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महामूर्ख से महाविद्वान


(आत्मनिष्ठ पूज्य बापू जी की मधुमय अमृतवाणी)

एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध।

तुलसी संगत साध की, हरे कोटि अपराध।।

जन्म जन्मान्तरों की पाप-वासनाएँ, दूषित कर्मों के बन्धन सत्संग काट देता है और हृदय में ही हृदयेश्वर का आनंद-माधुर्य भर देता है।

कितना भी गया-बीता व्यक्ति हो, मूर्खों से भी दुत्कारा हुआ महामूर्ख हो लेकिन सत्संग मिल जाय तो महापुरुष बन जाता है, राजा महाराजाओं से पूजा जाता है, देवताओं से पूजा जाता है, भगवान उसके दर के चाकर बन सकते हैं, सत्संग में वह ताकत है।

पूनम की रात थी। विजयनगर का राजा अपने महल की विशाल छत पर टहल रहा था। उसका खास प्यारा मंत्री उसके पीछे-पीछे जी हजूरी करते हुए टहल रहा था। बातों-बातों में विजयनगर नरेश ने कहाः “मंत्री ! तुम बोलते हो कि सत्संग से सब कुछ हो सकता है परंतु जिसमें अक्ल नहीं है, जिसका भाग्य हीन है, जिसके पास कुछ भी नहीं है उसको सत्संग से क्या मिलेगा ?”

बोलेः “राजन् ! कैसा भी गिरा हुआ आदमी हो, सत्संग से उन्नत हो सकता है।”

“गिरा हुआ हो पर अक्ल तो होनी चाहिए न !”

“माँ यह नहीं देखती है कि शिशु अक्लवाला है या बेवकूफ है, माँ तो शिशु को देखकर दूध पिलाती है। वह ऐसा नहीं कहती कि नाक बह रही है, हाथ-पैर गंदे हैं, कपड़े पुराने हैं, नहा-धोकर अच्छा बन जा तब मैं दूध पिलाऊँगी। नहीं-नहीं, जैसा-तैसा है मेरा है बस। सत्संग में आ गया, भगवान और संत के वचन कान में पड़े तो वह  भगवान का हो गया, संत का हो गया।”

“परन्तु कुछ तो होना चाहिए।”

“कुछ हो तो ठीक है, न हो तो भी सत्संग उसे सब कुछ दे देगा।”

विजयनगर का नरेश मंत्री की बात काटता जा रहा है पर मंत्री सत्य और सत्संग की महिमा पर डटा रहा। इतने में एक ब्राह्मण लड़का जा रहा था। चाँदनी रात थी। दोनों हाथों में जूते थे, एक हाथ में एक जूता….। जूते में चंद्रमा का प्रतिबिम्ब पड़ रहा था। राजा ने गौर से देखा कि जूते में चाँद दिख रहा है तो बोलाः “रोको इस छोरे को।”

राजा ने लड़के से पूछाः “क्या नाम है तेरा और यह जूते में क्या ले जा रहा है ?”

“माँ ने कहा कि तेल ले आना, कोई बर्तन नहीं था तो मैं जूते में ले जा रहा हूँ।”

“मंत्री ! अब इसको तुम महान बनाकर दिखाओ !”

मंत्रीः “इसमें क्या बड़ी बात है !”

लड़के से बात करें तो ऐसा लगे कि पागल भी इससे अच्छे हैं। जूते में तो पागल भी तेल नहीं ले जायेगा।

राजाः “यह महान बन जायेगा ?”

मंत्रीः “हाँ, हाँ।”

उसके माँ बाप को बुलाया गया। मंत्री बोलाः “हम तुम्हारे भरण-पोषण की व्यवस्था कर देते हैं और तुम्हारे बेटे को हम सत्संग में ले जायेंगे। फिर देखो क्या होता है !” बेटा कौन था ? श्रीधर। अक्ल कैसी थी ? जूते में तेल ले जा रहा था ऐसा महामूर्ख था। सत्संग में ले गये उसको। मंत्री ने उसको ʹनृसिहंतापिनी उपनिषदʹ का एक मंत्र बता दिया नृसिंह भगवान का, बोलेः “इस मंत्र के जप से सारे सुषुप्त केन्द्र खुलते हैं।”

लड़के से मंत्र अऩुष्ठान करवा दिया। शुरु-शुरु में उबान लगती है। शुरु-शुरु में तो आप 1,2,3,….10 लिखने भी ऊबे थे। क, ख, ग….. ए, बी, सी, डी…. लिखने में भी ऊबे थे लेकिन हाथ जम गया तो बस…..।

