परिप्रश्नेन

परिप्रश्नेन


प्रश्नः बड़े में बड़ी बुराई क्या है ?

पूज्य बापू जीः पराधीनता सबसे बड़ी बुराई है।

प्रश्नः क्या भगवान के अधीन नहीं हों ? गुरु के अधीन नहीं हों ?

पूज्य बापू जीः अरे ! भगवान और गुरु के अधीन होना यह सारी अधीनताओंको मिटाने की कुंजी है, वह अधीनता नहीं है। जैसे बच्चा माँ-बाप के अधीन होता है, नहीं तो न जाने कितने-कितनों के अधीन हो जाये। तो माँ-बाप की अधीनता बच्चे को सभी अधीनताओं से सुरक्षित करती है।

माता, पिता और गुरु के मार्गदर्शन में, कहने में चलना यह अधीनता नहीं है लेकिन विकारों के कहने में, दुष्कर्मों में चलना, बाहर से सुखी होने के लिए पापकर्म में चलना यह पराधीनता है।

प्रश्न बुराईरहित कैसे होवें ?

पूज्य बापूजीः ईश्वर के नाते सभी को अपना मानना, बुराई रहित हो जाओगे। बुराई बड़ी पराधीनता है। बुराई वाला व्यक्ति खुद भी दुःखी होता है, दूसरों को भी दुःखी करता है और बुराई रहित व्यक्ति खुद भी सुखी होता है, दूसरों को भी सुखी करता है।

प्रश्नः डर लगता है, डर का नाश कैसे हो ?

पूज्य बापू जीः डर का नाश होगा ममता के त्याग से। ʹहम मर जायेंगे, ऐसा हो जायेगा, ऐसा हो जायेगा….ʹ ममता भगवान में रखो तो डर चला जायेगा। ʹयह मकान मेरा है, यह शरीर मैं हूँ, फलाना हूँ….ʹ इसी से डर लगता है। डर लगता है मन को, आत्मा को डर नहीं होता।

प्रश्न धन क्या है ?

पूज्य बापू जीः विवेक धन है, वैराग्य धन है, भगवत्शान्ति धन है, भगवत्प्रीति धन है। जब उत्पन्न हो तो उसी भाव की रक्षा करनी चाहिए।

प्रश्न विवेक क्या है ?

पूज्य बापू जीः आत्मा अविनाशी है, जगत प्रतिकूल है, नाशवान है इसी को विवेक बोलते हैं-

अविनाशी आतम अमर जग तातै प्रतिकूल।

ऐसो ज्ञान विवेक है सब साधन को भूल।। (विचार सागर)

आत्मा अविनाशी है और जगत विनाशी है- सब साधनों का मूल है ऐसा ज्ञान, ऐसा विवेक। एक दिन सब छूट जायेगा, उसके पहले जो अछूट है उसको पाना चाहिए-यह विवेक है, यह धन है इसकी रक्षा करनी चाहिए। जिसको प्रभुप्राप्ति जल्दी करनी है, वह विचारसागर, एकनाथी भागवत, इनमें से कोई एक पढ़े-ध्यान करे, पढ़े-ध्यान करे, लग जाय। अच्छे काम करने का विचार आये तो गाँठ बाँधकर याद करके बार-बार उसी अच्छे काम में लग जावे। अच्छे काम करके भगवान को अर्पण करे। बुरे काम का विचार आये तो ʹअभी नहीं बाद में,  अभी नहीं बाद में, बाद में….ʹ ऐसा करने से बुरे काम से रक्षा होगी।

प्रश्नः भगवद् ज्ञान, भगवत्प्रेम में चलते हैं लेकिन सफल क्यों नहीं होते ?

पूज्य बापू जीः सात दुर्गुण हैं-एक तो श्रद्धा विश्वास की कमी, दूसरा उत्साह की कमी, तीसरा विषय चिंतन, चौथा कुसंग, पाँचवाँ सत्संग का अभाव, छठा दृढ़ निश्चय नहीं और सातवाँ लापरवाही। इन सात दुर्गुणों के कारण भगवद् ज्ञान, भगवत्प्रेम में चलते हैं लेकिन सफल नहीं हो पाते।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2013, पृष्ठ संख्या 19, अंक 245

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