पत्रकारिता का चरित्र बना अविश्वसनीय

पत्रकारिता का चरित्र बना अविश्वसनीय


समाज की श्रद्धा को संत ईश्वर से जोड़ते हैं। वे अपनी सुख-सुविधा की परवाह नहीं करते। वे कष्ट सहकर भी निरपेक्ष भाव से समाज तथा संस्कृति के उत्थान में स्वयं को लगा देते हैं। बहती-उफनती इस विचित्र संसार नदी पर वे स्वयं सेतु बन जाते हैं ताकि लोग पार हो जायें। परंतु संस्कृति-विरोधियों एवं विकृत मानसिकतावाले देश के गद्दारों को देश व समाज की उन्नति सहन नहीं होती। और जब उन्हें अपना उल्लू सीधा होते नहीं दिखता तो ऐसे लोग ही संत-महापुरुषों को बदनाम करने का षड्यन्त्र रच लेते हैं। इसमें साथ निभाता है  मीडिया का वह तबका जो बिकाऊ व देशद्रोही है। यह घटना ऐसे मीडिया की करतूतों को बेनकाब करती है।

स्वामी विवेकानंदजी द्वारा विदेशों में वैदिक सदज्ञान का डंका बजाये जाने से ईसाई मिशनरीवाले बौखला गये। उन्होंने अमेरिका, यूरोप आदि के अनेक समाचार पत्रों में विवेकानंद जी पर तरह-तरह के घृणित चारित्रिक आरोप लगाये और खूब कीचड़ उछाला पर विवेकानंदजी उससे जरा भी विचलित नहीं हुए। कुछ विदेशी कुप्रचारक समाचार पत्रों ने स्वामी जी की छवि बिगाड़ने के उद्देश्य से उनका इंटरव्यू भी लिया, जिससे उनकी दूषित मनोवृत्ति का परिचय मिलता है। ‘बोस्टन डेली एडवरटाइडर’ से एक पत्रकार ‘ब्लू बारबर’ उनका इंटरव्यू लेने आया। प्रस्तुत हैं कुछ अंशः (प्रश्नकर्ता आरोप लगाते हुए)

प्रश्नः आपके दुराचरण से परेशान होकर मिशीगन के पूर्व गवर्नर की पत्नी श्रीमती वागले ने अपनी नाबालिग नौकरानी को निकाल दिया। यह सब अखबारों में छपा है। आपको क्या कहना है ?

उत्तरः इसके लिए कृपया आप श्रीमती वागले से पूछें और उनकी बात पर विश्वास करें। …और सोचने-समझने की यदि शक्ति हो, नीर-क्षीर विवेकी बनने की इच्छा हो तो उस नौकरानी से जाकर पूछें। थोड़ा परिश्रम तो करना पड़ेगा।

प्रश्नः इस विषय में आपको कुछ नहीं कहना ?

उत्तरः नहीं।

प्रश्नः श्री हेल ने अपनी पुत्रियों को आपसे मिलने से रोका है ?…. क्यों ?

उत्तरः उनकी दोनों अविवाहित पुत्रियाँ यहाँ मेरे साथ बैठी हुई हैं। …उनसे पूछकर देखिये – परन्तु मेरे सम्मुख नहीं, अलग से।

विवेकानंद जी ने कुछ रुककर कहाः “आप भाग्यशाली हैं। श्री वागले और उनकी नौकरानी, जिसे आपके अखबार ने विवश होकर, ‘निकालना पड़ा’ ऐसा लिखा है, वे आ रही हैं।”

ब्लू बारबर सकपका गया। उसे ठंड में पसीने आ गये और झेंप के कारण पसीन पोंछ नहीं सका।

विवेकानंद जी ने कहाः “ब्लू बारबर ! कृप्या आप अपना पसीना पोंछ लें। मुझे खेद है कि यहाँ पत्रकारिता का चरित्र अविश्वसनीय है। यह यहाँ के विकास के लिए अशुभ लक्षण हैं। मुझे और कुछ नहीं कहना है और जो कहा है, वह छपेगा भी नहीं।”

वे उठकर चल दिये। पत्रकार पसीना पोंछता रह गया। स्वामी विवेकानंदजी को आज सारी दुनिया जानती है परंतु लोगों को गुमराह करने का भयंकर अपराध करके अपने कुल-खानदान को भी कलंकित करने वाले  निंदक नष्ट-भ्रष्ट हो गये।

वरिष्ठ पत्रकार श्री अरूण रामतीर्थंकर कहते हैं- “पहले केवल प्रिंट मीडिया थी जो निर्दोष संतों को भी दोषी साबित करने में लगी रहती थी, परंतु वर्तमान में इलेक्ट्रानिक मीडिया ने तो सारी हदें पार कर दी हैं। मिशनरियों के गुलाम बिकाऊ मीडिया को पूरे देश में क्या हो रहा है – इससे कोई मतलब नहीं। आकाश छूती पेट्रोल आदि की कीमतें, रूपये का अवमूल्यन, आत्महत्या करते किसान आदि जनसाधारण के हितों से जुड़ी खबरों को प्रमुखता देना इनकी फितरत में नहीं है, इन्हें तो बस कहीं से कोई भारतीय संस्कृति-विरोधी खबर मिल जाय, फिर चाहे वह झूठी अफवाह ही क्यों न हो, उसे ये अच्छे से मसाला लगा के चटपटी खबर बनाकर करोड़ों देशवासियों को भ्रमित करने में देर नहीं करते।

सच्चाई तो यह है कि कुछ मीडिया के पक्षपाती, राष्ट्र-विघातक रवैये से भारत लोकतांत्रिक देश है या नहीं – यह सवाल हर नागरिक के मन में उठ रहा है। और क्यों न उठेगा, हम देख रहे हैं कि संत आशारामजी के समर्थन में पिछले 45-50 दिनों से सत्याग्रह करते करोड़ों देशवासियों की आवाज इनके कानों तक नहीं पहुँची लेकिन किराये के चार लोग अगर किसी संत के विरोध में दो नारे लगा दें तो दिनभर ‘ब्रेकिंग न्यूज’ चलाते रहेंगे। समाज, देश तथा विश्व का मंगल करने वाले संतों को बदनाम कर उनके राष्ट्रहितकारी सेवाकार्यों में बाधा पैदा करना – यही इनका उद्देश्य हो गया है। अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए ये दिन भर अनर्गल कहानियाँ बना-बनाकर जनमानस विकृत करने का प्रयास करते हैं।

मेरा मानना है कि ऐसे बिकाऊ मीडिया के षड्यंत्र से देश की रक्षा के लिए ‘ए टू ड’ व ‘सुदर्शन’ जैसे सच्चे, स्वदेशी, संस्कृतिप्रेमी चैनलों की जरूरत है, जिससे पत्रकारिता की विश्वसनीयता बनी रहे।”

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2013, पृष्ठ संख्या 30,10 अंक 250

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