जल है औषध समान

जल है औषध समान


अजीर्णे भेषजं वारि जीर्णे वारि बलप्रदम्।

भोजने चामृतं वारि भोजनान्ते विषप्रदम।।

‘अजीर्ण होने पर जल पान औषधवत् है। भोजन पच जाने पर अर्थात् भोजन के डेढ़ दो घंटे बाद पानी पीना बलदायक है। भोजन के मध्य में पानी पीना अमृत के समान है और भोजन के अंत में विष के समान अर्थात् पाचनक्रिया के लिए हानिकारक है।’ (चाणक्य नीतिः 8.7)

विविध व्याधियों में जल-पान

अल्प जल-पानः उबला हुआ पानी ठंडा करके थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पीने से अरूचि, जुकाम, मंदाग्नि, सूजन, खट्टी डकारें, पेट के रोग, तीव्र नेत्र रोग, नया बुखार और मधुमेह में लाभ होता है।

उष्ण जल-पानः सुबह उबाला हुआ पानी गुनगुना करके दिन भर पीने से प्रमेह, मधुमेह, मोटापा, बवासीर, खाँसी-जुकाम, नया ज्वर, कब्ज, गठिया, जोड़ों का दर्द, मंदाग्नि, अरूचि, वात व कफ जन्य रोग, अफरा, संग्रहणी, श्वास की तकलीफ, पीलिया, गुल्म, पार्श्व शूल आदि में पथ्य का काम करता है।

प्रातः उषापानः सूर्योदय से 2 घंटा पूर्व, शौच क्रिया से पहले रात का रखा हुआ पाव से आधा लिटर पानी पीना असंख्य रोगों से रक्षा करने वाला है। शौच के बाद पानी न पीयें।

औषधिसिद्ध जल

सोंठ जलः दो लिटर पानी में 2 ग्राम सोंठ का चूर्ण या 1 साबूत टुकड़ा डालकर पानी आधा होने तक उबालें। ठंडा करके छान लें। यह जल गठिया, जोड़ों का दर्द, मधुमेह, दमा, क्षयरोग (टी.बी.), पुरानी सर्दी, बुखार, हिचकी, अजीर्ण, कृमि, दस्त, आमदोष, बहुमूत्रता तथा कफजन्य रोगों में बहुत लाभदायी है।

अजवायन जलः एक लिटर पानी में एक चम्मच (करीब 8.5 ग्राम) अजवायन डालकर उबालें। पानी आधा रह जाय तो ठंडा करके छान लें। उष्ण प्रकृति का यह जल हृदय-शूल, गैस, कृमि, हिचकी, अरूचि, मंदाग्नि, पीठ व कमर का दर्द, अजीर्ण, दस्त, सर्दी व बहुमूत्रता में लाभदायी है।

जीरा-जलः एक लिटर पानी में एक से डेढ़ चम्मच जीरा डालकर उबालें। पौना लिटर पानी बचने पर ठंडा कर छान लें। शीतल गुणवाला यह जल गर्भवती एवं प्रसूता स्त्रियों के लिए तथा रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर, अनियमित मासिकस्राव, गर्भाशय की सूजन, गर्मी के कारण बार-बार होने वाला गर्भपात व अल्पमूत्रता में आशातीत लाभदायी है।

ध्यान दें भूखे पेट, भोजन की शुरुआत व अंत में, धूप से आकर, शौच, व्यायाम या अधिक परिश्रम व फल खाने के तुरंत बाद पानी पीना निषिद्ध है।

अत्यम्बुपानान्न विपच्यतेsन्नम् अर्थात् बहुत अधिक या एक साथ पानी पीने से पाचन बिगड़ता है। इसीलिए मुहुर्मुहुवारि पिबेदभूरि। बार-बार थोड़ा-थोड़ा पानी पीना चाहिए।

(भाव प्रकाश, पूर्व खण्डः 5.157)

लेटकर, खड़े होकर पानी पीना तथा पानी पीकर तुरंत दौड़ना या परिश्रम करना हानिकारक है। बैठकर धीरे-धीरे चुस्की लेते हुए बायाँ स्वर सक्रिय हो तब पानी पीना चाहिए।

प्लास्टिक की बोतल में रखा हुआ, फ्रिज का या बर्फ मिलाया हुआ पानी हानिकारक है।

सामान्यतः 1 व्यक्ति के लिए एक दिन में डेढ़ से 2 लिटर पानी पर्याप्त है। देश ऋतु प्रकृति आदि के अनुसार यह मात्रा बदलती है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2014, पृष्ठ संख्या 30, अंक 258

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