कैंसर की गांठ तो क्या, अज्ञान-ग्रन्थि से भी मुक्त करा रहे हैं गुरुवर

कैंसर की गांठ तो क्या, अज्ञान-ग्रन्थि से भी मुक्त करा रहे हैं गुरुवर


परम पूज्य गुरूदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !

मैं एक शिक्षिका हूँ और झारखण्ड में रहती हूँ। मेरा भाई रथीनपाल मैंगलोर (कर्नाटक) में एक एल्यूमीनियम की फैक्ट्री में कार्यरत है। वह पिछले तीन वर्षों से गले और जीभ के घाव से बहुत पीड़ित था। कुछ भी खाने पीने में उसे बहुत तकलीफ होती थी। काफी इलाज के बावजूद भी उसके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हो रहा था। डॉक्टरों ने बताया कि यह गले का कैंसर है। भाई ने रोते हुए मुझे बताया कि ‘मुझे कैंसर है और मेरा जीवन समाप्त हो रहा है। अब मेरे छोटे छोटे बच्चों का क्या होगा ?’ मैंने सुनते ही पूज्य बापू जी से प्रार्थना की और भाई के जीवन की रक्षा का भार उन्हें सौंप दिया।

मुझ पर गुरुवर की कृपा हुई और सुबह चार बजे पूज्य बापू जी ने मुझे सपने में आदेश दिया कि ‘भाई को सात दिन तक रोज सुबह ग्यारह तुलसी के पत्ते खिला दे, ठीक हो जायेगा।’ सुबह होते ही मैंने भाई को फोन करके यह प्रयोग बताया। उसने खूब श्रद्धापूर्वक बापू जी की इस आज्ञा का पालन किया। सात दिन में ही गले की जलन तथा दर्द दूर हो गया। यह प्रयोग उसने 21 दिन तक किया। अब वह एकदम ठीक है। घाव का नामोनिशान तक नहीं है। कैसे समर्थ, दयालु और उदार हैं मेरे बापू जी, जो सपने में भी मार्गदर्शन देकर भक्तों की रक्षा करते हैं। ऐसे सर्वसमर्थ, भक्तवत्सल, करूणा-वरूणालय सदगुरू परम पूज्य बापू जी के श्रीचरणों में बारम्बार प्रणाम !

श्रीमती कृष्णा साव इचड़ासोल

जि. पूर्वी सिंहभूम, झारखण्ड।

मो. 09431341381

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सन 2007 की बात है। मेरे गले में कैंसर की गाँठ हो गयी थी, जिससे खाने-पीने, बोलने में काफी तकलीफ होती थी। इलाज चालू करवाया। केस बहुत सीरियस था। डॉक्टर ने कहा कि ‘ऐसे केस में ऑपरेशन सम्भव नहीं है।’

तब मैं मोटेरा स्थित बापू जी के आश्रम में गया और अपने गले के कैंसर की बात पूज्य गुरुदेव को बतायी। गुरुदेव ने मुझे आरोग्य मंत्र दिया। मैंने खूब श्रद्धापूर्वक उस मंत्र का जप शुरू किया। ‘श्री आसारामायण के 108 पाठ किये और आश्रम के धन्वंतरी आरोग्य केन्द्र से दवा ली। उससे चमत्कारि लाभ हुआ। गले की गाँठ धीरे-धीरे मिट गयी। यह देखकर डॉक्टरों को भी आश्चर्य हुआ। अभी मैं पूज्य बापू जी की कृपा से पूर्ण स्वस्थ हूँ। पूज्य बापू जी की महिमा का वर्णन कैसे करूँ ? मैं तो बस इतना ही कहना चाहता हूँ कि गले की गाँठ तो क्या, वे हमें जन्मों-जन्मों से भटकाती आयी अज्ञान की गाँठ से भी मुक्त करा रहे हैं।

पूज्य गुरूदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि प्रणाम।

हरेन्द्र कुमार चुनीलाल, नरोड़ा

अहमदाबाद (गुजरात)।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 32, अंक 215

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