संस्कृति की रक्षा व सेवा के लिए संगठित हो जाओ – पूज्य बापू जी

संस्कृति की रक्षा व सेवा के लिए संगठित हो जाओ – पूज्य बापू जी


 

(26 फरवरी 2006 को नासिक में किया गया सत्संग)

मेरे से किसी ने पूछाः “जयेन्द्र सरस्वती महाराज को आपने कैसे बुलाया ? उन पर तो आरोप था !”

अरे, वे निर्दोष सज्जन, संत ! मैंने उनको हृदयपूर्वक, अच्छी तरह से  परखा है। वे ऐसा कर नहीं सकते और अभी झूठा आरोप तो किसी पर भी लग जाता है, उन पर भी झूठा आरोप है तो क्या मैं उनको संत की नजर से न देखूँ ? क्या आज फैशन नहीं बन गया झूठे केस बनाना ?

मेरे हृदय की आवाज थी कि ‘ये निर्दोष व्यक्ति अगर धर्मांतरण करने वालों को अड़चनरूप होने से जेल चले जाते हैं या दोषी करार दिये जाते हैं तो हमारी संस्कृति का क्या होगा ? हमारे देश का क्या होगा ?’ मुझे लगा कि जयेन्द्र सरस्वती पर जुल्म हो रहा है। मेरा उनसे पहले कोई परिचय नहीं था लेकिन मेरे अंतरात्मा की आवाज थी इसलिए मैं जाकर सड़क पर बैठ गया।

जब जयेन्द्र सरस्वती जी पर आरोप लग सकते हैं…. और उनका वकील कहता है कि ‘ऐसा बोगस केस मैंने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं देखा….’ इतने प्रसिद्ध व्यक्ति पर भी झूठे आरोप लग सकते हैं तो महाराज ! जिन बेचारे साधुओं की वकील करने की ताकत नहीं है, दौड़-धूप करने की ताकत नहीं है, ऐसे साधुओं और धर्म के छोटे-मोटे प्रचार करने वालों के साथ तो कितना जुल्म हो रहा है। हे भगवान ! उन बेचारों निर्दोष लोगों पर जुल्म न हो। हमारी संस्कृति के पहरेदार फँसाये न जायें खामखाह झूठे केसों में ! हे भोलेनाथ ! सबको सदबुद्धि दो।

आपस में संगठित हो जाओ। जुल्म करना पाप है, जुल्म सहना दुगुना पाप है।

धर्मो रक्षति रक्षितः। हिन्दुस्तानी अपनी संस्कृति की सेवा नहीं करेंगे, अपने धर्म की रक्षा हम लोग नहीं करेंगे तो क्या विदेशी आकर हमारी हिन्दू संस्कृति का, भारतीय संस्कृति का रक्षण करेंगे ? वे तो आपकी संस्कृति को तोड़कर, आपको डराकर राज्य करने के स्वप्न देख रहे हैं। आपके देश को खंडित करके अलग-अलग राज्य और अलग-अलग देश बनाने के स्वप्न देख रहे हैं। क्या आप अब भी सोये रहेंगें ? नहीं। आप सावधान रहो, जगो। अपने पड़ोस के भाई धर्मांतरित होते हैं तो उनको घर वापसी लाने का कार्यक्रम बनाओ। हमारे हिन्दूस्तान के जो लोग बहकावे में आकर धर्मांतरित हो गये, वे अगर हमारे शिवमंदिर में फिर से आते हैं तो हमें खुशी है। वे अपनी भूल को सँवारने के लिए यदि आने को तैयार हो जाते हैं घर-वापसी कार्यक्रम में तो हम सभी को मिलकर उन बेचारों को घर-वापसी कार्यक्रम में  ले आना चाहिए। अपने-अपने इलाके में यज्ञ करके, पूजा करके उनके फिर वापस अपने धर्म में लाना चाहिए। ये हम सभी हिन्दूस्तानियों का कर्तव्य है।

किसी के साथ जुल्म होता है, अन्याय होता है या झूठे केस होते हैं तो संगठित होकर उसकी मदद करो। अब कहाँ उनका चेन्नई और कहाँ अहमदाबाद ! मेरा दिल पिघला, व्यथित हो गया तो कहीं अनर्थ होने आपका दिल भी पिघलेगा। जहाँ भी सुनाई पड़े कि ‘ऐसा यहाँ ठीक  नहीं हो रहा है’ अथवा अपनी अंतरात्मा बोले, परिस्थिति बोले तो आप यथायोग्य उसको सहयोग करो, मदद करो। बहुत बेचारे  निर्दोष लोग फँसाये जाते हैं, सेटिंग हो जाती है।

