आत्मानंद प्राप्ति का सरल उपाय

आत्मानंद प्राप्ति का सरल उपाय


श्री समर्थ रामदास स्वामी ने ब्रह्मज्ञानी श्री गुरुदेव की महिमा को बड़े ही रहस्यपूर्ण ढंग से गाया हैः

‘हे सद्गुरुदेव ! आप सुख के सागर हैं, आनंदस्वरूप हैं, आपमें दुःख का लेश भी नहीं है और आप निर्मल होकर एक का भी जहाँ अंत हो  जाता है, ऐसे केवल स्वरूपानुभवरूप है। आप इस कलियुगरूपी गंदगी का दहन करने (कलियुग के दोषों को जलाने) में समर्थ हैं और स्वयं अगाध हैं। आप कर्तुं अकर्तुं अन्यथा कर्तुं समर्थः… करने में, न करने में तथा अन्यथा करने में समर्थ स्वामी हैं। आपकी महिमा का अंत ब्रह्मादि देवों को भी प्राप्त नहीं होता, ऐसे आप अनंतस्वरूप हैं परंतु इतने अगाध, अपार अनंत होते हुए भी हम जीवों पर कृपा करने के लिए प्रत्यक्ष नर रूप धारण करके नरहरि रूप से सुलभ भगवान की जय-जयकार हो।’

जय देव जय देव जय करूणाकरा।

आरती ओवाळूं सद्गुरु माहेरा।।

‘हे करुणा के सागर ! जीव मात्र पर दया करने वाले सद्गुरुदेव ! आपकी जय हो, जय हो। मैं आपकी आरती उतारता हूँ क्योंकि आप मेरे पीहर हैं।’

‘हे सद्गुरुदेव ! आप हमारी माँ हैं। कन्या को ससुराल के ताप से शांति पाने के लिए पीहर (अर्थात् माँ के घर, माँ की गोद) में विश्राम मिलता है, परंतु वहाँ भी माँ का ममता-मोह रहता है, किंतु आपकी गोद में माया-मोहरहित शुद्ध एकात्म आत्मानंदरूपी विश्रांति प्राप्त होती है। आप मोहरहित माँ हैं और आपके शब्द में इतनी शक्ति है कि उसका श्रवण करने से ही ब्रह्मात्मबोध की प्राप्ति हो जाती है। फिर बोलना वृथा हो जाता है, बंद हो जाता है। गूँगे के गुड़ की तरह रसास्वादन लेते हुए यह जीव मस्त हो जाता है। इस प्रकार सद्गुरुदेव के कृपा-प्रसाद से ही आत्मानंदप्राप्ति का सहज-सरल उपाय प्राप्त हो जाता है। श्री समर्थ रामदास महाराज कहते हैं कि इसमें केवल शिष्य का सद्भाव ही फलीभूत होता है और श्री गुरुदेव पर पूरी श्रद्धा एवं प्रेम से परब्रह्म भाव से विश्वा करने से ही जीव परब्रह्म की प्राप्ति का आनंद प्राप्त कर लेता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2011, पृष्ठ संख्या 19 अंक 223

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