Monthly Archives: April 2014

पॉक्सो एक्ट पर पुनर्विचार कर करें बंद


राष्ट्रपति ने गृह मंत्रालय को अग्रेषित किया पत्र

राज एक्सप्रेस, नई दुनिया, जनपक्ष (छिंदवाड़ा)। देश में दामिनी कांड के बाद बने रेप के नये सख्त कानूनों के दुरुपयोग को लेकर शहर के सामाजिक कार्यकर्ता भगवानदीन साहू ने दिनांक 7-12-2013 को जिला कलेक्टर, छिंदवाडा के माध्यम से राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपकर पॉक्सो एक्ट पर पुनर्विचार कर उसे शीघ्र बंद करने की मांग की है।

ज्ञापन में उल्लेख था कि ये कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए  लागू किये गये थे लेकिन कानून के लागू होने के बाद से महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध और बढ़ गये हैं। साथ ही देश में इन कानूनों का घोर दुरुपयोग हो रहा है। कुछ गिने चुने दुष्कर्मियों के कारण देश के 65 करोड़ पुरुषों के साथ अन्याय हो रहा है। झूठे रेप केसों के बढ़ते आँकड़ों को देखकर सभ्य परिवारों के पुरुषों एवं महिलाओं को डर लग रहा है। इसके कारण कई सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थान अब महिलाओं को नौकरी नहीं दे रहे हैं तथा नौकरी के पेशेवाली महिलाओं के साथ डर के कारण भेदवाला व्यवहार किया जा रहा है। यह सब महिलाओं के हित में नहीं है। आज देश में भुखमरी, बेरोजगारी, अशिक्षा का प्रतिशत ज्यादा है। आज भी देश में कई  महिलाएँ अपना शरीर बेचकर परिवार का भरण-पोषण करती हैं। इन गरीब महिलाओं को थोड़ा बहुत पैसे का लालच देकर किसी पर भी झूठा आरोप लगाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। देश में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले हैं। जैसे –

संत आशाराम बापू- इन्होंने पूरे विश्व में आध्यात्मिक क्रांति लायी एवं करोड़ों-करोड़ों लोगों को दुर्व्यसनों से छुटकारा दिलाया, साथ ही धर्मांतरण पर भी रोक लगायी। इसी वजह से विरोधी लोग इनकी ताक में बैठे थे।

उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ए.के.गांगुली- ये पश्चिम बंगाल के राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष थे। इन्होंने 2जी स्पैक्ट्रम घोटाले में 122 टेलिकॉम कम्पनियों के लाइसेंस रद्द किये थे, जिससे इन कम्पनियों को अरबों रूपयों का नुक्सान सहना पड़ा। शायद इसी वजह से उनके विरोधी लोग इनकी ताक में बैठे थे।

ऐसे कई उदाहरण देश के सामने आये हैं। इन सब बातों से श्री साहू ने राष्ट्रपति जी को अवगत कराया। माननीय राष्ट्रपति जी ने विषय की गम्भीरता को देखते हुए 7 फरवरी 2014 को भारत सरकार के गृह मंत्रालय को पत्र क्रमांक पी1-ए-0702140105 के माध्यम से साहू जी के प्रतिवेदन को समुचित कार्यवाही हेतु भेज दिया है, जिसकी एक प्रति आवेदक को भी भिजवायी गयी।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2014, पृष्ठ संख्या 18, अंक 256

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

गर्मियों में क्या करें, क्या न करें ?


इस ऋतु में वात का शमन करने वाले तथा शरीर में जलीय अंश का संतुलन रखने वाले मधुर, तरल, सुपाच्य, हलके, ताजे, स्निग्ध, रसयुक्त, शीत-गुणयुक्त पौष्टिक पदार्थों का सेवन करना चाहिए।

आहारः पुराने साठी के चावल, दूध, मक्खन तथा गाय के घी के सेवन से शरीर में शीतलता, स्फूर्ति और शक्ति आती है। सब्जियों में लौकी, कुम्हड़ा(पेठा), परवल, हरी ककड़ी, हरा धनिया, पुदीना और फलों में तरबूज, खरबूजा, नारियल, आम, मौसमी, सेब, अनार, अंगूर का सेवन लाभदायी है।

नमकीन, रूखे, बासी, तेज मिर्च-मसालेदार तथा तले हुए पदार्थ, अमचूर, अचार इमली आदि तीखे, खट्टे, कसैले एवं कड़वे रसवाले पदार्थ न खायें।

कच्चे आम को भूनकर बनाया गया मीठा पना, नींबू-मिश्री का शरबत, हरे नारियल का पानी, फलों का ताजा रस, ठंडाई, जीरे की शिकंजी, दूध और चावल की खीर, गुलकंद तथा गुलाब, पलाश, मोगरा आदि शीतल व सुगंधित द्रव्यों का शरबत जलीय अंश के संतुलन में सहायक हैं।

धूप की गर्मी व लू से बचने के लिए सिर पर कपड़ा रखना चाहिए एवं थोड़ा-थोड़ा पानी पीते रहना चाहिए। उष्ण वातावरण से ठंडे वातावरण में आने के बाद तुरंत पानी न पियें, 10-15 मिनट के बाद ही पियें। फ्रिज का नहीं, मटके या सुराही का पानी पियें।

विहारः इस ऋतु में प्रातः पानी प्रयोग अवश्य करना चाहिए। वायु-सेवन, योगासन, हलका व्यायाम एवं तेल मालिश लाभदायक है।

