Monthly Archives: July 2013

संत की करें जो निंदा, उन्हें होना पड़े शर्मिन्दा


(संत तुलसीदास जी जयंतीः 13 अगस्त)

संत तुलसीदास जी काशी में प्रवचन करते थे। दूर-दूर तक उनकी ख्याती फैल चुकी थी। कहते हैं जहाँ गुलाब वहाँ काँटे, जहाँ चन्दन वहाँ विषैले सर्प, ऐसे ही जहाँ सर्वसुहृद लोकसंत वहाँ निंदक-कुप्रचारकों का होना स्वाभाविक है। उसमें भी विधर्मियों की साजिश के तहत हमारे ही संतों के खिलाफ, संस्कृति व परम्पराओं के खिलाफ हमारे ही लोगों को भड़काने का कार्य अनेक सदियों से चलता आया है। काशी में तुलसीदासजी की बढ़ती ख्याति देखकर साजिशों की श्रृंखला को बढ़ाते हुए काशी के कुछ पंडितों को तुलसीदासजी के खिलाफ भड़काया गया। वहाँ कुप्रचारकों का एक टोला बन गया, जो नये-नये वाद-विवाद खड़े करके गोस्वामी जी को नीचा दिखाने में लगा रहता था। परंतु जैसे-जैसे कुप्रचार बढ़ता, अनजान लोग भी सच्चाई जानने के लिए सत्संग में आते और भक्ति के रस से पावन होकर जाते, जिससे संत का यश और बढ़ता जाता था।

अपनी सारी साजिशें विफल  होती देख विधर्मियों ने कुप्रचारक पंडितों के उस टोले को ऐसा भड़काया कि उऩ दुर्बुद्धियों ने गोस्वामी जी को काशी छोड़कर चले जाने के लिए विवश किया। प्रत्येक परिस्थिति में राम-तत्त्व का दर्शन व हरि-इच्छा की समीक्षा करने वाले तुलसीदास जी काशी छोड़कर चल दिये। जाते समय उन्होंने एक पत्र लिख के शिवमंदिर के अंदर रख दिया। उस पत्र में लिखा था कि ʹहे गौरीनाथ ! मैं आपके नगर में रहकर रामनाम जपता था और भिक्षा माँगकर खाता था। मेरा किसी से वैर-विरोध, राग-द्वेष नहीं है परंतु इस चल रहे वाद-विरोध में न पड़कर मैं आपकी नगरी से जा रहा हूँ।ʹ

भगवान भोलेनाथ संत पर अत्याचार कैसे सह सकते थे ! संत के जाते ही शिवमंदिर के द्वार अपने-आप बन्द हो गये। पंडितों ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया पर द्वार न खुले। कुछ निंदकों के कारण पूरे समाज में बेचैनी-अशांति फैल गयी, सबके लिए संत-दर्शन व शिव-दर्शन दोनों दुर्लभ हो गये। आखिर लोगों ने भगवान शंकर से करुण प्रार्थना की। भोलेनाथ ने शिवमंदिर के प्रधान पुजारी को सपने में आदेश दियाः “पुजारी ! स्वरूपनिष्ठ संत मेरे ही प्रकट रूप होते हैं। तुलसीदास जी का अपमान कर निंदकों ने मेरा ही अपमान किया है। इसीलिए मंदिर के द्वार बंद हुए हैं। अगर मेरी प्रसन्नता चाहते हो तो उन्हें प्रसन्न कर काशी में वापस ले आओ वरना मंदिर के द्वार कभी नहीं खुलेंगे।”

भगवान अपना अपमान तो सह लेते हैं परंतु संत का अपमान नहीं सह पाते। निंदक सुधर जायें तो ठीक वरना उऩ्हें प्रकृति के कोप का भाजन अवश्य बनना पड़ता है।

अगले दिन प्रधान पुजारी ने सपने की बात पंडितों को कह सुनायी। समझदार पंडितों ने मिलकर संत की निंदा करने वाले दुर्बुद्धियों को खूब लताड़ा और उन्हें साथ ले जाकर संत तुलसीदासजी से माफी मँगवायी। सभी ने मिलकर गोस्वामी जी को काशी वापस लौटने की करूण प्रार्थना की। संत श्री के मन में तो पहले से ही कोई वैर न था, वे तो समता के ऊँचे सिंहासन पर आसीन थे। करूणहृदय तुलसीदासजी उन्हें क्षमा कर काशी वापस आ गये। शिवमंदिर के द्वार अपने-आप खुल गये। संत दर्शन और भगवद्-दर्शन से सर्वत्र पुनः आनंद-उल्लास छा गया।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2013, पृष्ठ संख्या 15, अंक 247

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शिष्य को जोड़े सदगुरु सेः संप्रेषण शक्ति


