साक्षात्कार करना तो है लेकिन…

साक्षात्कार करना तो है लेकिन…


श्रीमद् आद्य शंकराचार्य जी कहते हैं-

दुर्लभं त्रयमेवैतद्देवानुग्रहहेतुकम्।

मनुष्यतं मुमुक्षुत्वं महापुरुषसंश्रयः।।

‘भगवत्कृपा ही जिनकी प्राप्ति का कारण है वे मनुष्यत्व, मुमुक्षुत्व (मुक्त होने की इच्छा) और महान पुरुषों का संश्रय (सान्निध्य) – ये तीनों दुर्लभ हैं।’ (विवेक चूड़ामणिः3)

एक व्यक्ति ने किसी आध्यात्मिक ग्रंथ में पढ़ा कि मनुष्य जीवन ईश्वर-साक्षात्कार करने के लिए ही होता है। अगर वह नहीं किया तो जीवन निष्फल हो जाता है। उसने अपनी तरफ से बहुत प्रयास किया, तरह-तरह की साधनाएँ कीं, तीर्थों में भटका परंतु कुछ रास्ता न मिला। भगवान के लिए कोई सच्चाई से चलता है तो वे उसे अपने प्यारे संतों की संगति देते है। एक बार मार्ग में उसने देखा कि किन्ही महात्मा का सत्संग हो रहा है। उसने सोचा, ‘हो सकता है यहाँ कोई उपाय मिल जाय।’

जब द्रवै दीनदयालु राघव, साधु संगति पाइये। (विनयपत्रिकाः 136.10)

महात्मा का सत्संग सुनने के बाद तो उसके हृदय में ईश्वर का साक्षात्कार करने की धुन सवार हो गयी। उसने सोचा, ‘अब तो मुझे इन्हीं की शरण में रहना है।’ सत्संग पूरा होने के बाद सब चले गये पर वह देर रात तक वहीं बैठा रहा। महात्मा जी ने उसे अपने पास बुलाया और पूछाः “बेटा ! क्या चाहते हो ?”

“स्वामी जी ! मैं ईश्वर का साक्षात्कार करना चाहता हूँ। क्या मुझे वह हो सकता है ?”

“क्यों नहीं, कल सुबह आना। हम लोग सामने के पहाड़ की चोटी पर चलेंगे। वहाँ मैं तुम्हें उसके रहस्य की प्रत्यक्ष अनुभूति कराऊँगा।”

अगले दिन वह एकदम सुबह-सुबह महात्मा के पास पहुँचा। संत बोलेः “तुम इस गठरी को सिर पर रख लो और मेरे साथ चलो।”

वह बड़ी उमंग से चल पड़ा। पहाड़ की चोटी काफी ऊँची थी। थोड़ी देर बाद वह बोलाः “स्वामी जी ! मैं थक गया हूँ, चला नहीं जाता।”

स्वामी जी ने सहज भाव से कहाः “कोई बात नहीं, गठरी में पाँच पत्थर हैं। एक निकालकर फेंक दो। इससे गठरी कुछ हलकी हो जायेगी।”

उसने एक पत्थर फेंक दिया। कुछ ऊपर चढ़ने पर फिर उसे थकान होने लगी। महात्मा ने कहाः “एक पत्थर और कम कर दो।”

इस प्रकार वह ज्यों-ज्यों ऊपर की ओर बढ़ता जाता, त्यों-त्यों कम वज़न भी भारी लगने लगता। महात्मा जी ने एक-एक करके सभी पत्थर फिंकवा दिये। फिर तो केवल कपड़ा बचा। उसे कंधे पर डालकर वह बड़ी सरलता से चोटी पर पहुँच गया। उसने महात्मा जी से कहाः”स्वामी जी ! हम चोटी पर तो आ गये, अब ईश्वर साक्षात्कार कराइये।”

स्वामी जी मुस्कराते हुए बोलेः “बेटे ! जब पाँच पत्थर की गठरी उठाकर तू पहाड़ पर नहीं चढ़ सका तो काम, क्रोध, लोभ, मोह और मद की चट्टानें सिर पर रखकर ईश्वर का साक्षात्कार कैसे कर सकता है !”

उसको अपनी भूल का एहसास हुआ। उसने विनम्रता से प्रार्थना करते हुए कहाः “स्वामी जी ! अब आप ही मेरा मार्गदर्शन करने की कृपा करें।”

महात्मा ने उसे दीक्षा दी, साधना की पद्धति बतायी और निःस्वार्थ भाव से सेवा करने को कहा। फिर तो वह उन महात्मा की शरण में रहकर उनके बताये अनुसार साधना करके अपने महान उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल हो गया।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2011, पृष्ठ संख्या 10 अंक 225

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