कुछ लोग मेरे को बोलते हैं कि ‘उन पर तो आरोप है….’ अरे, निर्दोष आदमी फँस गया है और उनको हम हृदयपूर्वक निर्दोष मानते हैं, उनको हमने बुलाया है तो अपने आत्मसंतोष के लिए बुलाया है, हमें किसी की परवाह नहीं करनी है। निंदा-स्तुति को हम चरणों तले रख देते हैं, हमने अपना कर्तव्य निभाया है। भारतीय संस्कृति का एक संत झूठे-मूठे केस में अपराधियों की श्रेणी में धकेला जाय और हम चुप बैठें तो फिर हमारा बापू जी होना या संत होना क्या काम का होता है ?

गुरुतेगबहादुर बोलिया, सुनो सिखो बड़भागियाँ।

धड़ दीजिये धर्म न छोड़िये।।

स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।

अपने धर्म में मर जाना कबूल है, दूसरे का धर्म दुःखदायी, भयावह (भय को देने वाला) है। मैं अपना धर्म क्यों छोड़ूँ ? ॐॐॐ…. आत्मशक्ति गुंजाओ।

अपनी सनातन संस्कृति की विशेषता विदेशी लोग गा रहे हैं। फ्रांस के विद्वान रोमा रोलां ने कहा हैः “मैंने यूरोप और एशिया के सभी धर्मों का अध्ययन किया है परंतु मुझे उन सबमें हिन्दू धर्म ही सर्वश्रेष्ठ दिखायी देता है। मेरा विश्वास है कि इसके सामने एक दिन समस्त जगत को सिर झुकाना पड़ेगा।” चीन की दीवार, कुवैत का पेट्रोलियम और अमेरिका के डॉलर मशहूर हैं लेकिन भारतीय संस्कृति और भारत के संत आत्मा से मुलाकात कराने की योग्यता में अभी भी विश्व में मशहूर हैं, आप क्या समझ रहे हैं !

भारत के संत-महापुरुष खाली हाथ जाते हैं और उनको चेला बनाकर आ जाते हैं, यह क्या चमत्कार देखते हो ! यह भारतीय संस्कृति का प्रसाद ही तो है, नहीं तो जो लोग हमारे देश को नोचने आये थे, वे हमारे चेले कैसे बनेंगे ? और अभी भी हजारों-हजारों विदेशी इधर आ जाते हैं भारत के संतों-महापुरुषों के पास। क्यों आते हैं ? कि हमारीर संस्कृति शांति देने में, ज्ञान देने में, सब कुछ देने में सक्षम है। सभी धर्मों के लिए हमें स्नेह है, धन्यवाद है, प्रेम है लेकिन भारतीय संस्कृति, मेरी  मातृभूमि भारत देश ने दुनिया को जो दिया है…. दुनियावालों ने तो यहाँ आकर भारत का शोषण किया है लेकिन भारत के संतों ने और भारत के लोगों ने दुनिया में जाकर क्या क्या किया है !

‘पार्लियामेंट ऑफ रिलीजन्स’ में मैंने गर्जना कर डाली थी कि हमारी देश के आदमी अमेरिका या और देशों में जहाँ भी गये हैं और अपने-अपने क्षेत्र में खूब परिश्रम किया है। कम्पयूटर के क्षेत्र में, इसमें-उसमें… अगर भारतवासियों का परिश्रम नहीं होता तो वे देश आज इतने उन्नत नहीं होते। यह भारत का दिमाग और भारत का परिश्रम ही उनको चमकाने में सहयोग कर रहा है। विदेशी मानव भी तो मेरी आत्मा है भैया ! विश्वमानव का मंगल हो। इसलिए आज विश्व को बमों की जरूरत नहीं है, आतंक की जरूरत नहीं है, शोषकों की जरूरत नहीं है, विश्व को अगर जरूरत है तो भारतीय संस्कृति के योग की, ज्ञान की और वसुधैव कुटुम्बकम् के भाव की जरूरत है, विश्व में उपद्रव की नही, शांति की जरूरत है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2014, पृष्ठ संख्या 4,5 अंक 256

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