रात को देर तक जागना और सुबह देर तक सोये रहना त्याग दें। अधिक व्यायाम, अधिक परिश्रम, धूम में टहलना, अधिक उपवास, भूख प्यास सहना तथा स्त्री-सहवास – ये सभी इस ऋतु में वर्जित हैं।

गर्मियों के लिए सरल प्रयोगः

अम्लपित्त शांत करने के लिए-

जौ, गेहूँ या चावल का सत्तू मिश्री के साथ खायें।

भोजन के बाद आँवले का रस पियें।

शहद, केला, अदरक, धनिया आदि सेवनीय हैं।

रात को 3 से 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें।

घमौरियाँ ठीक करने के लिए

घमौरियों पर मुलतानी मिट्टी का लेप करने अथवा गाय का गोबर मलने से ठंडक मिलती है था चुभन व खुजली मिटती है।

घमौरियों पर राख मलें।

नकसीर का इलाज-

दूर्वा और आँवला ठंडे पानी में पीसकर मस्तक पर लेप करने पर नाक से खून गिरना बंद होता है।

प्याज का रस  नाक में डालें।

देशी गाय के घी को ठंडे पानी से 7 बार धोकर  मस्तक पर लेप करें।

शरीर की जलन दूर करने के लिएः

जौ के सत्तू में मिश्री मिलाकर खायें।

ठंडा पानी पियें तथा आँवले के पानी में महीन वस्त्र भिगोकर ओढ़ें।

धनिया रात भर ठंडे पानी में भिगो दें। प्रातः घोंट-छानकर मिश्री के साथ पियें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2014, पृष्ठ संख्या 30, अंक 256

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

बुफे सिस्टम नहीं, भारतीय भोजन पद्धति है लाभप्रद


 

आजकल सभी जगह शादी-पार्टियों में खड़े होकर भोजन करने का रिवाज चल पड़ा है लेकिन हमारे शास्त्र कहते हैं कि हमें नीचे बैठकर ही भोजन करना चाहिए। खड़े होकर भोजन करने से हानियाँ तथा पंगत में बैठकर भोजन करने से जो लाभ होते हैं वे निम्नानुसार हैं।

खड़े होकर भोजन करने से हानियाँ बैठकर(या पंगत में) भोजन करने से लाभ
यह आदत असुरों की है। इसलिए इसे राक्षसी भोजन पद्धति कहा जाता है। इसे दैवी भोजन पद्धति कहा जाता है।
इसमें पेट, पैर व आँतों पर तनाव पड़ता है, जिससे गैस, कब्ज, मंदाग्नि, अपचन जैसे अनेक उदर विकार व घुटनों का दर्द, कमरदर्द आदि उत्पन्न होते हैं। कब्ज अधिकतर बिमारियों का मूल है। इसमें पैर पेट व आँतों की उचित स्थिति होने से उन पर तनाव नहीं पड़ता।
इससे जठराग्नि मंद हो जाती है, जिससे अन्न का सम्यक् पाचन न होकर अजीर्णजन्य कई रोग उत्पन्न होते हैं। इससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है, अन्न का पाचन सुलभता से होता है।
इससे हृदय पर अतिरिक्त भार पड़ता है, जिससे हृदयरोगों की सम्भावनाएँ बढ़ती हैं। हृदय पर भार नहीं पड़ता।
पैरों में जूते चप्पल होने से पैर गरम रहते हैं। इससे शरीर की पूरी गर्मी जठराग्नि को प्रदीप्त करने में नहीं लग पाती। आयुर्वेद के अनुसार भोजन करते समय पैर ठंडे रहने चाहिए। इससे जठराग्नि प्रदीप्त होने में मदद मिलती है। इसीलिए हमारे देश में भोजन करने से पहले हाथ पैर धोने की परम्परा है।

 

बार-बार कतार में लगने से बचने के लिए थाली में अधिक भोजन भर लिया जाता है, फिर या तो उसे जबरदस्ती ठूँस-ठूँसकर खाया जाता है जो अऩेक रोगों का कारण बन जाता है अथवा अन्न का अपमान करते हुए फेंक दिया जाता है। पंगत में एक परोसने वाला होता है, जिससे व्यक्ति अपनी जरूरत के अनुसार भोजन लेता है। उचित मात्रा में भोजन लेने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है व भोजन का भी अपमान नहीं होता।
जिस पात्र में भोजन रखा जाता है, वह सदैव पवित्र होना चाहिए लेकिन इस परम्परा में जूठे हाथों के लगने से अन्न के पात्र अपवित्र हो जाते हैं। इससे खिलाने वाले के पुण्य नाश होते हैं और खाने वालों का मन भी खिन्न-उद्विग्न रहता है। भोजन परोसने वाले अलग होते हैं, जिससे भोजनपात्रों को जूठे हाथ नहीं लगते। भोजन तो पवित्र रहता ही है, साथ ही खाने-खिलाने वाले दोनों का मन आनंदित रहता है।
हो-हल्ले के वातावरण में खड़े होकर भोजन करने बाद में थकान और उबान महसूस होती है। मन में भी वैसे ही शोर शराबे के संस्कार भर जाते हैं। शांतिपूर्वक पंगत में बैठकर भोजन करने से मन में शांति बनी रहती है, थकान उबान भी महसूस नहीं होती।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2014, पृष्ठ संख्या 31, अंक 256

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