यस्य स्मरणमात्रेण…..

यस्य स्मरणमात्रेण…..


पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से

महाभारत में आता है कि

यस्य स्मरणमात्रेण जन्मसंसारबन्धनात्।

विमुच्यते नमस्तस्मै विष्णवे प्रभविष्णवे।।

‘जिसके स्मरणमात्र से मनुष्य आवागमनरूप बंधन से छूट जाता है, सबको उत्पन्न करने वाले उस परम प्रभु श्रीविष्णु को बार-बार नमस्कार है।

जिसकी स्मृतिमात्र से जीव के रोग, शोक, पाप, ताप, दुःख, दरिद्रता, दुर्गुण चले जाते हैं, जिसका सुमिरन करने मात्र से जीव संसारी बंधनों से मुक्त हो जाता है –

नमस्तस्मै नमस्तस्मै नमस्तस्मै नमो नमः।

उस परमात्मा को नमस्कार है।

दुनिया का ऐसा कोई आदमी, ऐसा कोई सेठ, कोई नेता देखा आपने की आप उसका सुमिरन करो और आपको सब बंधनों से, सब पापों से मुक्त कर दे ? ऐसा कोई पति देखा ?

घर में पति आया, बोलाः “भोजन लाओ।”

पत्नी बोलीः “मैं तो आपका सुमिरन ही करती रही।”

पति एक दिन, दो दिन, पाँच दिन देखेगा, फिर बोलेगाः ‘घर से भाग जा, जा के मायके में सुमिरन कर। मैं तो भूखा मर रहा हूँ और यह घर में काम नहीं करती, बस पति का सुमिरन कर रही है !’ पति नाराज हो जायेगा लेकिन यह जगत्पति तो सुमिरनमात्र से तुम्हें जगत के दुःखों से मुक्त कर देगा। जो परेशानियाँ मिली हैं उनको दूर करके परम सुख दे देगा और जगत की चीजें तुम्हारे पीछे दास की नाईं भागेंगी। राजस्थान में जहाँ-जहाँ सत्संग हुआ, सुमिरन हुआ वहाँ-वहाँ बरसात हो गयी। जहाँ-जहाँ सत्सगं होता है वहाँ-वहाँ सुख शांति हो जाती है।

एक डॉक्टर है, उसके हाथ के नीचे 15 डॉक्टर काम करते हैं। वह अपना क्लीनिक छोड़कर तीर्थयात्रा को गया। जब आया तो डॉक्टर लोग और उनके सहयोगी 40-45 लोगों का स्टाफ नाश्ता-वाश्ता कर रहा था।

वह बोलाः “क्या करते हो, क्लीनिक में कितना धंधा हुआ ?”

कर्मचारीः डॉक्टर साहब ! आप गये थे न बद्रीनाथ, तब से हम आपका सुमिरन करते हैं और कोई कामकाज नहीं करते। मरीज आते हैं तो उनको बोलते हैं, हम तो डॉक्टर के सुमिरन में रत हैं।”

क्या डॉक्टर उन कर्मचारियों को, डॉक्टरों को रखेगा ? नहीं । बोलेगाः “मूर्ख कहीं के ! मेरा क्लीनिक बिगाड़ दिया।”

सेठ है, उसका बड़ा कारोबार है। आपको सौंपकर सेठ कहीं बाहर चले गये। आप लोग कारोबार बंद करके सेठ का सुमिरन करते हैं। सेठ का कारोबार चौपट हो जाता है। 10-15 दिन के बाद सेठ आता है ऑफिस में, दुकान में। देखता है कि सब लोग काम-धंधा छोड़ के ऐसे ही बैठे हैं।

वह बोलता हैः “क्या करते हो ! क्या माल बना, क्या बिका ?”

आप कहते हैं- “सेठ जी ! हम तो आपकी स्मृति करके, आपको भोग लगा के खाते हैं, आपका सुमिरन करते हैं बस !”

तो सेठ क्या आपको पगार देगा, इनाम देगा अथवा आपका योगक्षेम वहन करेगा ? आपका सर्वप्रकार से मंगल करेगा कि सर्वप्रकार से आपको सजा देगा, जूते मारेगा ?

वह आपको दण्ड देगा।

लेकिन ये भगवान ऐसे ही कि आप केवल उनका सुमिरन करो। यस्य स्मरणमात्रेण….

सेठ का काम नहीं करो, सुमिरन करो तो जूते खाओ और भगवान का सुमिरन करो तो अमृतरस पियो, सद्भाव और सद्गति पाओ और भगवान को पा लो। क्योंकि भगवान का आत्मा और अपना आत्मा एक ही है, अमृतमय है। उसका साक्षात्कार जितना सरल है उतना संसार को सँभालना असम्भव है। कितने भी कोर्स करो, कितनी भी पति-पत्नियों की बात मानो फिर भी दुःखों से छूटना असम्भव है। कठिन नहीं ! असम्भव है और भगवान का सुमिरन करो, साक्षात्कार करो तो दुःख का आना सम्भव नहीं है। आये तो तुमको दबा पाना सम्भव नहीं, उसका टिकना सम्भव नहीं। ऐसे भगवान को छोड़कर ‘यह करूँ, वह करूँ, क्या करूँ….?’ नहीं, मुझे तो बस प्रभु चाहिए। भले सब भूल जाय पढ़ाई-लिखाई, सब देखा अनदेखा हो जाय, बस एक तुम्हारी स्मृति….!

श्रीकृष्ण साथ में हैं लेकिन अर्जुन का दुःख नहीं मिटता है। जब श्रीकृष्ण गुरु का पद सँभालते हैं, ज्ञान देते हैं तब अर्जुन को अपनी आत्मस्मृति आ जाती है। नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धवा…

शरीर को मैं मानना संसार को मेरा मानना यह मोह है और सब दुःखों का, व्याधियों का मूल है।

मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला।

तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला।।

यह मोह है न, फिर-फिर से संसार का शूल पैदा करता है, संसार का दुःख पैदा करता है।

भगवान की स्मृति, भगवान में विश्रांति और भगवत्तत्व का ज्ञान सारे दुःखों को, सारे कष्टों को, सारी मूर्खता को हर लेता है।

किसी सेठ-साहूकार, नेता, राजा का सुमिरन करो और काम न करो तो वह गाली देगा, जूते मारेगा, निकाल देगा, केस कर देगा कि ‘मुफ्त में पगार खा गया। हमारा काम नहीं किया।’ लेकिन भगवान के सुमिरनमात्र से दोष तो भगवान हरते ही हैं तथा योग और क्षेम का वहन भी करते हैं। हमारा बोझा उठाते हैं।

भगवान का सुमिरन करने मात्र से सद्गुण तो आते ही हैं, सद्बुद्धि भी आती है, सच्चरित्र भी आता है और सत् का संग करके भगवान के स्वरूप को भी व्यक्ति पा लेता है, जान लेता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2011, पृष्ठ संख्या 8,9 अंक 221

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