महात्मा गाँधी की सेवानिष्ठा

महात्मा गाँधी की सेवानिष्ठा


(महात्मा गाँधी जयंतीः 2 अक्तूबर)

(पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से)

महात्मा गाँधी के पास एक डॉक्टर सेवक था, जो कि विदेश होकर आया था। एक माई बड़ी बीमार थी, वह गाँधी जी के पास आयी। गाँधी जी ने उस डॉक्टर से कहाः “इस गरीब माई को नीम की पत्तियाँ खिलाओ और छाछ पिलाओ, ठीक हो जायेगी।”

डॉक्टर उस माई को इलाज बताकर आ गया। दो-चार घंटे के बाद गाँधी जी ने पूछाः “उस माई को नीम की पत्तियाँ दीं ?”

डॉक्टरः “जी ! ले ली होंगी उसने।”

गाँधी जीः “छाछ पिलायी ?”

डॉक्टरः “हाँ ! पी होगी।”

गाँधी जीः “तो तू डॉक्टर काहे का बना ! पी होगी। वह माई गरीब है, उसने पी कि नहीं पी तुमने जाँच की ? डॉक्टर केवल नब्ज देखकर, दवा लिखकर आ जाय ऐसा नहीं होता। जब तक मरीज ठीक नहीं हो जाता तब उसे क्या-क्या तकलीफें हैं, उन्हें दूर करना इसकी जिम्मेदारी डॉक्टर की होती है।”

गाँधी जी स्वयं उस गरीब महिला के पास गये और उससे पूछाः “माता जी ! तुमने छाछ पी ?”

माई बोलीः “बापू जी ! पैसे नहीं हैं। एक गिलास छाछ के लिए एक पैसा तो चाहिए न ! वह कहाँ से लाऊँ ?”

उस माई की ऐसी गरीब हालत देखकर गाँधी जी को बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने डॉक्टर को डाँटते हुए कहाः “तू गाँव से माँगकर या अपने पैसे से खरीदकर एक प्याली छाछ नहीं पिला सकता था !”

गाँधी जी ने उस माई को नीम की पत्ती खिलायी और छाछ पिलायी, जिससे वह एकदम ठीक हो गयी।

गरीबों के प्रति कितना प्रेम, अपनापन, दया व करूणा से भरा था गाँधी जी का हृदय ! तभी तो आज करोड़ों हृदय उन्हें महात्मा के रूप में याद करते हैं।

महात्मा गाँधी की सूझबूझ

एक दिन गाँधी जी रेलगाड़ी से यात्रा कर रहे थे। बाहर का दृश्य बड़ा मनोरम था। वे दरवाजे के पास खड़े होकर भारत की प्राकृतिक सुषमा का अवलोकन कर रहे थे। उसी समय उनके एक पैर की चप्पल रेलगाड़ी से नीचे गिर गयी। गाड़ी तीव्र गति से अपनी मंजिल की तरफ भाग रही थी। गाँधी जी ने बिना एक पल गँवाये दूसरे पैर की चप्पल भी नीचे फेंक दी। उनके साथी ने पूछाः “आपने दूसरे पैर की चप्पल क्यों फेंक दी ?”

गाँधी जी ने कहाः “वह मेरे किस काम की थी ? मैं तो उसे पहन नहीं सकता था और नीचे गिरी चप्पल को पाने वाला भी उसका उपयोग न कर पाता अब दोनों पैर की चप्पल पाने वाला ठीक से उपयोग तो कर सकता है !” प्रश्नकर्ता इस परोपकारिता भरी सूझबूझ से प्रभावित और प्रसन्न हुआ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 28, अंक 213

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