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महापुरुषों का भारत को विश्वगुरु बनाने का सत्यसंकल्प श्री नरेन्द्र मोदी जैसे कर्मयोगी द्वारा शीघ्र साकार होगा


हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता और गुरुजनों को प्रणाम करके उनका आशीर्वाद लेना यह जीवन में सफलता की चाबी कही गयी है। भगवान श्रीराम, भगवान श्री कृष्ण, भक्त पुंडलिक, श्रवण कुमार, छत्रपति, शिवाजी, महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री, संत श्री आशाराम जी बापू… ऐसे अनेक संत, महापुरुष, भक्त एवं राजनेता हुए हैं जिन्होंने माता-पिता और गुरुजनों के आदर, वंदन एवं सेवा की पावन मिसाल कायम की।

वर्तमान में भी कुछ ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनका जीवन उपरोक्त संस्कारों से परिपूर्ण है। इनमें से एक हैं भारत के प्रधानंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी। वर्ष 2014 के चुनावों में हासिल हुई जीत के बाद श्री नरेन्द्रभाई मोदी ने सबसे पहले अपनी 96 वर्षीया माँ ‘हीरा बा’ के पास जाकर उनके पैर छुए और आशीर्वाद लिया।

ऐसे संस्कृतिप्रेमी राजनेता भगवान व संतों महापुरुषों की कृपा और करोड़ो-करोड़ों भक्तों साधकों की शुभ-भावना एवं स्नेह प्राप्त कर लेते हैं।

श्री नरेन्द्र मोदी एक जिज्ञासु साधक हैं। उन्होंने अनेक बार पूज्य बापू जी के दर्शन, सत्संग व सान्निध्य का लाभ लिया है। उनके वचनों में- “मैंने तो पूज्य बापू जी को हरियाणा में बैठकर सुना है, पंजाब में भी सुना है, राजस्थान में भी सुना है, उत्तर प्रदेश के गलियारों में सुना है। समग्र राष्ट्र में सामूहिक सत्संग के द्वारा एक नयी चेतना जगी है और उसका एक नया प्रभाव शुरु हुआ है।”

“मेरा ऐसा सौभाग्य रहा है कि जीवन में जब कोई नहीं जानता था, उस समय से बापू जी के आशीर्वाद मुझे मिलते रहे हैं, स्नेह मिलता रहा है। मैं मानता हूँ कि बापू के शब्दों में एक यौगिक शक्ति रहती है। उस यौगिक शक्ति के भरोसे हम करोड़ो गुजरातवासियों के सपने साकार होंगे।”

कुछ वर्ष पूर्व श्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तरायण शिविर के अवसर पर पूज्य बापू जी के दर्शन सत्संग का लाभ लिया तथा शुभाशीष पाये थे। उन्होंने कहा थाः “मैं पूज्य बापू जी के श्रीचरणों में प्रणाम करने आया हूँ। मैं मानता हूँ कि भक्ति से बड़ी दुनिया में कोई ताकत नहीं होती और भक्त हर कोई बन सकता है। हम सबको भक्त बनने की ताकत मिले, आशीर्वाद मिले। मैं समझता हूँ कि संतों के आशीर्वाद ही हम सबकी बड़ी पूँजी होती है।

देशभर से आये हुए आप सबको (सत्संगियों को), एक लघु भारत के रूप में मैं अपने सामने देख रहा हूँ। इस पवित्र धरती पर आये हुए आप सभी को मैं नमन करता हूँ।”

बड़ौदा के सत्संग समारोह में पधारे श्री नरेन्द्रभाई मोदी ने कहा थाः “पूज्य बापू जी ! आप देश और दुनिया – सर्वत्र ऋषि-परम्परा की संस्कार धरोहर को पहुँचाने के लिए अथक तपश्चर्या कर रहे हैं। अनेक युगों से चलते आये मानव कल्याण के इस तपश्चर्या-य5 में आप अपने पल-पल की आहुति देते रहे हैं। उसमें से जो संस्कार की दिव्य ज्योति प्रकट हुई है, उसके प्रकाश में मैं और जनता-सब चलते रहें। मैं संतों के आशीर्वाद से ही जी रहा हूँ। मैं यहाँ इसलिए आया हूँ कि लाइसैंस रिन्यू हो जाये। पूज्य बापू जी ने आशीर्वाद दिया और आप सबको वंदन करने का मौका दिया, इसलिए मैं बापू जी का ऋणी हूँ।”

कुछ साल पहले बापू जी ने श्री नरेन्द्रभाई मोदी को शुभाशीष प्रदान करते हुए कहा था कि “हम आपको देश के प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं।” बापू जी के संकल्प में करोड़ों साधकों भक्तों का संकल्प भी जुड़ गया और आज वह साकार हो चुका है।

संकल्पमूर्ति के लिए इस वर्ष चुनाव के दौरान साधकों ने अनेक स्थानों पर मतदाता जागृति रैलियाँ भी निकालीं एवं देश में परिवर्तन लाकर एक मजबूत, सक्षम सरकार प्रदान कराने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया।

