आत्मनिर्भर बनें

आत्मनिर्भर बनें


हाथी शेर अपेक्षा अधिक बलवान है । उसका शरीर बड़ा और भारी है फिर भी अकेला शेर दर्जनों हाथियों को मारने-भगाने में समर्थ होता है । शेर की ताकत का रहस्य क्या है ?

हाथी अपने शरीर पर भरोसा करता है, जबकि शेर अपनी शक्ति (प्राणबल) पर भरोसा करता है । हाथी झुण्ड बनाकर चलते हैं और जब विश्राम करते हैं तो एक हाथी को पहरेदार के रूप में नियुक्त करते हैं । उन्हें सदा यह डर लगा रहता कि कहीं शेर उन पर आक्रमण न कर दे ।

यदि हाथी को अपनी ताकत पर भरोसा हो तो वह कई शेरों को सूँड से उठाकर पटक सकता है, अपने पैरों से कुचल सकता है । परंतु बेचारे हाथी को अपने पर विश्वास नहीं होता, इसलिए उसमें सदा साहस का अभाव बना रहता है ।

स्वयं को नीच, अधम, दुःखी, पापी या अभागा नहीं मानना चाहिए । आप अपनी आंतरिक शक्ति पर पूर्ण विश्वास करें । स्वामी रामतीर्थ कहते हैं- ‘यदि कोई मुझसे एक शब्द में तत्त्वज्ञान पूछे तो मैं कहूँगा कि आत्मनिर्भरता या आत्मबोध । यह सत्य है, सर्वथा सत्य है कि जब आप स्वयं अपनी सहायता करते हैं तभी परमात्मा आपकी सहायता करता है ।’ दैव आपकी सहायता करने के लिए बाध्य है, लेकिन तब जब आप स्वयं पर निर्भर रहें । आप सभी सब कुछ पा सकते हैं । आपके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है ।

एक बार दो सगे भाई मुकद्दमेबाजी के कारण न्यायाधीश के सम्मुख आये । उनमें से एक बहुत धनवान था जबकि दूसरा कंगाल । न्यायाधीश ने धनवान से प्रश्न कियाः “तुम इतने धनी हो तो तुम्हारा भाई निर्धन कैसे ?”

धनवान ने कहाः “पाँच वर्ष पहले हमें एक समान पैतृक सम्पत्ति प्राप्त हुई थी । मेरा भाई स्वयं को धनवान मानकर सुस्त हो गया । उसने सभी कार्य अपने नौकरों के सुपुर्द कर दिये । उसे जब भी कोई काम करना होता तो वह अपने नौकरों को बुलाकर कहताः ‘जाओ, यह काम करो, जाओ वह काम करो ।’ इस प्रकार वह सुख-आराम, विषय-विकारों में समय गँवाने लगा । इसके विपरीत मैं किसी सेवक पर निर्भर नहीं हुआ । मैं अपने काम अधिक-से-अधिक स्वयं करता रहा । यदि सेवक के सहयोग की आवश्यकता होती तो कहता थाः ‘आओ-आओ ! यह काम करने में मेरी मदद करो ।’

भाई सदा जाओ-जाओ कहता रहा और मैं आओ-आओ कहता रहा । इसलिए मेरे पास नौकर चाकर, इष्ट मित्र व धन सम्पत्ति आती गयी, जबकि मेरा भाई अपना सब गँवा बैठा ।”

जब हम दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं तब कहते हैं- ‘जाओ-जाओ’ । इस प्रकार प्रत्येक वस्तु दूर चली जाती है व जब आत्मनिर्भर बनते हैं, तब संसार के सभी पदार्थ हमारी ओर खिंचे चले आते हैं ।

यदि आप अपने को निर्धन, तुच्छ जीव मानते हैं तो आप वही हो जायेंगे । इसके विपरीत यदि आप आत्मसम्मान की भावना से परिपूर्ण हैं तथा आत्मनिर्भर हैं तो आपको सम्मान, स्नेह, सफलता प्राप्त होती है । स्वयं को दीन-हीन, दुर्बल, भाग्यहीन कभी न समझें । आप जैसा सोचेंगे वैसे ही बन जायेंगे । सदगुरु-कृपा से स्वयं को नित्यमुक्त अविनाशी आत्मा जानेंगे तो मुक्त हो जायेंगे ।

जब तक आप बाह्य शक्तियों पर निर्भर रहेंगे, परावलम्बी रहेंगे तब तक आपके कार्यों का परिणाम असफलता ही रहेगा ।

सत्य में सदैव विश्वास रखें । जब आप हृदय में विराजमान ईश्वर पर भरोसा करते हुए शरीर को काम में नियुक्त कर देंगे तो आपकी सफलता निश्चित हो जायेगी । स्वयं पर विश्वास करें, स्वयं पर निर्भर होने की आदत डालें । फिर देखिये, सफलता कैसे नहीं मिलती !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2011, पृष्ठ संख्या 27, 30 अंक 226

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