एक अनपढ़ को रात्री-स्कूल में ले गये, बोलेः “तू क, ख, ग…. दस अक्षर लिख दे।”

बोलेः “साहब ! क्यों मुझे मुसीबत में डालते हो ? तुम्हारी दस भैंसें चरा दूँ, दस गायें चरा दूँ, दस किलो अनाज पिसवा दूँ लेकिन ये दस अक्षर मेरे को कठिन लगते हैं।”

आपको दस किलो अनाज उठाना कठिन लगेगा पर दस क्या बीसों अक्षर लिख दोगे क्योंकि हाथ जम गया। ऐसे ही सत्संग से मन भगवान के रस में, भगवान के ज्ञान में जम जाय तो यह नारकीय संसार आपके लिए मंगलमय मोक्षधाम बन जायेगा। लड़के को मंत्र मिला। सत्संग में यह भी सुना था कि पूर्णिमा या अमावस्या का दिन हो, उस दिन  पति-पत्नी का व्यवहार करने वालों को विकलांग संतान की प्राप्ति होती हैं। अगर संयम से जप-ध्यान करते हैं तो उनकी बुद्धि भी विकसित होती है। शिवरात्रि, जन्माष्टमी, होली या दिवाली हो तो उन दिनों में जप-ध्यान दस हजार गुना फल देता है। गुरु के समक्ष बैठकर जप करते हैं तो भी उस जप का कई गुना फल होता है। जप करते-करते गुरुदेव का ध्यान करते हैं, सूर्य देव का ध्यान करते हैं तो बुद्धि विकसित होती है। सूर्यदेव का नाभि पर ध्यान करते हैं तो आरोग्य विकसित होता है।

जपात् सिद्धि जपात् सिद्धिः

जपात् सिद्धिर्न संशयः।

जप करते जाओ। अंतःकरण की शुद्धि होती जायेगी, भगवदीय महानता विकसित होती जायेगी।

एक दिन वह छोरा जप कर रहा था। जहाँ बैठा था वहाँ खपरैल या पतरे की छत होती है न, उसमें चिड़िया ने घोंसला बनाया था। चिड़िया तो चली गयी थी। घोंसले में जो बच्चा था, धड़ाक से जमीन पर गिर पड़ा। अभी-अभी अंडे से निकला था। पंख-वंख फूटे नहीं थे, दोपहर का समय था। लपक-लपक… उसका मुँह बन्द हो रहा था, खुल रहा था, मानो अभी मरा। बालक श्रीधर को लगा कि ʹइस बेचारे का क्या होगा ? इसकी माँ भी नहीं है और वह आ भी जायेगी तो इसको चोंच में लेकर ऊपर तो रख पायेगी नहीं। इसका कोई भी नहीं है, फिर याद आया कि सत्संग में सुना है कि ʹसभी के भगवान हैं। मूर्ख लोग होते हैं जो बोलते हैं कि मैं अनाथ हो गया, पिता मर गया, मेरा कोई नहीं। पति मर गया, मेरा कोई नहीं, मैं विधवा हूँ…. यह मूर्खों का कहना है। जगत का स्वामी मौजूद है तो तू विधवा कैसे ? जगत का स्वानी मौजूद है तो तू अनाथ कैसे ?

यह तो अनाथ जैसा है अभी, इसके माँ-बाप भी नहीं इधर, पंख भी नहीं। अब देखें जगत का नाथ इसके लिए क्या करता है !ʹ

इतने में जगत के नाथ की क्या लीला है, उसने दो मक्खियों की मति फेरी। वे मक्खियाँ आपस में लड़ पड़ीं। दोनों ऐसी आपस में भिड़ गयीं कि धड़ाक से लपक-लपक करने वाले बच्चे के मुँह के अंदर घुस गयीं। बच्चे ने मुँह बन्द करके अपना पेट भर लिया।

अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम।

दास मलूका यूँ कहे, सबका दाता राम।।

श्रीधर ने कहाः ʹअरे ! हद हो गयी… मक्खियों का प्रेरक उनको लड़ाकर चिड़िया के बच्चे के मुँह में डाल देता है ताकि उसकी जान बचे और वे मक्खी-योनि से आगे बढ़कर चिड़िया बने। वह  कैसा है मेरा प्रभु ! प्रभु तुम कैसे हो ? मक्खी के भी प्रेरक हो, चिड़िया के भी प्रेरक हो और मेरे दिल में भी प्रेरणा देकर इतना ज्ञान दे रहे हो। मैं तो जूते में तेल ले जाने वाला और मेरे प्रति तुम्हारी इतनी रहमत ! प्रभु ! प्रभु ! ૐ….ૐ…..

