देश में यौन-उत्पीड़न के मामलों की बाढ़ः न्यायालय

देश में यौन-उत्पीड़न के मामलों की बाढ़ः न्यायालय


केन्द्र सरकार कानून में जरूरी संशोधन करे – मा. न्यायाधीश वीरेन्द्र भट्ट

बलात्कार एवं यौन उत्पीड़न से संबंधित नये कानूनों की आड़ में पिछले एक वर्ष में यौन उत्पीड़न और बलात्कार के झूठे मामलों की बाढ़ आ गयी है। मार्च 2013 में एक व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज हुआ परंतु जाँच में आरोप झूठा पाया गया। इस पर दिल्ली की एक अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह महिला के खिलाफ झूठा मुकद्दमा दर्ज कराने के संबंध में कार्यवाही करे और रिपोर्ट पेश करे। एक परिचित व्यक्ति से उस महिला ने 10 हजार रुपये उधार लिये थे। रूपये वापस माँगने पर महिला ने उसे अपने घर बुलाया तथा उससे और पाँच हजार रुपये छीन के उस कमरे में बंद कर दिया और बलात्कार का आरोप लगाकर पुलिस में शिकायत की। इसके बाद पुलिस के समक्ष महिला ने समझौता करते हुए 40 हजार रुपये और लिये। बाद में उस व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया। जब यह पता चला कि उस महिला ने छः सात लोगों पर अलग-अलग थानों में ऐसे ही मुकद्दमे दर्ज करा रखे हैं और यह तथ्य अदालत के समक्ष आये तब उस महिला ने विपक्षी वकील को भी सबक सिखाने की धमकी दी तथा उस वकील पर भी थाने में बलात्कार का मामला दर्ज करा दिया।

‘यह केवल एक वारदात नहीं, ऐसे कई झूठे मामलों के चलते दिल्ली को ‘रेप कैपिटल’ कहा जाने लगा है।‘ – यह टिप्पणी करते हुए जुलाई 2013 में दिल्ली की एक अन्य अदालत ने एक 75 वर्षीय बुजुर्ग को दुष्कर्म के झूठे मामले में बरी कर दिया था। बुजुर्ग पर घरेलु नौकरानी ने बलात्कार करने का झूठा आरोप लगाया था लेकिन बाद में वह अपने बयान से पलट गयी और कहा कि ‘मैंने एक महिला और एक अन्य व्यक्ति के कहने पर यह आरोप लगाया था।’

दिल्ली के ही एक फास्ट ट्रैक कोर्ट की न्यायाधीश निवेदिता अनिल शर्मा ने भी बलात्कार के एक मामले में आरोपी को बरी करते हुए टिप्पणी की कि ‘इन दिनों बलात्कार या यौन-शौषण के झूठे मुकद्दमे दर्ज कराने का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है, जो चिंताजनक है। इस तरह के चलन को रोकना बेहद जरूरी है।’ आरोपी पर उस नौकरानी ने बलात्कार का झूठा आरोप लगाया था।

हाल ही में देश की ऐसी गम्भीर अवदशा को देखते हुए सत्र न्यायाधीश वीरेन्द्र भट्ट ने द्वारका फास्ट ट्रैक कोर्ट में झूठे दुष्कर्म से जुड़े एक और मामले में आरोपी को बरी करते हुए कहाः

“दिल्ली में चलती बस में रेप की घटना के बाद माहौल ऐसा बन गया है कि यदि कोई महिला बयान दे देती है कि उसके साथ रेप हुआ है तो उसे ही अंतिम सत्य मान लिया जाता है और कथित आरोपी को गिरफ्तार कर उसके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया जाता है। इसके चलते देश में यौन उत्पीड़न के झूठे मामलों की बाढ़ सी आ गयी है, अपराध के आँकड़े बढ़ रहे हैं। अतः दुष्कर्म के झूठे मामले में फँसाने पर आरोपी को मुआवजा देने के आदेश का अधिकार अदालत के पास होना चाहिए। केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह इस दिशा में जरूरी कानूनी संशोधन करे। इसके लिये या तो धारा 347 में संशोधन किये जायें या फिर एक नयी धारा जोड़ने की जरूरत है। ऐसे मामलों में अदालत को सशक्त किया जाना चाहिए ताकि वह दुष्कर्म के झूठे आरोप से मुक्त आरोपी को मुआवजा देने का आदेश राज्य या ऐसा मामला दायर करने वाले को दे सके।”

इस मामले में अदालत ने सख्ती दिखाते हुए शिकायतकर्ता द्वारा अदालत के समक्ष झूठे सबूत पेश करने के लिए सीआरपीसी की धारा 344 के अंतर्गत उस पर अलग से मामला चलाने का भी आदेश दिया। आरोप लगाने वाली महिला ने मार्च 2013 में पुलिस में मामला दर्ज कराया था, जिसमें उसने बताया कि आरोपी ने उसके साथ दुष्कर्म किया और मामले का खुलासा करने पर उसे व उसकी बेटी को मारने की धमकी भी दी। मुकद्दमे की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कथित पीड़िता के बयानों में कई जगह विरोधाभास देखा और बाद में पूरे मामले को झूठा पाया।

न्यायाधीश ने आगे कहा कि ‘दुष्कर्म के कई मामले ऐसे होते हैं जिनमें आरोपी को झूठा फँसाया जाता है। इस दौरान आरोपी को पुलिस हिरासत में या जेल में जाना पड़ता है और मानसिक, शारीरिक प्रताड़ना के साथ सामाजिक तिरस्कार के दौर से गुजरना पड़ता है। बाद में जब सुनवाई के दौरान उस पर लगे आरोप झूठे साबित होते हैं, तब भी उसके लिए समाज में जीना कष्टकर होता है। इन बातों को देखते हुए दुष्कर्म के झूठे मामलों में बरी हुए लोगों को मुआवजा पाने का पूरा हक है।”

(दैनिक जागरण के आधार पर)

गरीबों-आदिवासियों की अथक रूप से सेवा में संलग्न रहने वाले, उनका धर्म-परिवर्तन रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और देशवासियों में भारतीय संस्कृति के प्रति आस्था व स्वाभिमान जगाने वाले पूज्य बापू जी और उनके परिवार को भी झूठे मामलों में फँसाया गया है। अब देखना यह है कि सरकार इन तीव्र गति से बढ़ते झूठे बलात्कार के मामलों की रोकथाम के लिए कौन से अहम कदम उठाती है।

ऋषि प्रसाद, फरवरी 2014, पृष्ठ संख्या 5,6 अंक 254

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