पूज्य बापू जी

शरीर का श्रृंगार तो रात को बिखर जाता है लेकिन अपने ʹमैंʹ का श्रृंगार तो मौत के बाद भी सुवास देता है। जैसे शबरी का शरीर तो मर गया लेकिन उसके श्रृंगार की सुवास अभी भी है। की बार शिष्यों को सपने में गुरु प्रेरणा देते हैं। कई बार ध्यान में प्रेरणा देते हैं। कई बार भावों से भरा हुआ शिष्य जो कहता है वैसा हो जाता है अथवा जो होने वाला होता है, शिष्य को पूर्व-सूचना मिल जाती है। ऐसी-ऐसी गुरु-शिष्यों के संबंधों की कई ऐतिहासिक गाथाएँ हैं। ये घटनाएँ ʹसंप्रेषण शक्तिʹ के प्रभाव से होती है।

संप्रेषण शक्ति का आभास तब होता है जब शिष्य मनोमय और विज्ञानमय शरीर में पहुँचता है। अन्नमय शरीर (स्थूल शरीर) और प्राणमय शरीर से तो वह आता है लेकिन गुरु के सान्निध्य में एकाकार होकर शिष्य मनोमय और विज्ञानमय शरीर में पहुँचता है।

संप्रेषण शक्ति का माध्यमः गुरुमंत्र

जैसे मोबाइल फोन के टावर से तुम्हारे मोबाइल में ध्वनि की विद्युत चुम्बकीय तरंगे आती हैं तो बीच में सिम कार्ड की व्यवस्था है, ऐसे ही गुरु और ईश्वर की अध्यात्म-शक्ति की तरंगे जिस सिम कार्ड से शिष्य के अंदर संचार करती हैं उसका नाम है गुरुमंत्र। सिम कार्ड तो एक्सपायर हो जाता है और मनुष्य का बनाया हुआ है लेकिन मंत्र मनुष्य का बनाया हुआ नहीं है। ऋषि मंत्र के द्रष्टा हैं, ऋषियों ने भी नहीं बनाया है। गुरु जब मंत्र देते हैं तो मनोमय और विज्ञानमय शरीर के साथ आत्मिक स्तर पर गुरु-शिष्य का संबंध हो जाता है। मंत्र एक माध्यम बन जाता है, जोड़ देता है गुरु की शक्ति के साथ। गुरु मंत्रदीक्षित साधक को संप्रेषित कर देते हैं। बौद्धिक प्रदूषणों से दूर कर देते हैं। उसके द्वारा कोई गलती होती है तो तुरंत उसको एहसास होता है। जो निगुरा है वह गलत करेगा तो भी उसे गलती नहीं लगेगी। सगुरा गलत करेगा तो उसको गलती दिखेगी, उसकी बुद्धि में गुरुमंत्र का प्रकाश है। गुरुमंत्र के प्रकाश से चित्त ऐसा प्रकाशित होता है कि विज्ञान की वहाँ दाल नहीं गलती। विश्लेषण, गणित और आधुनिक विज्ञान से यह अलग प्रकाश है।

जैसे पयहारी बाबा को पृथ्वीराज चौहान न कहा किः “मैं आपको द्वारिका ले जाऊँगा।”

वे बोलेः “तू क्या ले जायेगा ! मैं तुझे ले जाऊँगा।”

बाबा रात को पृथ्वीराज चौहान के कमरे में प्रकट हो गये। पृथ्वीराज चौहान को द्वारिकाधीश का दर्शन करा के सुबह होने के पहले अपने कमरे में पहुँचा दिया। यहाँ विज्ञान तौबा पुकार जायेगा। मेरे गुरुजी मुझे याद करके कुछ दे रहे हैं, तुरंत पता चल जाता। ऐसे ही कोई शिष्य याद करता है तो गुरु के चित्त में उसका स्फुरण हो जाता है।

यह जो गुरुओं की परम्परा है और संप्रेषण शक्ति से रूपांतरण है, वह और किसी साधन से नहीं हो सकता है। संत तुलसीदास जी कहते हैं-

यह फल साधन ते न होई।

गुरुकृपा ही केवलं शिष्यस्य परं मंगलम्।

परम मंगल तो गुरु की कृपा से ही होता है, बिल्कुल पक्की बात है। मेरा तो क्या, मेरे जैसे अऩेक संतों का अनुभव है।

सपने में गुरुदर्शन देता अदभुत संकेत

सपने में सिर पर गुरु जी हाथ रख रहे हैं तो यह समझ लेना कि गुरु जी का आशीर्वाद आया है। सपने में गुरु जी से बात कर रहे हैं तो समझो गुरु जी सूझबूझ का धन देना चाहते हैं। सपने में गुरुजी को हम स्नेह कर रहे हैं तो प्रेमाभक्ति का प्रकाश होने वाला है। अगर आप सपने में चाहते हैं कि हमारे सिर पर गुरु जी हाथ रखें तो आपके अंदर आशीर्वाद पचाने की क्षमता आ रही है। यह इसका गणित है। अगर आपकी आँखें गुरुजी सपने में बंद कर देते हैं तो आपको स्थूल दृष्टि से पार सूक्ष्म दृष्टि गुरु जी देना चाहते हैं। सपने में गुरुजी तुमसे या किसी से बात करते हुए दिखते हैं तो मानो तुम पर बरसना चाहते हैं।