आगे चलकर यही श्रीधर महान संत बन गये, जिनका नाम पड़ा श्रीधर स्वामी। अयाचक (अन्न आदि के लिए याचना न करने का) व्रत था इनका। इन्होंने ʹश्रीमद् भगवद् गीताʹ पर टीका लिखी। लिखते समय गीता के ʹयोगक्षेमं वहाम्यहम्ʹ पद को काट के ʹयोगक्षेमं ददाम्यहम्ʹ लिख दिया और जलाशय में स्नान करके फिर व्याख्या लिखूँगा ऐसा सोचकर स्नान करने गये। इतने में बालरूप में नन्हें-मुन्ने श्रीकृष्ण चावल-दाल मिश्रित खिचड़ी की गठरी लेकर आये और बोलेः “आपके घर में आज रात के लिए खिचड़ी नहीं है। लो, मेरा बोझा उतार लो।”

श्रीधर की पत्नी दंग रह गयी। बालक से वार्तालाप करके आश्चर्य के समुद्र में गोते खाने लगी। उसने बालक को गौर से देखा तो बोलीः “तुम्हारा होंठ सूजा हुआ है। किसने मारा तुम्हारे मुँह पर तमाचा ?”

“आपके पति श्रीधर स्वामी ने। बाद में वे स्नान करने गये। अब मैं जाता हूँ।”

कुछ ही समय में श्रीधर स्वामी स्नान करके लौटे। पत्नी ने कहाः “इतना सुकुमार बालक खिचड़ी का बोझ वहन करके आया और आपने उसके मुँह पर चाँटा मारा !”

पत्नी की बात विस्तार से सुनकर श्रीधर स्वामी को यह समझने में देर न लगी कि भगवान के ʹयोगक्षेमं वहाम्यहम्ʹ वचन को काटकर ʹयोगक्षेमं ददाम्यहम्ʹ लिखा, वह कितना गलत है यह समझाने नंदनंदन आये थे।

कहाँ तो जूते में तेल ले जाने वाले और कहाँ भगवान के दर्शन करने वाली पत्नी न समझ पायी और ये समझ गये। ʹगीताʹ पर लिखी श्रीधर स्वामी की टीका बड़ी सुप्रसिद्ध है। हमारे गुरु जी भी पढ़ते सुनते थे, हमने भी पढ़ी सुनी है।

आखिर मंत्री का बात सत्य साबित हुई। सत्संग कहाँ-से-कहाँ पहुँचा देता है !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2012, पृष्ठ संख्या 16, 17,18 अंक 236

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घर में कैसे रहें ? – पूज्य बापू जी


घर में सुख-शांति रहे इसके लिए क्या करें ?

ʹमेरी चाही….. मेरी चाही होʹ – यही आग्रह झगड़ा और अशांति करता है। ʹमेरा कहा हो, मैं जो कहूँ वही हो, – ऐसा आग्रह छोड़ दें। अपने से बड़ी उम्र के हों तो उसका आदर करो और छोटी उम्र को हों तो उनका मन रखने की आदत बना लो, घऱ में सुख-शांति रहेगी।

युधिष्ठिर छोटे भाइयों की बात सुनकर फिर अपनी बात रखते थे कि ʹऐसा हो तो ठीक पर तुम लोग जो कहते हो वह भी ठीक है।ʹ तो सभी भाई कहते कि ʹनहीं, हमारी अपेक्षा आपकी बात ठीक है।ʹ ऐसा नहीं कि मैं बड़ा हूँ इसलिए मैंने जो कहा वही होना चाहिए।

घर के लोग अंदर-अंदर अहंकारयुक्त निर्णय लेते हैं, वासनायुक्त निर्णय लेते हैं, अपने स्वार्थ में आकर निर्णय लेते हैं तो घर नरक बन जाता है और सबका भला सोचकर जब निर्णय लेते हैं तो घर स्वर्ग हो जाता है। अहंकार-हेकड़ी छोड़कर जो रहते हैं वे बड़े खुश रहते हैं।

