उद्यमः साहसं…..

उद्यमः साहसं…..


आदि से पग-पग पर परमात्म-सहायता और आनंद का अनुभव करो

धैर्यशील व्यक्ति का मस्तिष्क सदा शांत रहता है। उसकी बुद्धि सदा ठिकाने पर रहती है। उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम इन दैवी गुणों से युक्त व्यक्ति आपदाओं और विफलताओं से भय नहीं खाता। अपने को मजबूत बनाने के लिए वह अनेकों उपाय खोज निकालता है।

उपरोक्त छः गुण सात्विक गुण है। जब तक इनका सम्पादन न कर लिया जाय, तब तक लौकिक या पारमार्थिक सफलता नहीं मिल सकती। इन गुणों का सम्पादन कर लेने पर संकल्पशक्ति का उपार्जन किया जा सकता है। पग-पग पर कठिनाइयाँ आ उपस्थित होती हैं किंतु धैर्यपूर्वक उनका सामना कर उद्योग में लगे रहना चाहिए। महात्मा गाँधी की सफलता का मूल मंत्र यही था। यही कारण था कि वे अपने ध्येय में सफलता प्राप्त कर सके। वे कभी हताश नहीं होते थे। संसार के महापुरुष इन गुणों के बल पर ही अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर पाये। तुम्हें भी इन गुणों का सम्पादन करना होगा।

एकाग्रता (धारणा) के अभ्यास में सफलता प्राप्त करने के लिए धैर्य की महान आवश्यकता है। ॐकार का दीर्घ गुँजन और भगवान या सदगुरु के श्रीचित्र को एकटक निहारना आरोग्य, धैर्य और संकल्पशक्ति विकसित करने का अनुपम साधन है। विद्युत-कुचालक आसन अवश्य बिछायें। 10-15 मिनट से आरम्भ करके थोड़ा-थोड़ा बढ़ाते जायें। बाहर की व्यर्थ चेष्टाओं में, व्यर्थ चिंतन में दुर्लभ समय व्यर्थ न होने पाये। बहुत से व्यक्ति ऐसे हैं जो कुछ कठिनाइयों के आ जाने से काम छोड़ देते हैं, उनमें धैर्य और उद्योगशील स्वभाव की कमी है। ऐसा नहीं होना चाहिए। जरा-जरा बात में काम छोड़ देना उचित नहीं है।

चींटियाँ कितनी उद्यमी होती हैं ! चीनी और चावल के दाने भर-भर के अपने गोदामों में जमा कर रखती हैं। कितने धैर्य और उद्यम की आवश्यकता है एक-एक कर चावल के दानों और चीनी को ले जा के जमा करने के लिए !

मधुमक्खियाँ भी प्रत्येक फूल से शहद एकत्र कर छत्ते में जमा करती हैं, कितना धैर्य और उद्यमी स्वभाव चाहिए इसके लिए ! बड़ी-बड़ी नदियों पर बाँधों का निर्माण कराने वाले, पुल बाँधने वाले इंजीनियरों के धैर्य की प्रशंसा क्यों न की जाय ! कितना धैर्यशील और उद्यमपरायण होगा वह वैज्ञानिक जिसने हीरे के सही रूप (आण्विक संरचना) को पहचाना !

धैर्यशील व्यक्ति अपने क्रोध को सिर नहीं उठाने देता। अपने क्रोधी स्वभाव पर विजय पाने के लिए धैर्य एक समर्थ और सबल शस्त्र है। धैर्य के अभ्यास से व्यक्ति को आंतरिक शक्ति का अनुभव होता है। अपने दिन भर के कार्यों को धैर्यपूर्वक करने से आनंद, शांति और संतोष का अनुभव होता है। धीरे-धीरे इस गुण को अपने अंदर विकसित करो। इस गुण के विकास के लिए सदा उत्कण्ठित रहो। मन में सदा धैर्य की मानसिक मूर्ति बसी हुई रहनी चाहिए। मन में निरंतर विचार रहा तो समय आने पर धैर्य स्वयं ही प्रत्यक्ष होने लग जायेगा। नित्यप्रति प्रातःकाल उठते ही उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम इन दैवी गुणों का विकास करने का संकल्प करो। प्रतिदिन इस क्रम को दुहराते जाओगे तो असफलता के बावजदू भी एक-न-एक दिन सफल होओगे। पग-पग पर परमात्मसत्ता, चेतना तुम्हारे स्वभाव में सहज में प्रकट होने लगेगी। सच्चे महापुरुषों के सदगुण तुम्हारे अंदर खिलने लगेंगे। इन गुणों के सिवाय और चालबाजी करके सत्ता व सम्पदा हासिल कर भी ली तो पाकिस्तान के भूतपूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ और मिश्र के राष्ट्रपति मुबारक की गति जगजाहिर है। मृत्यु के बाद किन-किन योनियों की परेशानियाँ भुगतनी पड़ेंगी उसका अंदाज लगाया नहीं जा सकता। अतः शास्त्रों के द्वारा बताये गये उद्यम, साहस, धैर्य आदि सदगुणों को विकसित करो। पग-पग पर परमात्मसत्ता की स्फुरणा, सहायता और एकत्व के आनंद का एहसास करो। सच्ची उन्नति आत्मवेत्ता जानते हैं, उसको जानो और आकर्षणों से बचो।

किसी भी बात की शिकायत नहीं करनी चाहिए। मन को चिड़चिड़ेपन से मुक्त रखना चाहिए।  सोचो कि इन गुणों को कारण से क्या-क्या लाभ होंगे और तुम किन-किन व्यवसायों में इन गुणों का सहारा लोगे। इनका सहारा लेकर परम सफलता को वरण करने का संकल्प करो। ॐ उद्यम…. ॐ साहस…. ॐआरोग्य…

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2011, पृष्ठ संख्या 18, अंक 337

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