अनेक रोगों का मूल कारणः विरूद्ध आहार

अनेक रोगों का मूल कारणः विरूद्ध आहार


जो पदार्थ रस-रक्तादि धातुओं के विरूद्ध गुण-धर्म वाले व वात-पित-कफ इन त्रिदोषों को प्रकुपित करने वाले हैं, उनके सेवन से रोगों की उत्पत्ति होती है। इन पदार्थों में कुछ परस्पर गुणविरुद्ध, कुछ संयोगविरूद्ध, कुछ संस्कारविरूद्ध और कुछ देश, काल, मात्रा स्वभाव आदि से विरूद्ध होते हैं। जैसे – दूध के साथ मूँग, उड़द, चना आदि सभी दालें, सभी प्रकार के खट्टे व मीठे फल, गाजर, शकरकंद, आलु, मूली जैसे कंदमूल, तेल, गुड़, शहद, दही, नारियल, लहसुन, कमलनाल, सभी नमकयुक्त व अम्लीय पदार्थ संयोगविरुद्ध हैं। दूध व इनका सेवन एक साथ नहीं करना चाहिए। इनके बीच कम-से-कम 2 घंटे का अंतर अवश्य रखें। ऐसे ही दही के साथ उड़द, गुड़, काली मिर्च, केला व शहद, शहद के साथ गुड़, घी के साथ तेल नहीं खाना चाहिए।

शहद, घी, तेल व पानी इन चार द्रव्यों में से दो अथवा तीन द्रव्यों को समभाग मिलाकर खाना हानिकारक है। गर्म व ठंडे पदार्थों को एक साथ खाने से जठराग्नि व पाचनक्रिया मंद हो जाती है। दही व शहद को गर्म करने से वे विकृत बन जाते हैं।

दूध को विकृत कर बनाया गया छेना, पनीर आदि व खमीरीयुक्त पदार्थ (जैसे – डोसा, इडली, खमण) स्वभाव से ही विरुद्ध हैं अर्थात् इनके सेवन से लाभ की जगह हानि ही होती है। रासायनिक खाद व इंजेक्शन द्वारा उगाये गये अनाज व सब्जियाँ तथा रसायनों द्वारा पकाये गये फल भी स्वभावविरुद्ध हैं। हेमंत व शिशिर इन शीत ऋतुओं में ठंडे, रूखे-सूखे, वातवर्धक पदार्थों का सेवन, अल्प आहार तथा वसंत-ग्रीष्म-शरद इन उष्ण ऋतुओं में उष्ण पदार्थ व दही का सेवन कालविरुद्ध है। मरुभूमि में रूक्ष, उष्ण, तीक्ष्ण पदार्थों (अधिक मिर्च, गर्म मसाले आदि) व समुद्रतटीय प्रदेशों में चिकने ठंडे पदार्थों का सेवन, क्षारयुक्त भूमि के जल का सेवन देशविरुद्ध है।

अधिक परिश्रम करने वाले व्यक्तियों के लिए रूखे-सूखे, वातवर्धक पदार्थ व कम भोजन तथा बैठे-बैठे काम करने वाले व्यक्तियों के लिए चिकने, मीठे, कफवर्धक पदार्थ व अधिक भोजन अवस्थाविरूद्ध है।

अधकच्चा, अधिक पका हुआ, जला हुआ, बार-बार गर्म किया गया, उच्च तापमान पर पकाया गया (जैसे – ओवन में बना व फास्टफूड), अति शीत तापमान में रखा गया (जैसे – फ्रिज में रखे पदार्थ) भोजन पाकविरूद्ध है।

मल-मूत्र का त्याग किये बिना, भूख के बिना अथवा बहुत अधिक भूख लगने पर भोजन करना क्रमविरुद्ध है।

जो आहार मनोनुकूल न हो वह हृदयविरुद्ध है क्योंकि अग्नि प्रदीप्त होने पर भी आहार मनोनुकूल न हो तो सम्यक् पाचन नहीं होता।