ʹमेरा बेटा तो मेरा कहना ही नहीं मानता, बहू भी ऐसी है। दोनों निगुणे हैं। उसकी साली है न, वह तो निर्लज्ज है।ʹ अरे, वह तो अभी हँसती होगी, तू मेरा मुँह क्यों बिगाड़ती है ? जैसी है ठीक है।

जब कोई व्यक्ति किसी की निंदा करता है तो उसके भीतर नकारात्मक विचार प्रवाहित होते हैं। इससे मुँह बिगड़ता है, मन बिगड़ता है और शरीर में ʹन्यूरोपेप्टाड्सʹ और दूसरे हानिकारक द्रव्य प्रवाहित होते हैं। फिर उससे कोलेस्ट्रॉल का एक घटक ʹऑक्सीडाइज्ड एलडीएलʹ बनता है। यह कई रोगों को जन्म देता है। कोई कैसा भी है उसकी गहराई में एक ही आत्मा-परमात्मा है। समुद्र के तल में शांत जल है, ऊपर अलग-अलग किनारे, अलग-अलग तरंग, अलग-अलग बुलबुले, अलग-अलग भँवर, अलग-अलग फेन हैं।

लोग बोलते हैं- ʹघर में और सब तो ठीक है पर लड़का ऐसा है, वैसा है।ʹ तो समझो, बहुत अच्छा है। सोचो, ʹजो मेरा कहा करेगी तो मेरी ममता बढ़ेगी। भगवान की दया है, मेरी ममता कब हुई।ʹ कोई कहना मानता है तो भगवान की दया है। व्यस्थित होता है तो ठीक है, शांति है और गड़बड़ करें तो मानो आसक्ति कम हो रही है। दोनों हाथों में लड्डू ! चिंता करने की, फरियाद करने की क्या जरूरत है ? घर के लोग अच्छा व्यवहार करते हैं तो ठीक है, हम भगवान का भजन करेंगे और वे बहुत गड़बड़ करें तो समझो आसक्ति कम, माथापच्ची कम, मेरापन कम….

एक परिवार में 65 लोग थे और परिवार में कोई झगड़ा नहीं। अखंडानंद जी ने उऩ लोगों से पूछाः “आपके परिवार में इतने लोग हैं फिर भी झगड़ा क्यों नहीं होता ?”

बोलेः “हमने संस्कार डाले हैं कि छोटा बड़े का आदर करे, बड़ा आये तो छोटा उठकर खड़ा  हो जाय। बड़े के हृदय की दुआ और सदभाव ले। जेठानी का आदर देवरानी करे और देवरानी बीच की है तो छोटी देवरानी उसका आदर करे लेकिन जेठानी की जिम्मेदारी है कि देवरानियाँ हमारा आदर करती हैं तो उनसे कभी कुछ उन्नीस-बीस हो तो चला ले। ऐसे संस्कार सत्संग से मिले हैं तो देवरानी को आदर करने में संकोच नहीं होता और जेठानी को आदर से अहंकार नहीं होता क्योंकि हम सदगुरु के पास, संत के पास जाते हैं।

64 लोग खा लें उसके बाद मैं खाता हूँ। तो सब मेरी बात मानते हैं लेकिन मेरे को ऐसा नहीं होता कि सब मेरी बात मानें। सबकी बात सुन लेता हूँ फिर सबका जिसमें भला हो ऐसा विचार रखता हूँ।”

जैसे युधिष्ठिर अर्जुन की भी सुनते, भीम की भी सुनते, चारों भाइयों की सुनते, फिर जो शास्त्रसम्मत बात होती उसकी सम्मति देते। किसी का अपमान नहीं होने देते, बोलते कि ʹआपका विचार तो ठीक है लेकिन ऐसा हो तो कैसा रहेगा ?ʹ चारों बोलतेः ʹहाँ ! हाँ ! ठीक है, ठीक है।ʹ

सासु-बहू में झगड़े क्यों होते हैं ?

