शीतकाल में बलसंवर्धनार्थः

शीतकाल में बलसंवर्धनार्थः


मालिश

शीतकाल बलंसवंर्धन का काल है। इस काल में सम्पूर्ण वर्ष के लिए शरीर में शक्ति का संचय किया जाता है। शक्ति के लिए केवल पौष्टिक, बलवर्धक पदार्थों का सेवन ही पर्याप्त नहीं है अपितु  मालिश (अभ्यंग), आसन, व्यायाम भी आवश्यक हैं। शीतकाल में मालिश विशेष लाभकारी हैं। आयुर्वेद के श्रेष्ठ आचार्य श्री सुश्रुताचार्य जी कहते हैं-

प्राणाश्च स्नेहभूयिष्ठाः स्नेह साध्याश्च भवन्ति।

‘मनुष्य का जीवन स्नेह पर आधारित है तथा उसकी रक्षा भी स्नेह द्वारा ही होती है।’

(सुश्रुत चिकित्सास्थानः 31.3)

संस्कृत में स्नेह का अर्थ चिकनाई या तैल भी होता है। ‘स्वास्थ्य संहिता’ के अनुसार घी का सेवन करने से 8 गुनी ज्यादा शक्ति उतनी ही मात्रा में तैल-मर्दन अर्थात्  मालिश से  मिलती है।

तेल से नियमित की गयी मालिश सतत कार्यरत शरीर में दृढ़ता, आघात सहने की क्षमता व प्रतिक्षण होने वाली शरीर की क्षतिपूर्ति करती है। स्नायुओं व अस्थियों को पुष्ट कर शरीर को मजबूत व सुडौल बनाती है। मालिश से त्वचा स्निग्ध, मुलायम व कांतियुक्त बनती है, त्वचा पर झुर्रियाँ जल्दी नहीं आतीं। ज्ञानेन्द्रियाँ व कर्मेन्द्रियाँ दीर्घकाल तक कार्यक्षम रहती हैं। वृद्धावस्था देर से आती है। मालिश एक श्रेष्ठ वायुशामक चिकित्सा भी है। पैर के तलुओं की मालिश करने से नेत्रज्योति बढ़ती है, मस्तिष्क शांत हो जाता है व नींद गहरी आती है।  मालिश से शारीरिक व मानसिक श्रम से उत्पन्न थकान मिटती है। मन प्रसन्न व उत्साहित रहता है। नियमित मालिश से व्यक्तित्व आकर्षित बनता है।

उपयुक्त तेलः मालिश के लिए तिल का तेल सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह उष्ण व हलका होने से शरीर में शीघ्रता से फैलकर स्रोतसों की शुद्धि करता है। यह उत्तम वायुनाशक व बलवर्धक भी है। स्थान, ऋतु, प्रकृति के अनुसार सरसों,  नारियल अथवा औषधसिद्ध तेलों (आश्रम में उपलब्ध आँवला तेल) का भी उपयोग किया जा सकता है। सिर के लिए ठंडे व अन्य अवयवों  लिए गुनगुने तेल का उपयोग करें।

मालिश कालः मालिश प्रातःकाल में करनी चाहिए। धूप की तीव्रता बढ़ने पर व भोजन के पश्चात न करें।

प्रतिदिन पूरे शरीर की की मालिश सम्भव न हो तो नियमित सिर व पैर की मालिश तथा कान, नाभि में तेल डालना चाहिए।

सावधानीः मालिश के बाद ठंडी हवा में न घूमें। 15-20 मिनट बाद सप्तधान्य उबटन या बेसन अथवा मुलतानी मिट्टी लगाकर गुनगुने पानी से स्नान करें। नवज्वर, अजीर्ण व कफप्रधान व्याधियों में मालिश न करें। स्थूल व्यक्तियों में अनुलोम गति से अर्थात् ऊपर से नीचे की ओर मालिश करें।

खजूर खाओ, सेहत बनाओ !

खजूर मधुर, शीतल, पौष्टिक व सेवन करने के बाद तुरंत शक्ति-स्फूर्ति देने वाला है। यह रक्त, मांस व वीर्य की वृद्धि करता है। हृदय व मस्तिष्क को शक्ति देता है। वात, पित्त व कफ इन तीनों दोषों का शामक है। यह मल व  मूत्र को साफ लाता है। खजूर में कार्बोहाइड्रेटस, प्रोटीन्स, कैल्शियम, पौटैशियम, मैग्नेशियम, फॉस्फोरस, लौह आदि प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। ‘अमेरिकन कैंसर सोसायटी’ के अनुसार शरीर को एक दिन में 20-35 ग्राम डायटरी फाइबर (खाद्य पदार्थों में स्थित रेशा) की जरूरत होती है, जो खजूर खाने से पूरी हो जाती है।