इस प्रकार के विरोधी आहार के सेवन से बल, बुद्धि, वीर्य व आयु का नाश, नपुंसकता, अंधत्व, पागलपन, भगंदर, त्वचाविकार, पेट के रोग, सूजन, बवासीर, अम्लपित्त (एसीडिटी), सफेद दाग, ज्ञानेन्द्रियों में विकृति व अष्टौमहागद अर्थात् आठ प्रकार की असाध्य व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं। विरुद्ध अन्न का सेवन मृत्यु का भी कारण हो सकता है।

अतः देश, काल, उम्र, प्रकृति, संस्कार, मात्रा आदि का विचार तथा पथ्य-अपथ्य का विवेक करके नित्य पथ्यकर पदार्थों का ही सेवन करें। अज्ञानवश विरुद्ध आहार के सेवन से हानि हो गयी तो वमन-विरेचनादि पंचकर्म से शरीर की शुद्धि एवं अन्य शास्त्रोक्त उपचार करने चाहिए। ऑपरेशन व अंग्रेजी दवाएँ रोगों को जड़-मूल से नहीं निकालते। अपना संयम और निःस्वार्थ एवं जानकार वैद्य की देख-रेख में किया गया पंचकर्म विशेष लाभ देता है। इससे रोग तो मिटते ही हैं, 10-15 वर्ष आयुष्य भी बढ़ सकता है।

सबका हित चाहने वाले पूज्य बापू जी हमें सावधान करते हैं- “नासमझी के कारण कुछ लोग दूध में सोडा या कोल्डड्रिंक डालकर पीते हैं। यह स्वाद की गुलामी आगे चलकर उन्हें कितनी भारी पड़ती है, इसका वर्णन करके विस्तार करने की जगह यहाँ नहीं है। विरुद्ध आहार कितनी बीमारियों का जनक है, उन्हें पता नहीं।

खीर के साथ नमकवाला भोजन, खिचड़ी के साथ आइसक्रीम, मिल्कशेक – ये सब विरुद्ध आहार हैं। इनसे पाश्चात्य जगत के बाल, युवा, वृद्ध सभी बहुत सारी बीमारियों के शिकार बन रहे हैं। अतः हे बुद्धिमानो ! खट्टे-खारे के साथ भूलकर भी दूध की चीज न खायें-न खिलायें।”

ऋतु परिवर्तन विशेष

शीत व उष्ण ऋतुओं के बीच में आऩे वाली वसंत ऋतु में न अति शीत, न अति उष्ण पदार्थों का सेवन करना चाहिए। सर्दियों के मेवे, पाक, दही, खजूर, नारियल, गुड़ आदि छोड़कर अब ज्वार की धानी, भुने चने, पुराने जौ, मूँग, तिल का तेल, परवल, सूरन, सहिजन, सूआ, बथुआ, मेथी, कोमल बेंगन, ताजी नरम मूली तथा अदरक का सेवन करना चाहिए।

सुबह अनुकूल हो ऐसे किसी प्रकार का व्यायाम जरूर करें। वसंत में प्रकुपित होने वाला कफ इससे पिघलता है। प्राणायाम विशेषतः सूर्यभेदी प्राणायाम (बायाँ नथुना बंद करके दाहिने से गहरा श्वास लेकर एक मिनट रोक दें फिर बायें से छोड़ें) व सूर्यनमस्कार कफ के शमन का उत्तम उपाय है। इन दिनों दिन में सोना स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक है।

कफजन्य रोगों में कफ सुखाने के लिए दवाइयों का उपयोग न करें। खानपान में उचित परिवर्तन, प्राणायाम, उपवास, तुलसी पत्र व गोमूत्र के सेवन एवं सूर्यस्नान से कफ का शमन होता है।

जोड़ों के दर्द का अनुभूत प्रयोग

एक चम्मच पिसा हुआ मेथीदाना, आधा चम्मच हल्दी चूर्ण और आधा चम्मच पीपरामूल चूर्ण एक गिलास पानी में रात को भिगो दें। सुबह आधा गिलास बचने तक उबालें। गुनगुना होने पर छान के खाली पेट केवल पानी पी लें। दर्द खत्म होने तक ले सकते हैं। 20-30 दिन में लाभ महसूस होगा। दर्द अधिक हो तो ज्यादा दिन भी प्रयोग कर सकते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2012, पृष्ठ संख्या 31, 32 अंक 230

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