सासु बोले, ʹमेरी चलेʹ। बहू बोले, ʹमेरी चलेʹ। I shout, you shout, who will carry dirt out ? (मैं भी रानी तू भी रानी, कौन भरेगा घर का पानी ?) पति सोचता है, ʹमेरी चले।ʹ पत्नी सोचती है, ʹमेरी चले।ʹ सुबह उठते ही घर के चार-छः ठीकरे आपस में टकराते हैं। सभी चाहते हैं मेरी चले। अपने मन को चलाने की जो बेवकूफी है, उसको हटा दें। समझना चाहिए कि दूसरे का भी तो मन है ! कब तक आपके मन से दूसरे दबे रहेंगे ? विशाल हृदय रखना चाहिए। कोई जिद करे तो बोलोः ʹठीक है, जैसा तुमको अच्छा लगता है करो। मेरी इच्छा तो नहीं है फिर भी जाना है तो मना नहीं है।ʹ तो वह बोलेगाः ʹनहीं जाना।ʹ

सुख-शांति, आनंद चाहिए तो भगवदगीता के ग्यारहवें अध्याय का 36 वाँ श्लोक अर्थसहित लाल स्याही से लिखकर घर में टाँग दो।

स्थाने हृषीकेश तब  प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।

रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघाः।।

ʹहे अंतर्यामिन् ! यह योग्य ही है कि आपके नाम, गुण और प्रभाव के कीर्तन से जगत अति हर्षित हो रहा है और अनुराग को भी प्राप्त हो रहा है तथा भयभीत राक्षस लोग दिशाओं में भाग रहे हैं और सब सिद्धगणों के समुदाय नमस्कार कर रहे हैं।ʹ

रूपये-पैसे में बरकत चाहिए तो इस श्लोक का पाठ करो और तिजोरी में जहाँ रूपये-पैसे रखते हैं वहाँ लाल वस्त्र बिछा दो और ʹलक्ष्मीनारायाण, नारायण, नारायणʹ का मानसिक जप करो।

तबीयत अच्छी करनी हो तो नाभि में सूर्यनारायण का ध्यान करो। श्वास लेकर सवा मिनट अथवा डेढ़ मिनट तक श्वास रोको, फिर छोड़ो। फिर बाहर श्वास अच्छी तरह से छोड़कर 50 सैकेंड बाहर ही रखो। कैसी भी तबीयत हो अच्छी होने लगेगी।

घर के आपसी झगड़े मिटाने हों तो एक लोटा पानी पलंग के नीचे या खाट के नीचे रख दो। सुबह उस जल को तुलसी या पीपल की जड़ में डाल दो।

हफ्ते में एक बार पानी में खड़ा नमक डाल के उस पानी से घर में पोंछा करें। इससे घर में से नकारात्मक ऊर्जा चली जायेगी और सकारात्मक ऊर्जा आयेगी। फिनाइल के पोंछे से हानिकारक हवा बनती है। घर के लोग रसोईघर में बैठकर एक साथ भोजन करें, इससे घर के झगड़े मिट जायेंगे और सफलता मिलेगी।

कामकाज करने जाते हैं और सफलता नहीं मिलती तो दायाँ पैर पहले आगे रखकर फिर जाया करो, देशी गाय के खुर की धूलि से ललाट पर तिलक किया करो, सफलता मिलेगी। लेकिन ये सब छोटी सफलताएँ हैं, बड़ी सफलता है हृदयपूर्वक भगवान में प्रीति होना। उनमें विश्रान्ति पाना, उनकी प्रसन्नता-प्राप्ति के लिए कार्य करना, सुख-दुःख, लाभ-हानि में सम रहना बड़ी सफलता है। ʹૐૐૐૐૐʹ जपते जाओ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2012, पृष्ठ संख्या 24,25, अंक 36

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गाय की उपयोगिता


गाय मानव जीवन के लिए परम उपयोगी है। गाय की महत्ता का वर्णन बहुत से शास्त्रों में मिलता है। अब वैज्ञानिकों ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया है। दूध के अतिरिक्त गाय से प्राप्त अन्य सब द्रव्य भी मानव-जीवन के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं।

गाय का घी

गाय का घी और चावल की आहुति डालने से महत्त्वपूर्ण गैसें जैसे – इथिलीन ऑक्साइड, प्रोपिलीन ऑक्साइड, फॉर्मल्डीहाइड आदि उत्पन्न होती हैं। इथिलीन ऑक्साइड गैस आजकल सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाली जीवाणुरोधक गैस है, जो शल्य चिकित्सा कक्ष (ऑपरेशन थियेटर) से लेकर जीवनरक्षक औषधियाँ बनाने तक में उपयोगी है। वैज्ञानिक प्रोपिलीन ऑक्साइड गैस को कृत्रिम वर्षा का आधार मानते हैं।

आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार अनिद्रा का रोगी शाम को दोनों नथुनों में गाय के घी की दो-दो बूँदें डाले और रात को नाभि एवं पैर के तलुओं में गोघृत लगाकर लेट जाय तो उसे प्रगाढ़ निद्रा आ जायेगी।

गोघृत में मनुष्य शरीर में पहुँचे रेडियोधर्मी विकिरणों का दुष्प्रभाव नष्ट करने की असीम क्षमता है। अग्नि में गाय के घी की आहुति देने से उसका धुआँ जहाँ तक फैलता है, वहाँ तक का सारा वातावरण प्रदूषण एवं आण्विक विकिरणों से मुक्त हो जाता है। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि एक चम्मच गोघृत को अग्नि में डालने पर एक टन प्राणवायु (ऑक्सीजन) बनती है जो अन्य किसी भी उपाय से सम्भव नहीं है। (रूसी वैज्ञानिक शिरोविच)

गोमूत्र

गोमूत्र सभी रोगों के विशेषकर किडनी, लीवर, पेट के रोग, दमा व पीलिया के लिए रामबाण औषधि है। इसमें 24 प्रकार के रसायन जैसे पौटैशियम, कैल्शियम, मैग्नेशियम, फ्लोराइड, यूरिया, अमोनिया, लौह तत्त्व, ताम्र तत्त्व, सल्फर, लैक्टोज आदि पाये जाते हैं। 25 जून 2002 को भारत को गोमूत्र का पेटेंट मिला। आज सम्पूर्ण विश्व में एंटीकैंसर ड्रग तथा सर्वोत्तम एंटीबायोटिक एवं हानिरहित सर्वोत्तम कीटनाशक गोमूत्र है। इस महौषधि के समतुल्य कोई औषधि दुनिया में नहीं है।

गोमूत्र रक्त में बहने वाले दूषित कीटाणुओं को नष्ट करता है। (डॉ. सिमर्स, ब्रिटेन)

कुछ दिनों तक गोमूत्र के  सेवन से धमनियों में रक्त का दबाव सामान्य होने से हृदयरोग दूर होता है। इसके सेवन से भूख बढ़ती है तथा पेशाब खुलकर होता है। यह पुराने गुर्दे रोग (किडनी फेल्युअर) की उत्तम औषधि है। (डॉ. काफोड हेमिल्टन (अमेरिका)

गाय का गोबर

गाय के गोबर में 16 प्रकार के खनिज तत्त्व होते हैं। जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, सोडियम, गंधक आदि। ʹअखिल भारतीय कृषि पुरस्कारʹ से पुरस्कृत श्री नारायण पाडरीपाडे ने नडेप खाद का आविष्कार करके सिद्ध किया है कि देशी गाय के एक क्विंटल गोबर से 30 क्विंटल जैविक खाद 4 महीने में बनायी जा सकती है। उसका मूल्य कम-से-कम 30000 रूपये होता है। यह गोबर आप उस बूढ़ी और अऩुपयोगी गाय से भी प्राप्त कर सकते हैं जो वर्ष में केवल 3000 रूपये का चारा खाती है।

12 वोल्ट की नयी बैटरी में गोमूत्र या गोबर भरकर ताँबा एवं जस्ता की प्लेटें डालकर उस सर्किट से विद्युत घड़ी, कम वोल्ट का बल्ब, ट्रांजिस्टर, टेप रिकॉर्डर एवं छोटा टीवी चलाने के प्रयोग में सफलता प्राप्त की जा चुकी है। (निहालचन्द्र तनेजा (जय श्रीकृष्ण प्रयोगशाला, ग्राम-सहार, कानपुर के पास)

गाय के ताजे गोबर से टी.बी. तथा मलेरिया के कीटाणु मर जाते हैं। (प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. जी.ई. बीगेड (इटली)

गाय के गोबर में हैजे के कीटाणुओं को मारने की अदभुत क्षमता है। (प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. किंग (चेन्नई)

अमेरिका के वैज्ञानिक जेम्स मार्टिन ने गाय के गोबर, खमीर और समुद्र के पानी को मिलाकर ऐसा उत्प्रेरक बनाया है जिसके प्रयोग से बंजर भूमि हरी-भरी हो जाती है एवं सूखे तेल के कुओं में दुबारा तेल आ जाता है।

शहरों से निकलने वाले कचरे पर गोबर के घोल को डालने से दुर्गन्ध पैदा नहीं होती एवं कचरा खाद के रूप में परिवर्तित हो जाता है। (डॉ. कांती सेन सर्राफ (मुंबई)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2012, पृष्ठ संख्या 19,20 अंक 236

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