Monthly Archives: November 2013

सफलता की महाकुंजीः शिव संकल्प – पूज्य बापू जी


वेद कहता हैः जब भी आप संकल्प करो तो शिव-संकल्प करो। ‘अरे ! ये ऐसा बोलते हैं, वैसा बोलते हैं… क्या करें बचपन में ऐसा हो गया था, मेरी किसी ने सँभाल नहीं ली…. क्या करें, मैं पढ़ नहीं पाया, क्या करें, आजकल ऐसा हो गया है….।’ – यह नकारात्मक चिंतन जो है न, आपकी योग्यताओं को निगल जायेगा। फरियादवाला चिंतन न करो। अपने चिंतन की धारा ऊँची बनाओ – एक बात। दूसरी बात क्रिया से चिंतन ऊँचा है और चिंतन करते-करते चिंतन जहाँ से होता है उस परमात्मा में विश्रांति बड़ी ऊँची चीज है।

घर से जाओ खा के तो बाहर मिले पका के।

घर से जाओ भूखे तो बाहर मिले धक्के।।

तो आप अपने घर से अर्थात् परमात्मा से सुबह जब नींद से उठो तो थोड़ी देर शांत हो जाओ, निश्चिंत नारायण की प्रीति में विश्रांति पाओ। तन्मे मन शिवसंकल्पमस्तु। मेरा मन सदैव शुभ विचार ही किया करे।’ हमारे शिव संकल्प हों। समझो आप बिमार हो। तो ऐसा शिव-संकल्प करो कि ‘मेरा पड़ोसी स्वस्थ हो, मुझे गाली देनेवाला भी स्वस्थ हो। मैं बीमार हूँ यह कल्पना है। सब स्वस्थ रहो, स्वस्थ रहो….’ आप स्वास्थ्य बाँटो। वे स्वस्थ होंगे तब होंगे, आपका दूसरों के लिए शिव संकल्प आपको अभी स्वास्थ्य दे देगा।

‘मैं दुःखी हूँ, दुःखी हूँ। इसने दुःख दिया और इसको ठीक करूँ….’ तो वह ठीक हो चाहे न हो लेकिन तुम बेठीक हो जाओगे। जो फरियाद करते हैं, नकारात्मक सोचते हैं, दूसरों पर दोषारोपण करते हैं वे अपने लिए ही खाई खोदने का काम करते हैं।

पागल से भी गया बीता कौन ?

कोई आदमी अपने हाथ से शरीर के टुकड़े कर दे तो उसको आप क्या बोलोगे ? बोलेः ‘वह पागल है।’ पागल भी ऐसा नहीं कर सकता। करता है क्या पागल ? अपने शरीर के चिप्स बनाता है क्या ? पागल से भी वह गया बीता है। उससे भी ज्यादा वह व्यक्ति गया बीता है जो अपने जीवन को नकारात्मक विचारों से काट रहा है। शरीर के चिप्स करो, टुकड़े करो तो एक ही शरीर की बलि होगी, लेकिन अपने को नकारात्मक विचारों से जो काट रहा है, वह मरने के बाद भी न जाने कहाँ जाये….!

वास्तव में हम चैतन्य हैं और भगवान के हैं और भगवान हमारे परम हितैषी हैं, सुहृद हैं और जो कुछ हो गया अच्छा हुआ, जो कुछ हो रहा है अच्छा है, जो होगा वह भी अच्छा ही होगा क्योंकि यह नियम हमारे सच्चे परमेश्वर की सरकार का है।

जो नकारात्मक व्यक्ति है वह घर में भी बेचैन रहेगा, पड़ोस में भी बेचैन रहेगा और किसी से बात करेगा तो  सामने वाला भी उससे ज्याददा देर बात करने में सहमत नहीं होगा परंतु जिसका विधेयात्मक जीवन है वह प्रसन्न रहेगा। तुमको अनुभव होता होगा कि कुछ ऐसे व्यक्ति हैं जिनसे आप मिलते हो तो आपको लगता होगा कि ‘बला जाय, जान छूटे….’, “अच्छा ठीक है, ठीक है….” जान छुड़ाने में लगते हो। और कुछ ऐसे व्यक्ति हैं कि ‘अरे ! भइया, थोड़ा-सा और रुको न….’ तो जो प्रसन्न रहता है और विधेयात्मक विचारवाला है, वह हर क्षेत्र में प्यारा होता है और सफल होता है। ॐ ॐ प्रभु जी ॐ…..ॐ ॐ प्यारे जी ॐ…..

