सर्वोन्नति का अमोघ साधन माता पिता का आशीर्वाद

सर्वोन्नति का अमोघ साधन माता पिता का आशीर्वाद


पूज्य बापू जी

(मातृ-पितृ पूजन दिवसः 14 फरवरी)

माँ-बाप की शुभ कामना बड़ा काम करती है। माता का आशीर्वाद जिन्होंने भी लिया, उन्होंने बड़े ऊँचे-ऊँचे पद को पाया, और ऐसे कई व्यक्तियों को मैं जानता हूँ। मैंने सुनी है संतों से एक कथा। एक  बड़ा अमीर लड़का था। पिता मर गये और खूब धन था।  लोफरों के संग में इतना लोफर हुआ की वेश्याओं के पास जाता। एक बार वह एक नामी वेश्या के पास गया। कभी-कभी बुरे आदमियों में भी अच्छाई छुपी होती है। वह वेश्या भी कोई खानदानी लड़की थी, किसी गलती से वेश्या हो गयी थी। उसने पहचाना कि ‘यह तो नगरसेठ का बेटा है और इसका पिता मर गया है। मेरे पास यह तबाह हो जायेगा।’

उसने बोलाः “नहीं।”

लड़का बोलाः “तू जितने पैसे माँगेगी मैं दूँगा, मुझे तेरे साथ प्रेम करने दे।”

“नहीं, पहले जो मैं माँगू वह दे।”

वह नशे-नशे में बोलाः “हाँ, जो माँगेगी मैं ला देता हूँ।”

“तेरी माँ  का कलेजा ले आ। फिर तू मेरे साथ जो भी कर।”

माँ जब सोई थी तब उस शराबी ने  मारा छुरा, माँ का कलेजा निकाला। नशे-नशे में उतर रहा था तो सीढ़ी से गिरा, माँ के कलेजे से आवाज आयी, ‘बेटा ! तुझे चोट तो नहीं लगी।’ ओह माँ ! तू कैसी है ! अपनी पीड़ा भूल गयी और बच्चे की पीड़ा से माँ का हृदय पीड़ित हो रहा है।

मेरी माँ जब ज्यादा उम्र की हो गयी थी, 80-85 साल की हो गयी होगी, तब मैंने उनको कहाः “माँ, तुम्हारे हाथ की रोटियाँ बना दो, तुम्हारे  को परिश्रम तो पड़ेगा लेकिन तुम्हारे हाथ की एक बार रोटी खिला दो मेरे को।” मुझे पता था कि  मेरी माँ की उम्र हो गयी है, उसके लिए परिश्रम है रोटी बनाना लेकिन फिर भी माँ के हाथ की रोटी का मुझे पहले इतना स्वाद  लगा हुआ था कि मेरे लिए हजारों लोग रोटी लाने वाले हैं फिर भी मैंने माँ को कहाः “माँ आप मेरे लिए रोटी बना दो।” और मैं आपको पक्का विश्वासपूर्वक कहता हूँ, मुझे याद है कि माँ ने रोटी बनायी और मैंने खायी, और ऐसा नहीं कि बचपन की बात है, आशाराम बापू बनने के बाद बात है।

माँ  के मन में जो भाव होता है वह बच्चा जाने-न-जाने लेकिन बच्चे का मंगल होता है। उसमें भगवदीय भाव, वात्सल्य होता है। ‘मातृदेवो भव। पितृदेवो भव।’ माता-पिता, गुरुदेव भले कभी डाँटते हुए दिखें, नाराज होते हुए दिखें फिर भी  हमारा मंगल ही चाहते हैं।

माता-पिता तो वैसे ही बच्चों पर मेहरबान होते हैं लेकिन बच्चे-बच्चियाँ जब अपने माँ-बाप में भगवनबुद्धि करके उनके पूजन करेंगें तो माता-पिता के हृदय में भगवान तो हैं ही हैं…. अतः 2 मैं तो चाहता हूँ कि माता-पिता के हृदय में सुषुप्त भगवान जाग्रत होकर उन पर छलकें तो माता-पिताओं का भी भला और बच्चे-बच्चियों का भी परम भला होगा।

और तुम्हारी संतानें कितनी भी  बुरी हों लेकिन 14 फरवरी को उन बेटे बेटियों ने अगर तुम्हारा पूजन कर लिया तो तुम आज तक की उनकी गलतियाँ माफ करने में देर नहीं कर सकते हो और तुम्हारा दिलबर देवता उन पर प्रसन्न होने  में और आशीर्वाद बरसाने में देर नहीं करूँगा, मैं निष्ठापूर्वक कहता हूँ।

त्रिलोचन बनाये मातृ-पितृ पूजन

ईसाई बोलेंगे, ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस हमारे ईसाईयत के खिलाफ है।’ नहीं-नहीं, ईसाईयत के खिलाफ नहीं है। माता-पिता का पूजन गणेश जी ने किया था और शिव पार्वती का परमेश्वर तत्त्व छलका था और शरीर विज्ञानी जिसे ‘पीनियल ग्रंथी’ बोलते हैं, हम उसे ‘शिवनेत्र’ बोलते हैं। शिव-पार्वती ने गणेश जी के ललाट पर स्पर्श कर दिया था और तीसरा ज्ञान का नेत्र खुल गया। ऐसे ही मेरे भारत के और विश्व के सभी लोग भले ईसाई भाई हों, मुसलमान भाई बहनें हों अपने बच्चे-बच्चियों के ललाट पर (जहाँ तिलक लगाते हैं) स्पर्श कर दिया करो। माँ-बाप का स्पर्श तीसरा नेत्र खोलने में सहायक होता है। भले उस समय नहीं खुले तो कभी-न-कभी खुलेगा, बच्चे-बच्चियों की सूझबूझ बढ़ेगी, शातिर कर्म से बचेंगे, कुकर्म से बचेंगे। यह तीसरे नेत्र में बड़ी शक्ति है। इससे बच्चे-बच्चियों को आध्यात्मिक आभा जागृत करने वाले केन्द्र को विकसित करने का अवसर मिलेगा।

गणेश जी के शिवनेत्र पर शिवजी का स्पर्श हो गया था तो सिर्फ शिवजी ही ‘शिवजी’ नहीं हैं, तुम्हारे अंदर भी शिव आत्मसत्ता है। तुम्हारा भी स्पर्श अपने बच्चे के लिए शिवजी का ही वरदान समझ लेना। तुम्हारे बच्चे और बच्चियों के ललाट पर तिलक करने वाली उँगली लगाकर ‘त्रिलोचनो भव। अप्प दीपो भव। अपना दीया, अपना प्रकाशक आप बन। यह बाहर की आँखों से जगत देखते हो बेटी-बेटा ! तुम्हारी ज्ञान की आँख जगे गुरुकृपा से, भगवत्कृपा से, माता-पिता की आत्म-कृपा से।’ – ऐसा आशीर्वाद देना तो इससे बच्चों का भला होगा, होगा, होगा ही ! और बच्चों के माँ-बाप के हृदय के भगवान भी प्रसन्न होंगे। शिशु पैदा हुआ हो तो उस समय भी मन में ॐ…. ॐ परमात्मने नमः।’ जपते हुए  माताओं का बच्चे के भ्रूमध्य पर स्पर्श कर देना बड़ा हितकारी है।

14 फरवरी को बच्चे-बच्चियों के ललाट पर भ्रूमध्य में माता-पिता का भावभीना स्पर्श और माता-पिता के चरणों में बच्चे-बच्चियों का आदरसहित सद्भाव समर्पित हो। माता-पिता के हृदय की दुआ बड़ी महत्त्व रखती है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी  2014, पृष्ठ संख्या 12, अंक 253

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