शीतऋतु में स्वास्थ्य-संवर्धन

शीतऋतु में स्वास्थ्य-संवर्धन


शीतकाल में तक्रपान-अमृत समान

शीतकालेग्निमान्द्ये च कफवातामयेषु च।

अरुचौ स्रोतसां रोधे तक्रं स्यादमृतोपमम्।।

ʹशीतकाल में और अग्निमांद्य, कफ-वातजन्य रोग, अरुचि व नाड़ियों के अवरोध में तक्र (छाछ) का सेवन अमृत की तरह गुणकारी है।ʹ

गाय के तक्र में विद्यमान आठ गुण

क्षुधावर्धक, नेत्ररोगनाशक, बलकारक, रक्त-मांसवर्धक, कफ-वातशामक, आम (कच्चा आहार रस) नाशक।

तक्र निर्माणः गाय के दही में समभाग जल मिला के मथनी से खूब मथकर तक्र बनायें।

तक्र के प्रयोगः

हींग, जीरा व सेंधा नमक मिलाया हुआ तक्र वायुनाशक, दस्त, संग्रहणी व बवासीर में लाभदायी है।

सोंठ व काली मिर्च मिलाया हुआ तक्र कफशामक तथा मिश्रीयुक्त तक्र पित्तशामक है।

पेशाब की रूकावट में तक्र में पुराना गुड़ मिलाकर पीना हितकर है।

राई, मिर्च व सेंधा नमक से छौंक लगाया हुआ तक्र जुकाम व खाँसी में गुणकारी है।

सर्दियों में भोजन के साथ ताजे मीठे दही का सेवन भी रूचि, बल, मांस व रक्त वर्धक तथा मंगलकारक है।

सर्दियों में खास गोमूत्र-पान

शरीर की पुष्टि के साथ शुद्धि भी आवश्यक है। गोमूत्र शरीर के सूक्ष्म-अतिसूक्ष्म स्रोतों में स्थित विकृत दोष व मल को मल-मूत्रादि के द्वारा बाहर निकाल देता है। इसमें स्थित कार्बोलिक एसिड कीटाणुओं व हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है। इससे रोगों का समूल उच्चाटन करने में सहायता मिलती है। गोमूत्र में निहित स्वर्णक्षार रसायन का कार्य करते हैं। अतः गोमूत्र के द्वारा शरीर की शुद्धि व पुष्टि दोनों कार्य पूर्ण होते हैं।

सेवन विधिः

प्रातः 25 से 40 मि.ली. (बच्चों को 10-15 मि.ली.) गोमूत्र कपड़े से सात बार छानकर पियें। इसके बाद 2-3 घंटे तक कुछ न लें। ताम्रवर्णी गाय अथवा बछड़ी के मूत्र सर्वोत्तम माना गया है।

विशेषः सुबह गोमूत्र में 10-15 मि.ली. गिलोय का रस (अथवा 2-3 ग्राम चूर्ण) मिलाकर पीना उत्कृष्ट रसायन है।

ताजा गोमूत्र न मिलने पर गोझरण अर्क का प्रयोग करें। 10-20 मि.ली. (बच्चों को 5-10 मि.ली.) गोझरण अर्क पानी में मिलाकर लें।

(गोझरण अर्क सभी संत श्री आशारामजी बापू आश्रमों व समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध है।)

रोग व पापनाशक पंचगव्य

पंचगव्य शरीर के साथ मन व बुद्धि को भी शुद्ध, सबल व पवित्र बनाता है। शरीर में संचित हुए रोगकारक तत्त्वों का उच्चाटन कर सम्भावित गम्भीर रोगों से रक्षा करने की क्षमता इसमें निहित है। इसमें शरीर के लिए आवश्यक जीवनसत्त्व (विटामिन्स), खनिज तत्त्व, प्रोटीन्स, वसा व ऊर्जा प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। गर्भिणी माताएँ, बालक, युवक व वृद्ध सभी के लिए यह उत्तम स्वास्थ्य, पुष्टि व शक्ति का सरल स्रोत है।

निर्माण व सेवन-विधिः 1 भाग गोघृत, 1 भाग गोदुग्ध, 1 भाग गोबर का रस, 2 भाग गाय का दही व 5 भाग छना हुआ गोमूत्र, सब मिलाकर 25-30 मि.ली. प्रातः खाली पेट धीरे-धीरे पियें। बाद में 2-3 घंटे तक कुछ न लें। तीन बार इस मंत्र का उच्चारण करने के बाद पंचगव्य पान करें-

यत् त्वगस्थितगतं पापं देहे तिष्ठति मामके।

प्राशनात् पंचगव्यस्य दहत्वग्निरिवेन्धनम्।।

अर्थात् त्वचा, मज्जा, मेधा, रक्त और हड्डियों तक जो पाप (दोष, रोग) मुझमें प्रविष्ट हो गये हैं, वे सब मेरे इस पंचगव्य-प्राशन से वैसे ही नष्ट हो जायें, जैसे प्रज्वलित अग्नि में सूखी लकड़ी डालने पर भस्म हो जाती है।

महाभारत

अक्सीर व अनुभूत प्रयोग

जीभ सफेद व भूख मंद हो तोः आधा चम्मच तुलसी के पत्तों का रस शहद के साथ दिन में 2 बार लेने से लाभ होता है।

हाथ पैरों में जलनः गिलोय सत्त्व मिश्री के साथ लेने पर फायदा होता है।

पेशाब में जलनः कपड़े को गीला करके नाभि पर रखें तो पेशाब में और पेशाब की जगह होने वाली जलन शीघ्र ही कम हो जायेगी।

हिचकीः आँवले का रस पिप्पली या शहद के साथ लेने से हिचकी में फायदा होता है।

ताजगी के लिएः नहाने के पानी में अगर थोड़ा नींबू का रस डालें तो त्वचा मुलायम हो जाती है। इस प्रयोग से दिनभर ताजगी भी महसूस होगी।

दूध बन्द करने के लिएः बच्चों को दूध पिलाने वाली माताएँ बच्चा खाना खाने लगे तब दूध बंद करने के लिए दवाइयाँ खाती हैं पर अगर वे चिकनी दूब (दुर्वा) का रस 4-5 चम्मच दिन में 3 बार लें तो कुछ दिनों में दूध अपने-आप बंद हो जायेगा।

रोमकूप खोलने के लिएः कई बार चेहरा स्वच्छ-सुंदर बनाने हेतु भाप ली जाती है। यदि पानी में तुलसी के पत्तों का रस अथवा नींबू का रस डालकर भाप लें तो चेहरे के रोमकूप खुल जायेंगे और चेहरा स्वच्छ व सुंदर हो जायेगा।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2012, पृष्ठ संख्या 28,29 अंक 240

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *