तीन मुक्कों की सीख

तीन मुक्कों की सीख


पूज्य बापू जी के सद्गुरुदेव स्वामी श्री लीलाशाह जी महाराज बच्चों के चरित्र पर बहुत ध्यान देते थे तथा उन्हें प्यार भी करते थे। कहते थे कि ‘बालक सुधरे तो मानो भारत सुधरा। बच्चे ही आगे चलकर देश का नाम रोशन करते हैं।’

कोई भी बच्चा उनका दर्शन करने जाता था तो उससे पूछते थेः “कौन सी कक्षा में पढ़ते हो ? स्वास्थ्य की व धार्मिक पुस्तकें पढ़ते हो ?”

वे उन्हें पढ़ने के लिए अच्छी-अच्छी पुस्तकों के नाम बताते थे तथा उनके पास जो पुस्तकें होती थीं, उनमें से कुछ उन्हें अभ्यास करने के लिए देते थे। उन्हें यह समझाते थे कि ‘सत्शास्त्रों के पढ़ने से, सत्संग करने से ही मन विकसित होता है। निर्मल बुद्धि ही विकास की ओर ले जाती है। जैसा-जैसा इन्सान होगा, उसके आसपास की दुनिया भी वैसी ही बनेगी। विचार को तुच्छ न समझें, विचार के आधार पर ही दुनिया चलती है। मन में पवित्र विचार होंगे तो कर्म भी वैसे ही होंगे। सदाचार के रास्ते पर चलने का सबसे अच्छा काम तरीका है मन को बुरी बातें सोचने से रोकना।’

आप बच्चों को हमेशा यही निर्देश देते थे कि ‘सदाचारी बनो, मन के भीतर कभी भी अशुद्ध विचार आने नहीं दो। जबान को अपशब्द कहने से रोको। हाथ-पैरों को बुरे काम करने से रोको। यदि इन तीनों पर आपका नियंत्रण होगा तो बड़े होने पर अपना तथा बड़ों वे देश का नाम रोशन करोगे। दूसरों की भलाई सोचने में अपनी भलाई समझो। विचारों को समझो सूक्ष्म वस्तु व वचनों को समझो स्थूल सूरत। विचारों को प्रकट करने का जबान के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। आपका वचन आपके विचारों का दर्पण है, उसमें आपके विचारों की तस्वीर है। मीठा बोलने से दूसरों का दिल जीत सकते हैं। मीठी व हमदर्दीभरी बातें सुनने से दुःखियों का दुःख दूर होता है। यदि कोई हमें गाली आदि देता है तो मन कितना उदास हो जाता है ! अतः भूलकर भी किसी को अपशब्द मत बोलो।’

एक बार की बात है। किसी विधवा माई ने अपने बच्चे के बारे में शिकायत की कि “स्वामी जी ! यह बालक जो आप देख रहे हैं, 10वीं में पढ़ता है, मगर पढ़ने में बहुत कमजोर है। अभी अर्धवार्षिक परीक्षा में अनुत्तीर्ण हुआ है। इसे प्राचार्य ने सख्त हिदायत दी है कि यदि मेहनत नहीं करोगे तो तुम्हें बोर्ड की वार्षिक परीक्षा में बैठने नहीं दिया जायेगा। पढ़ाई में यह जितना कमजोर है, मारधाड़ में उतना ही तेज ! इसके पिता नहीं हैं। यह मेरा कहना नहीं मानता, मुझसे लड़ता रहता है। आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है, इसलिए यह ट्यूशन भी नहीं पढ़ सकता है। इस पर दयादृष्टि करें, जिससे इसका जीवन सँवर जाये।”

स्वामी जी ने बालक को बड़े प्रेम से अपने पास बिठाया। उसे अच्छी प्रकार से समझाकर गलतियों का एहसास करवाया तथा निर्दश दिये कि “हर रोज़ प्रातःकाल उठकर माता के चरणस्पर्श कर उनका आशीर्वाद लेना। साथ ही माता को कहना कि वह तुम्हें रोज तीन मुक्के धीरे से लगाया करे। आओ, मैं तुम्हें लगाकर दिखाऊँ।”

स्वामी जी ने धीरे से एक मुक्का लगाकर उससे कहाः “जब तुम्हें पहला मुक्का लगे तो ऐसा समझना कि मुझे माता शारीरिक शक्ति प्रदान कर रही है तथा मेरा बल व बुद्धि बढ़ रहे हैं। दूसरा मुक्का लगने पर समझना कि मुझमें मानसिक शक्ति प्रवेश कर रही है तथा मेरा मन शुद्ध व बुद्धि निर्मल हो रही है। तीसरा मुक्का लगने पर समझना कि मुझमें आत्मिक शक्ति का प्रकाश हो रहा है तथा ज्ञान की धारा मुझमें आ रही है। तुम स्वयं को साक्षी, आत्मिक स्वरूप समझकर हमेशा खुश रहो तो तुम्हारा उद्धार हो जायेगा।”

वह स्वामी जी की आज्ञानुसार प्रातःकाल अपनी माँ के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लेने लगा। माता उसे तीन मुक्के लगाती। जब परीक्षा का परिणाम आया तो सभी आश्चर्यचकित रह गये। हमेशा असफल रहने वाला यह बालक संत की युक्ति और माँ के आशीर्वाद से इस बार अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो गया था।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2011, पृष्ठ संख्या 6,7 अंक 225

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