मंत्रदीक्षा क्यों ?

मंत्रदीक्षा क्यों ?


भगवान श्रीकृष्ण ने ‘श्रीमद् भगवद् गीता’ में कहा हैः यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि। ‘यज्ञों में जपयज्ञ मैं हूँ।’

भगवान श्री राम कहते हैं-

मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा।

पंचम भजन सो वेद प्रकासा।। (श्रीरामचरितमानस)

मेरे मंत्र का जप और मुझमें दृढ़ विश्वास – यह पाँचवीं भक्ति है।

इस प्रकार विभिन्न शास्त्रों में मंत्रजप की अद्भुत महिमा बतायी गयी है, परंतु यदि मंत्र किन्हीं ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु से दीक्षा में प्राप्त हो जाय तो उसका प्रभाव अनंत गुना होता है। संत कबीर जी कहते हैं-

सद्गुरु मिले अनंत फल, कहत कबीर विचार।

श्री सद्गुरुदेव की कृपा और शिष्य की श्रद्धा, इन दो पवित्र धाराओं के संगम का नाम ही ‘दीक्षा’ है। भगवान शिवजी ने पार्वती जी को आत्मज्ञानी महापुरुष वामदेव जी से दीक्षा दिलवायी थी। काली माता ने श्री रामकृष्ण जी को ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु तोतापुरी महाराज से दीक्षा लेने के लिए कहा था। भगवान विट्ठल ने नामदेव जी को आत्मवेत्ता सत्पुरुष विसोबा खेचर से दीक्षा लेने के लिए कहा था। भगवान श्री राम और श्री कृष्ण ने भी अवतार लेने पर सद्गुरु की शरण में जाकर मार्गदर्शन लिया था। इस प्रकार जीवन में ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु से दीक्षा पाने का बड़ा महत्त्व है।

मंत्रदीक्षा से दिव्य लाभ

पूज्य बाप जी से मंत्रदीक्षा लेने के बाद साधक के जीवन में अनेक प्रकार के लाभ होने लगते हैं। जिनमें 18 प्रकार के प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं-

  1. गुरुमंत्र के जप से बुराइयाँ कम होने लगती हैं। पापनाश व पुण्य-संचय होने लगता है।
  2. मन पर सुख-दुःख का प्रभाव पहले जैसा नहीं पड़ता।
  3. सांसारिक वासनाएँ कम होने लगती हैं।
  4. मन की चंचलता व छिछरापन मिटने लगता है।
  5. अंतःकरण में अंतर्यामी परमात्मा की प्रेरणा प्रकट होने लगती है।
  6. अभिमान गलता जाता है।
  7. बुद्धि में शुद्ध-सात्त्विक प्रकाश आने लगता है।
  8. अविवेक नष्ट होकर विवेक जागृत होता है।
  9. चित्त को समाधान, शांति मिलती है, भगवद् रस, अंतर्मुखता का रस और आनंद आने लगता है।
  10. आत्मा व ब्रह्म की एकता का ज्ञान प्रकाशित होता है कि मेरा आत्मा परमात्मा का अविभाज्य अंग है।
  11. हृदय में भगवत्प्रेम निखरने लगता है, भगवन्नाम, भगवत्कथा में प्रेम बढ़ने लगता है।
  12. परमानंद की प्राप्ति होने लगेगी और भगवान व भगवान का नाम एक है – ऐसा ज्ञान होने लगता है।

13, भगवन्नाम व सत्संग में प्रीति बढ़ती है।

  1. मंत्रदीक्षित साधक के चित्त में पहले की अपेक्षा हिलचालें कम होने लगती हैं और वह समत्वयोग में पहुँचने के काबिल बनता जाता है।
  2. साकार या निराकार जिसको भी मानेगा, उसी की प्रेरणा से उसके ज्ञान व आनंद के साथ और अधिक एकाकारता का एहसास करने लगेगा।
  3. दुःखालय संसार में, दुन्यावी चीजों में पहले जैसी आसक्ति नहीं रहेगी।
  4. मनोरथ पूर्ण होने लगते हैं।
  5. गुरुमंत्र परमात्मा का स्वरूप ही है। उसके जप से परमात्मा से संबंध जुड़ने लगता है। इसके अलावा गुरुमंत्र के जप से 15 दिव्य शक्तियाँ जीवन में प्रकट होने लगती हैं।

गुरुमंत्र के जप से उत्पन्न 15 शक्तियाँ

  1. भुवनपावनी शक्तिः नाम कमाई वाले संत जहाँ जाते हैं, जहाँ रहते हैं, यह भुवनपावनी शक्ति उस जगह को तीर्थ बना देती है।
  2. सर्वव्याधिनाशिनी शक्तिः सभी रोगों को मिटाने की शक्ति।
  3. सर्वदुःखहारिणी शक्तिः सभी दुःखों के प्रभाव को क्षीण करने की शक्ति।
  4. कलिकाल भुजंगभयनाशिनी शक्तिः कलियुग के दोषों को हरने की शक्ति।
  5. नरकोद्धारिणी शक्तिः नारकीय दुःखों या नारकीय योनियों का अंत करने वाली शक्ति।
  6. प्रारब्ध-विनाशिनी शक्तिः भाग्य के कुअंकों को मिटाने की शक्ति।
  7. सर्व अपराध-भंजनी शक्तिः सारे अपराधों के दुष्फल का नाश करने की शक्ति।
  8. कर्मसम्पूर्तिकारिणी शक्तिः कर्मों को सम्पन्न करने की शक्ति।
  9. सर्ववेदतीर्थादिक फलदायिनी शक्तिः सभी वेदों के पाठ व तीर्थयात्राओं का फल देने की शक्ति।
  10. सर्व अर्थदायिनी शक्तिः सभी शास्त्रों, विषयों का अर्थ व रहस्य प्रकट कर देने की शक्ति।
  11. जगत आनंददायिनी शक्तिः जगत को आनंदित करने की शक्ति।

12. अगति गतिदायिनी शक्तिः दुर्गति से बचाकर सद्गति कराने की शक्ति।

  1. मुक्तिप्रदायिनी शक्तिः इच्छित मुक्ति प्रदान करने की शक्ति।
  2. वैकुंठ लोकदायिनी शक्तिः भगवद्धाम प्राप्त कराने की शक्ति।
  3. भगवत्प्रीतिदायिनी शक्तिः भगवान की प्रीति प्रदान करने की शक्ति।

पूज्य बापू जी दीक्षा में ॐकार युक्त वैदिक मंत्र प्रदान करते हैं, जिससे ॐकार की 19 प्रकार की अन्य शक्तियाँ भी प्राप्त होती हैं। उनकी विस्तृत जानकारी आश्रम से प्रकाशित पुस्तक ‘भगवन्नाम जप महिमा’ में दी गयी है।

पूज्य बापू जी से मंत्रदीक्षा लेकर भगवन्नाम मंत्र का नियमित जप करने वाले भक्तों को उपरोक्त प्रकार के अनेक-अनेक लाभ होते हैं, जिसका पूरा वर्णन करना असम्भव है। रामु न सकहिं नाम गुन गाई।

विज्ञानी बोलते हैं ॐकार से जिगर, मस्तक और पेट के रोग मिटते हैं। इन भोगियों को पता ही क्या योगियों के अनुभव का !

इसलिए हे मानव ! उठ, जाग और पूज्य बापू जी जैसे ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु से मंत्रदीक्षा प्राप्त कर… नियमपूर्वक जप कर…. फिर देख, सफलता तेरी दासी बनने को तैयार हो जायेगी !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2011, पृष्ठ संख्या 27,28 अंक 222

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