प्रकृति भी तुम्हारी आज्ञा मानेगी

प्रकृति भी तुम्हारी आज्ञा मानेगी


परब्रह्म परमात्मा की प्रसन्नता व संतुष्टि के लिए ही प्रकृति ने यह संसाररूपी खेल रचा है और जिनकी ब्रह्म में स्थिति हो जाती है, ऐसे महापुरुषों का संकल्पबल असीम होता है। ऐसे निरिच्छ महापुरुष कई बार सर्वमांगल्य के भाव से भरकर प्रकृति को बदलाहट के लिए आज्ञा देते हैं तो कई बार स्वयं प्रकृति ऐसे महापुरुषों की सेवा के लिए तत्पर हो जाती है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमें ब्रह्मनिष्ठ पूज्य संत श्री आशारामजी बापू के जीवन में कई बार देखने को मिला है।

जो गुरु आज्ञा मानता है…..

एक बार भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाह जी महाराज ने बापू जी को कुछ भक्तों को चाइना पीक (वर्तमान में नैना पीक) दिखाने की आज्ञा दी। ओलों की वर्षा और घना कोहरा होने से सभी यात्री वापस लौटने लगे परंतु अपने सदगुरुदेव की आज्ञा पूरी करने हेतु बापू जी उन भक्तों को समझाते बुझाते, कभी सत्संग सुनाते कैसे भी करके युक्ति से गन्तव्य स्थान तक ले गये। वहाँ पहुँचे तो मौसम एकदम साफ हो गया था। भक्तों ने चाइना पीक देखा। वे बड़ी खुशी से लौटे और पूरा हाल साँईं जी को कह सुनाया। जिस पर साँईं श्री लीलाशाह जी का हृदय बापू जी के लिए करूणा-कृपा से छलक उठा और बोलेः “जो गुरु आज्ञा मानता है, प्रकृति भी उसकी आज्ञा मानेगी।” और आज हम देख रहे हैं कि ब्रह्मज्ञानी का यह ब्रह्मवाक्य साकार होकर ध्रुव सत्य के रूप में देदीप्यमान हो रहा है। पूज्य बापू जी के करोड़ों शिष्यों के जीवन इसकी अनंत अदभुत गाथाएँ हैं। प्रकृति और परमेश्वर की इस अदभुत, मधुमय लीला-सरिता से कुछ आचमनः

करूणावत्सल बापू जी अकालपीड़ित भक्तों की करूण पुकार सुनकर अपने संकल्पबल से कहीं वर्षा करने की लीला करते हैं तो कहीं बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाओं को अपने संकल्पबल द्वारा टाल देते हैं। सितम्बर 2005 में भूकम्प की तबाही से उभरे रापर क्षेत्र के अकालपीड़ित लोगों की व्यथा सुनकर बापू जी ने कहाः “यह सत्संग पूरा करेंगे, फिर वर्षा करना ठाकुर जी !” विनोद-विनोद में भक्तों से भी यही कहलवाया और खुद हो गये चुप ! बापू जी ने एक नजर डाली आकाश पर, भक्तों पर और फिर शुरु कर दिया सत्संग। सत्संग पूरा होते ही लोग अपने-अपने घर पहुँचे और वर्षा ने अपना रंग दिखाया। पूरे रापर, कच्छ में खूब वर्षा हुई। फिर तो सिद्धपुर, विरमगाम, खेरालू… कितने-कितने स्थानों पर यह लीला चलती रही इसकी गिनती कर पाना सम्भव नहीं है।

इसी प्रकार रतलाम के पास नामली गाँव, पंचेड़ में पानी की भारी किल्लत थी, जमीन गहरी खोदने पर भी पानी नहीं निकलता था। भक्तों ने गुरुदेव के श्रीचरणों में प्रार्थना निवेदित कीक। पूज्यश्री ने वहाँ सत्संग किया, फिर जिस स्थान पर जमीन खोदने के लिए गुरुदेव ने आज्ञा की, वहाँ खुदाई करने पर थोड़ी ही गहराई में पानी का स्रोत मिल गया। फिर उस गाँव में जहाँ-जहाँ खुदाई हुई सभी जगह पानी-ही-पानी ! कैसी करूणा है महापुरुषों की !

अभी हाल ही में सभी ने एक ऐसा चमत्कार देखा जिसे सभी ने 21वीं सदी के उस सबसे बड़े चमत्कार के रूप में नवाजा, जिसे पूरे विश्व के लोगों ने देखा और हर कोई आज भी देख सकता है क्योंकि सौभाग्य से वह चमत्कार कैमरे में भी रिकॉर्ड हुआ। (देखें सितम्बर 2012 की ʹऋषि दर्शनʹ विडियो मैगजीन) स्थान था गोधरा व तारीख थी 29 अगस्त 2012 यहाँ हुई हेलिकॉप्टर दुर्घटना में जहाँ 100 फुट की ऊँचाई से गिरे हेलिकॉप्टर के पुर्जे-पुर्जे अलग हो गये, वहीं उसमें सवार पूज्य बापू जी के कोमल शरीर का अंग-प्रत्यंग चुस्त-तंदरुस्त ! हेलिकॉप्टर दुर्घटनाओं के रक्तरंजित इतिहास में यह पहली ही घटना थी, जिसमें किसी भी यात्री का बाल भी बाँका न हुआ हो। उसके अगले ही दिन नौसेना के दो हेलिकॉप्टरों के पंख टकराये और नौ लोगों की मृत्यु हो गयी। बापू जी जिस हेलिकॉप्टर से बिल्कुल सुरक्षित बाहर आये उसकी दशा देखकर तो नास्तिकों का शीश भी संत-चरणों में झुके बिना नहीं रहेगा !

प्रकृति करे सेवा

जिनको कछु न चाहिए, वो शाहन के शाह।

ऐसे अचाह, अलमस्त महापुरुषों की सेवा करके प्रकृति अपना भाग्य बना लेती है। उनके चित्त में बस एक हल्का-सा स्फुरण हो और वह वस्तु हाजिर हो जाय, यह बात विज्ञान की समझ से परे है। बापू जी कहते हैं- “मेरे शरीर को कुछ भी आवश्यकता हो तो पहले चीज आ जायेगी, बाद में लगेगा कि ʹहाँ, चलो ले लो।ʹ पहले चीज आयेगी, बाद में आवश्यकता दिखेगी – ऐसी व्यवस्था हो जाती है। आप ईश्वर में टिक जाओ तो प्रकृति आपकी सेवा करके अपने को आनंदित करती है।

जब मैं डीसा (गुजरात) के एकांत में था तो कुटिया से जब बाहर निकलता तो लोग खड़े रहते और हमारे पास तो कुछ होता नहीं था, तो किसी को बुलाया और कहाः “तुम मूँगफली ले आओ और बच्चों को बाँट दो।” दो रूपये की बहुत सारी मूँगफली मिल जाती थी। तो उसने मूँगफली लाकर बच्चों को बाँट दी। जो गर्म-गर्म मूँगफली बिकती है न ठेले पर, वह। फिर मन में सोचा, ʹअपन किसी से माँगते नहीं और उसको बोला कि इनको मूँगफली लाकर दे दो। उसको पैसे कैसे देंगे ?ʹ अपने पास तो पैसे थे नहीं। फिर हम नदी पर जा रहे थे तो ज्यों नदी पर गये त्यों दो रूपये के चार नोट ऊपर-ऊपर तैरते हुए आ गये। मैंने उन्हें उठा लिया और उस व्यक्ति को दे दिये कि ʹये ले मूँगफली के पैसे।ʹ

ऐसे ही नारायण जब चौदह-पन्द्रह साल का था तब मेरी रसोई की सेवा करता था। जब मैं दुबई गया तो रसोइया साथ चला। मैं सुरमा लगाता था। मैंने कहाः “इधर तो गर्मी बहुत है बेटा ! सुरमा लाया है क्या ?”

बोलेः “साँईं सुरमा तो नहीं लाया मैं।”

“चलो, ठीक है।”

जब दुबई के समुद्र-तट पर घूमने गया तो देखा कि जैसे मिठाई के डिब्बे आते हैं न, वैसे ही छोटा-सा डिब्बा तरंगों पर नाच रहा है। मैंने कहाः “इस बक्से में क्या होगा ?” हाथ लम्बा करके उठा लिया और देखा तो सुरमे की दो शीशियाँ और एक सलाई थी, कई  वर्षों तक चला वह। बिल्कुल पक्की, सच्ची बात है !”

कैसी है आत्मवेत्ता संतों की महिमा, जिनकी सेवा करने के लिए प्रकृति भी सदैव मौका ढूँढती रहती है।

पूज्य बापूजी का अवतरण होने वाला था तो उसके पहले ही परमात्मा ने सौदागर को सत्प्रेरणा दी और वह अत्यन्त सुंदर, विशाल झूला लेकर आ गया था। साधनाकाल में बापू जी की ऐसी ऊँचाई थी कि परमात्मा को चुनौती दे दी कि

जिसको गरज होगी आयेगा, सृष्टिकर्ता खुद लायेगा।।

पूज्य श्री को प्रातः यह विचार आये उससे पहले ही रात को स्वप्न में किसानों को मार्ग बताकर सृष्टिकर्ता ने ब्रह्मवेत्ता संत के भोजन की व्यवस्था कर दी।

सर्वसुहृद पूज्य बापू जी कहते हैं- “आप एक बार उस परब्रह्म-परमात्मा में स्थित हो जाओ तो आपके लिए सब सहज हो जायेगा। मुझे जो गाय दूध पिलाती थी, वह गर्भवती हो गयी थी। अब दूध कहाँ से लाना ? तो मैंने प्यार से गाय की गर्दन को सहलाया, वह फोटो भी है। मैंने कहाः “अब दूध पिलाना बंद कर दिया क्या ?” फिर उस गाय ने जीवन में दूध कभी बंद नहीं किया जब तक वह जीवित रही (वर्तमान में औरंगाबाद आश्रम में भी एक ऐसी ही गाय है, जो वर्षभर दूध देती है।) ऐसे ही आम का वृक्ष बारहों महीने फल देता है और भगवान तो बारह महीनों, चौबीसों घंटे, हर सेकंड फलित-ही-फलित कर रहे हैं।”

सच ही है, परमात्मा तो ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों का स्वरूप है और वही सृष्टिकर्ता, पालनहारा भी है। वही प्रकृति को प्रेरित करके अपने इन साकार स्वरूपों की सेवा में लगाता रहता है। संत कबीर जी ने भी ऐसे महापुरुषों के लिए कहा हैः

अलख पुरुष की आरसी साधु का ही देह।

लखा जो चाहे अलख को इन्हीं में तू लख लेह।।

महापुरुषों से क्या माँगें ?

पूज्य बापू जी

“संतों के पास आकर सांसारिक वस्तुएँ माँगना तो ऐसा ही है जैसे किसी राजा से हीरे न माँगकर आलू, मिर्च, धनिया माँगा जाय। मैं तुम्हें ऐसा आत्म-खजाना देना चाहता हूँ जिससे सब दुःख सदा के लिए दूर हो जायें। तुम अपने दुःख आप मिटा सको, औरों के भी मिटा सको ऐसा लक्ष्य बना लो और मैं तुम्हारा सहयोग करता हूँ, कदम-कदम पर साथ हूँ।”

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2012, पृष्ठ संख्या 2,9,10 अंक 53

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