भक्ति आरम्भ में मंदिर, गिरजाघर, पूजा-स्थल पर होती है लेकिन सच्ची भक्ति सदगुरु की दीक्षा के बाद शुरु होती है। उसके पहले तो के.जी. में सफाई करना होता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2013, पृष्ठ संख्या 20,21 अंक 247

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शरीर शुद्धिकर फलः नींबू


नींबू अनुष्ण अर्थात् न अति उष्ण है, न अति शीत। यह उत्तम जठराग्निवर्धक, पित्त व वातशामक, रक्त, हृदय व यकृत की शुद्धि करने वाला, कृमिनाशक तथा पेट के लिए हितकारी है। हृदयरोगों को ठीक करने के लिए यह अंगूर से भी अधिक गुणकारी सिद्ध हुआ है। इसमें प्रचुर मात्रा में उपलब्ध विटामिन ʹसीʹ शरीर की रोगप्रतिकारक शक्ति को बढ़ाता है।

आधुनिक खानपान, मानसिक तनाव एवं प्रदूषित वातावरण से शरीर में सामान्य मात्रा से कहीं अधिक अम्ल (एसिड) उत्पन्न होता है, जिसके शरीर पर होने वाले परिणाम अत्यंत घातक हैं। यह अतिरिक्त अम्ल कोशिकाओं को क्षति पहुँचाकर अकाल वार्धक्य व धातुक्षयजन्य रोग  उत्पन्न करता है।

नींबू स्वाद में अम्ल में परन्तु पाचन के उपरान्त इसका प्रभाव मधुर हो जाता है। यह माधुर्य अम्लता को आसानी से नष्ट कर देता है। एक गिलास गर्म पानी में एक नींबू व 25 तुलसी के पत्तों का रस मिला के हफ्ते में 2 से 4 दिन पीने से शरीर में संचित विषाक्त द्रव्य, हानिकारक जीवाणु व अतिरिक्त चर्बी नष्ट होकर कई गम्भीर रोगों से रक्षा होती है।

डॉ. रेड्डी मेलर के अनुसार ʹकुछ दिन ही नींबू का सेवन रक्त को शुद्ध करने में अत्यधिक मदद करता है। शुद्ध रक्त शरीर को खूब स्फूर्ति व मांसपेशियों को नयी ताकत देता है।ʹ

औषधीय प्रयोग

अम्लपित्त (एसिडिटी)- नींबू पानी में मिश्री व सेंधा नमक मिला के पीने से अम्लपित्त में राहत मिलती है। रोग पुराना हो तो गुनगुने पानी में नींबू निचोड़कर सुबह खाली पेट कुछ दिनों तक नियमित लेना चाहिए।

पेट की गड़बड़ियाँ- भोजन से पूर्व नींबू, अदरक व सेंधा नमक का उपयोग अरुचि, भूख की कमी, गैस, कब्ज, उलटी व पेटदर्द में लाभदायी है।

यूरिक एसिड की वृद्धिः राजमा, उड़द, पनीर जैसे अधिक प्रोटीनयुक्त पदार्थों का अति  सेवन करने से शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे जोड़ों में खासकर एड़ी में दर्द होने लगता है। सुबह खाली पेट गुनगुने पानी में नींबू का रस लेने से यह यूरिक एसिड पेशाब के द्वारा निकल जाता है। इसमें नींबू की आधी मात्रा में अदरक का रस मिलाना विशेष लाभदायी है।

मुँह के रोगः नींबू मुँह में कीटाणुओं की वृद्धि को रोकता है। भोजन के बाद नींबू-पानी से कुल्ला करने से मुँह की दुर्गन्ध ठीक हो जाती है।

विटामिन ʹसीʹ की कमी से होने वाले स्कर्वी रोग में मसूड़ों से खून आने लगता है, दाँत हिलने लगते हैं। कुछ दिनों तक नींबू के सेवन से व एक नींबू के रस को एक कटोरी पानी में मिलाकर कुल्ले करने से इसमें लाभ होता है। नींबू का छिलका मसूड़ों पर घिसने से मसूड़ों से मवाद आना बंद हो जाता है।

पेशाब की जलनः मिश्रीयुक्त नींबू पानी उपयुक्त है।

हैजाः नींबू का रस हैजे को कीटाणुओं को शीघ्रता से नष्ट करता है।

उपवास के दिन गुनगुने पानी में नींबू का रस व शहद मिला के पीने से शरीर की शुद्धि होकर स्फूर्ति आती है।

रस की मात्राः 5 से 10 मि.ली.

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2013, पृष्ठ संख्या 32, अंक 247

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