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2013, पृष्ठ संख्या 4, अंक 251

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‘राज्य महिला आयोग’ को नहीं मिली आशाराम जी बापू के खिलाफ कोई शिकायत


दैनिक जागरण, नई दिल्ली। ‘गुजरात  महिला आयोग’ की अध्यक्ष लीला बहन अंकोलिया के नेतृत्व में एक महिला पुलिस अफसर और जाँच दल ने आशारामजी बापू के मोटेरा (अहमदाबाद) स्थित  महिला आश्रम का दौरा किया। एसआईटी आयोग की टीम ने सभी महिलाओं से एक-एक करके अकेले में पूछताछ की और यह जानने की कोशिश की कि कहीं कोई महिला आशाराम बापू के द्वारा प्रताड़ित तो नहीं की गयी है। लेकिन आयोग को कोई भी शिकायत नहीं मिली।

उल्लेखनीय है कि आश्रम से निकाले गये कुछ गद्दारों ने अपनी गंदी जुबान से जो मनगढ़ंत, कल्पित कहानियाँ रचीं, उन्हें पुख्ता सबूतों के तौर पर पेश कर  मीडिया ने कई स्टोरियाँ रचीं और खुद भी मनगढ़ंत आरोप-पर-आरोप लगाये। लेकिन कहते हैं न कि ‘साँच को आँच नहीं। सत्यमेव जयते।’ गुजरात महिला आयोग की जाँच में जो सत्य सामने आया, उसने अनर्गल, झूठे आरोप लगाने वाले अमृत प्रजापति, महेन्द्र चावला तथा उन्हीं के आरोपों को दोहराने  वाले  मीडिया की पोल खोलकर रख दी है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2013, पृष्ठ संख्या 17, अंक  251

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मीडिया की स्वतन्त्रता बन रही बेकाबू – पत्रकार श्री अरुणेश सी. दवे


भारत में संविधान की जिस संवैधानिक तरीके से बेइज्जती की जाती है वैसा उदाहरण किसी और देश में मिलना मुश्किल है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया को आजादी होने का मतलब यह नहीं कि किसी भी आदमी की इज्जत तार-तार करने का हक हासिल हो गया है। फिलहाल मामला आशारामजी का है, जिन्हें ‘बलात्कारी, धोखेबाज और शातिर’ सिद्ध करने का अभियान हमारी मीडिया ने जोर-शोर से चलाया हुआ है। भारत के पढ़े लिखे युवा से लेकर दिग्गज बुद्धिजीवी, मानवाधिकार के हनन के खिलाफ दिन-रात एड़ियाँ घिसने वाले लोग भी सहर्ष सुर-से-सुर  मिलाकर आशारामजी को कोसने में लगे हैं।

ऐसा नहीं है कि आशारामजी मीडिया की इस आदत के पहले शिकार हैं। निठारी कांड के संदिग्ध रहे पंधेर नरपिशाच के रूप में दिखाया गया था। लेकिन पुलिस जाँच पूर्ण होने पर पता चला कि वह किसी भी हत्याकाँड में शामिल नहीं था। उस आदमी का पूरा जीवन आर्थिक और सामाजिक रूप से तबाह हो गया। उसे और उसके परिवार को हुई क्षति की कोई भरपाई नहीं कर सकता।

इसी प्रकार बापू जी पर एक लड़की के यौन-शोषण का जो आरोप है, उसमें पुलिस की कार्यवाही  का प्रसारण एवं पुलिस द्वारा बनाये गये केस एवं उसकी तफ्तीश के नतीजे को जनता के सामने लाना मीडिया का कर्तव्य है। लेकिन विभिन्न सूत्रों का हवाला देकर अपुष्ट तथ्य जनता के सामने पेश करना तथा आरोपी के खिलाफ जनमत तैयार करना मीडिया का काम नहीं है।

क्या सच है, क्या नहीं यह अदालत को तय करना है। एक न्यूज चैनल ‘आशारामजी द्वारा 2000 बच्चियों के साथ ‘यौन-शोषण’ की खबर चला रहा था। क्या यह तथ्य पुलिस द्वारा प्रमाणित है ? क्या पुलिस कको अपनी तफ्तीश के दौरान ऐसी कोई जानकारी मिली है ? इसके पहले भी आशारामजी के सेवादार  के पास उनकी अश्लील क्लिपिंग मिलने का दावा चैनलों ने किया था जो कि बाद में हवा-हवाई सिद्ध हुआ।

मीडिया को आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है। जो कोई वर्ग ‘सेल्फ रेग्युलेशन’ (स्वनियंत्रण) के अधिकार का पात्र बना दिया जाता है तो उसकी नैतिक जिम्मेदारियाँ भी बहुत अधिक बढ़ जाती है। लेकिन दुर्भाग्यवश भारत की न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका और मीडिया – चारों स्तम्भ बहुत तेजी से अपना सम्मान खोते जा रहे हैं। किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2013, पृष्ठ संख्या 15, अंक  251

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