भाजवा एवं सहयोगी दलों के वरिष्ठ राजनेताओं ने समय-समय पर पूज्य बापू जी के सत्संग-दर्शन का लाभ लिया है तथा सुशासन की प्रेरणा प्राप्त की है। बापू जी के प्रति आपके उदगार हैं- “मैं यहाँ पर पूज्य बापू जी का अभिनंदन करने आया हूँ, उऩका आशीर्वचन सुनने आया हूँ….. पूज्य बापू जी सारे देश में भ्रमण करके जागरण का शंखनाद कर रहे हैं, सर्वधर्म-समभाव की शिक्षा दे रहे हैं, संस्कार दे रहे हैं तथा अच्छे और बुरे में भेद करना सिखा रहे हैं। हमारी जो प्राचीन धरोहर थी और जिसे हम लगभग भूलने का पाप कर बैठे थे, बापू जी हमारी आँखों में ज्ञान का अंजन लगाकर उसको फिर से हमारे सामने रख रहे हैं।

बापू जी का प्रवचन सुनकर बड़ा बल मिला है। उनका आशीर्वाद हमें मिलता रहे, उनके आशीर्वाद से प्रेरणा पाकर बल प्राप्त करके हम कर्तव्य के पथ पर निरन्तर चलते हुए परम वैभव को प्राप्त करें, यही प्रभु से प्रार्थना है।

13 दिन के शासनकाल के बाद मैंने कहाः ‘मेरा जो कुछ है, तेरा है।’ यह तो बापू जी की कृपा है कि श्रोता को वक्ता बना दिया और वक्ता को नीचे से ऊपर चढ़ा दिया। जहाँ तक ऊपर चढ़ाया है वहाँ तक ऊपर बना रहूँ, इसकी चिंता भी बापू जी को करनी पड़ेगी।” श्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व प्रधानमंत्री।

यह बात जगजाहिर है कि इसके बाद श्री अटल बिहारी वाजपेयी पहले 13 महीने और फिर 4.5 साल तक प्रधानमंत्री पर रहे।

“मैं जानता हूँ इस सच्चाई को, चाहे इस भारत का कोई मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री क्यों न हो, पूरी पार्टी के द्वारा यदि कोई सार्वजनिक सभा आयोजित करनी हो, तब भी इतनी बड़ा जनसमूह इकट्ठा नहीं किया जा सकता जितना बड़ा जनसमूह आज परम पूज्य बापू जी के दर्शन के लिए यहाँ पर अपनी आँखों के सामने देख रहा हूँ। सुबह 7 बजे से दोपहर 12.30 बजे तक इतनी भीड़ जुटी रहे ऐसा किसी भी मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री की सभा में नहीं हो सकता, जो मैं यहाँ देख रहा हूँ।

हमारे सबके आस्था व विश्वास के केन्द्र परम पूज्य बापू जी के देशभर में तथा दुनिया के दूसरे देशों में जो प्रवचन चलते हैं, उनके द्वारा अध्यात्म की प्रेरणा हम सबको मिलती रहती है। मैं पुनः उनके चरणों में शीश झुकाकर उन्हें हृदय की गहराइयों से प्रणाम करता हूँ।”

श्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष भाजपा, वर्तमान केन्द्रीय गृहमंत्री

“पूज्य बापू जी द्वारा दिया जाने वाला नैतिकता का संदेश देश के कोने-कोने में जितना अधिक प्रसारित होगा, जितना अधिक बढ़ेगा, उतनी ही मात्रा में राष्ट्रसुख संवर्धन होगा, राष्ट्र की प्रगति होगी। जीवन के हर क्षेत्र में इस प्रकार के संदेश की जरूरत  है।”

श्री लाल कृष्ण आडवाणी, पूर्व केन्द्रीय गृहमंत्री एवं उपप्रधानमंत्री

“जगत के हित और प्यारों के कल्याण के लिए जिन्होंने यह देह धारण की है, ऐसे पूज्य बापू जी के चरणों में मैं प्रणाम करता हूँ। आपने जो कुछ बातें कही हैं, हम उनका पालन करेंगे।”

श्री शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश

“महाराज पूज्य बापू जी ! आपका आशीर्वाद बना रहे क्योंकि मैं राज करने नहीं आयी, धर्म और कर्म को एक साथ जोड़कर मैं सेवा करने के लिए आयी हूँ और वह मैं करती रहूँगी। आप रास्ता बताते रहो और इस राज्यरूपी परिवार की सेवा करने की शक्ति देते रहो।

मैं मानती हूँ कि जब गुरु के साक्षात् दर्शन हो गये हैं तो कुछ बदलाव जरूर आयेगा, राज्य की समस्याएँ हल होंगी व हम लोग जनसेवा के काम कर सकेंगे।” वसुन्धरा राजे सिंधिया, मुख्यमंत्री, राजस्थान।