खजूर रात भर पानी में भिगोकर सुबह लेना लाभदायक है। कमजोर हृदयवालों के लिए यह विशेष उपयोगी है। खजूर यकृत (लीवर) के रोगों में लाभकारी है। रक्ताल्पता में इसका   नियमित सेवन लाभकारी है। नींबू के रस में खजूर की चटनी बना कर खाने से भोजन की अरुचि मिटती है। खजूर का सेवन बालों को लम्बे, घने और मुलायम बनाता है।

औषधि-प्रयोग

मस्तिष्कक व हृदय की कमजोरीः रात को खजूर भिगोकर सुबह दूध या घी के साथ खाने से मस्तिष्क व हृदय की पेशियों को ताकत मिलती है। विशेषतः रक्त की कमी के कारण होने वाली हृदय की धड़कन व एकाग्रता की कमी में यह प्रयोग लाभदायी है।

शुक्राल्पताः खजूर उत्तम वीर्यवर्धक। गाय के घी अथवा बकरी के दूध के साथ लेने से शुक्राणुओं की वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त अधिक मासिक स्राव, क्षयरोग, खाँसी, भ्रम (चक्कर), कमर व हाथ पैरों का दर्द एवं सुन्नता तथा थायरॉयड संबंधी रोगों में भी यह लाभदायी है।

कब्जनाशकः खजूर में रेचक गुण भरपूर है। 8-10 खजूर 200 ग्राम पानी में भिगो दें, सुबह मसलकर इनका शरबत बना लें। फिर इसमें 300 ग्राम पानी और डालकर गुनगुना करके खाली पेट चाय की तरह पियें। कुछ देर बाद दस्त होगा। इससे आँतों को बल और शरीर को स्फूर्ति भी मिलेगी। उम्र के अनुसार खजूर की मात्रा कम-ज्यादा करें।

नशा-निवारकः शराबी प्रायः नशे की झोंक में इतनी शराब पीते हैं कि उसका यकृत नष्ट होकर मृत्यु का कारण बन जाता है। इस स्थिति में ताजे पानी में खजूर को अच्छी तरह मसलते हुए शरबत बनायें। यह शरबत पीने से शराब का विषैला प्रभाव नष्ट होने लगता है।

आँतों की पुष्टिः खजूर आँतों के हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है, साथ ही खजूर के विषिष्ट तत्त्व ऐसे जीवाणुओं को जन्म देते हैं जो आँतों को विशेष शक्तिशाली तथा अधिक सक्रिय बनाते हैं।

हृदयरोगों में– लगभग 50 ग्राम गुठलीरहित छुहारे (खारक) 250 मि.ली. पानी में रात को भिगो दें। सुबह छुहारों को पीसकर पेस्ट बना के उसी बचे हुए पानी में घोल लें। इसे प्रातः खाली पेट पी जाने से कुछ ही माह में हृदय को पर्याप्त सबलता मिलती है। इसमें 1 ग्राम इलायची चूर्ण मिलाना विशेष लाभदायी है।

तन-मन-की पुष्टिः दूध में खजूर उबाल के बच्चों को देने से उन्हें शारीरिक-मानसिक पोषण मिलता है व शरीर सुदृढ़ बनता है।

शैयामूत्रः जो बच्चे रात्रि में बिस्तर गीला करते हों, उन्हें दो छुहारे रात्रि में भिगोकर सुबह दूध में उबाल के दें।

बच्चों के दस्त में– बच्चों के दाँत निकलते समय उन्हें बार-बार हरे दस्त होते हों या पेचिश पड़ती हो तो खजूर के साथ शहद को अच्छी तरह फेंटकर एक-एक चम्मच दिन में 2-3 बार चटाने से लाभ होता है।

सावधानीः आजकल खजूर को वृक्ष से अलग करने के बाद रासायनिक पदार्थों के द्वारा  सुखाया जाता है। ये रसायन शरीर के लिए हानिकारक होते हैं। अतः उपयोग करने से पहले खजूर को अच्छी तरह धो लें। धोकर सुखाने के बाद इन्हें विभिन्न प्रकार से उपयोग किया जा सकता है।

मात्राः 5 से 7 खजूर अच्छी तरह धोकर रात को भिगो के सुबह खायें। बच्चों के लिए 2-4 खजूर पर्याप्त हैं। दूध या घी में मिलाकर खाना विशेष लाभदायी है। होली के बाद खजूर खाना हितकारी नहीं है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2014, पृष्ठ संख्या 31, अंक 253

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