाः “यह कीमत मैंने तुम्हारी चादर देखकर ही बतायी है, तुम्हारे जैसे अत्याचारी की कीमत तो एक छदाम(पुराने पैसे का चौथाई भाग) भी नहीं हो सकती।”

दार्शनिक अहमदी के इन ओजपूर्ण वचनों में उसको कुछ सोचने के लिए मजबूर कर दिया और उसने उनको बन्धनमुक्त कर दिया।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 13, अंक 213

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