“बापू जी कितने प्रेमदाता हैं कि कोई भी व्यक्ति समाज में दुःखी न रहे इसलिए सतत प्रयत्न करते रहते हैं। जीवन की सच्ची शिक्षा तो हम भी नहीं दे पा रहे हैं, ऐसी शिक्षा तो पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू जैसे संतशिरोमणि ही दे सकते हैं।” श्रीमती आनंदीबेन पटेल, तत्कालीन शिक्षामंत्री, वर्तमान मुख्यमंत्री।

“हम सबका परम सौभाग्य है कि बापू जी के दर्शन हुए। आपसे आशीर्वाद मिला, मार्गदर्शन भी मिला। आपके आशीर्वाद व कृपादृष्टि से छत्तीसगढ़ में सुख-शांति व समृद्धि रहे। यहाँ के एक-एक व्यक्ति के घर में विकास की किरण आये।”

डॉ.रमन सिंह, मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़

“श्रद्धेय पूज्य बापू जी ने मुझे आशीर्वाद दिया है। उनके आशीर्वाद से मुझे समाज में अच्छा कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी।

करोड़ों लोगों को जीवन जीने का मार्ग आपके विचारों से मिलता है। संस्कार और शिक्षा के माध्यम से आपने यह जो लोक-प्रबोधन किया है, इससे हमारे देश में और समाज में अच्छे नागरिक तैयार होंगे जो देश और समाज का गौरव बढ़ाते जायेंगे।” श्री नितिन गडकरी, तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष, भाजपा, वर्तमान केन्द्रीय सड़क परिवहन राजमार्ग एवं जहाजरानी मंत्री

“परम पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू विद्यार्थियों के लिए देश के कोने कोने में आयोजित होने वाले विद्यार्थी तेजस्वी तालीम शिविरों में दुर्लभ एवं विस्मृत यौगिक क्रियाओं एवं अपने शुभ संकल्पों तथा प्रेरणादायी अनुभवसम्पन्न वचनों द्वारा उनमें आध्यात्मिक चेतना का संचार कर भारतीय संस्कृति से अनुप्रमाणित सुसंस्कारों का सिंचन करते हैं।”

डॉ. मुरली मनोहर जोशी, तत्कालीन केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री

“बापू जी की अमृतवाणी का विशेषकर मुझ पर तो बहुत प्रभाव पड़ता है। आपके दर्शनमात्र से ही मुझे एक अदभुत शक्ति मिलती है। इस हिन्दुस्तान में अमन, शांति, एकता एवं भाईचारा बना रहे इसलिए पूज्य बापू जी से आशीर्वाद लेने आया हूँ।” श्री प्रकाश सिंह बादल, मुख्यमंत्री, पंजाब

“हमें आपके मार्गदर्शन की जरूरत है, वह सतत् मिलता रहे। आपने हमारे कंधों पर जो जवाबदारी दी है, उसे हम भलीप्रकार निभायें। लोगों की, संस्कृति की अच्छे ढंग से सेवा करें। सत्य का मार्ग कभी न छूटे, ऐसा आशीर्वाद दो।”

श्री उद्धव ठाकरे, अध्यक्ष, शिवसेना

श्री नरेन्द्र भाई मोदी और इनके सभी साथी देश का नाम बुलंदियों पर ले जायें, भारत में वैदिक संस्कृति का प्रकाश फैलायें। पूज्य बापू जी एवं महापुरुषों का भारत को विश्वगुरु बनाने का सत्यसंकल्प शीघ्र साकार हो। (श्री आर सी मिश्र)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2014, पृष्ठ संख्या 7-9, अंक 258

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जल है औषध समान


अजीर्णे भेषजं वारि जीर्णे वारि बलप्रदम्।

भोजने चामृतं वारि भोजनान्ते विषप्रदम।।

‘अजीर्ण होने पर जल पान औषधवत् है। भोजन पच जाने पर अर्थात् भोजन के डेढ़ दो घंटे बाद पानी पीना बलदायक है। भोजन के मध्य में पानी पीना अमृत के समान है और भोजन के अंत में विष के समान अर्थात् पाचनक्रिया के लिए हानिकारक है।’ (चाणक्य नीतिः 8.7)

विविध व्याधियों में जल-पान

अल्प जल-पानः उबला हुआ पानी ठंडा करके थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पीने से अरूचि, जुकाम, मंदाग्नि, सूजन, खट्टी डकारें, पेट के रोग, तीव्र नेत्र रोग, नया बुखार और मधुमेह में लाभ होता है।

उष्ण जल-पानः सुबह उबाला हुआ पानी गुनगुना करके दिन भर पीने से प्रमेह, मधुमेह, मोटापा, बवासीर, खाँसी-जुकाम, नया ज्वर, कब्ज, गठिया, जोड़ों का दर्द, मंदाग्नि, अरूचि, वात व कफ जन्य रोग, अफरा, संग्रहणी, श्वास की तकलीफ, पीलिया, गुल्म, पार्श्व शूल आदि में पथ्य का काम करता है।

प्रातः उषापानः सूर्योदय से 2 घंटा पूर्व, शौच क्रिया से पहले रात का रखा हुआ पाव से आधा लिटर पानी पीना असंख्य रोगों से रक्षा करने वाला है। शौच के बाद पानी न पीयें।

औषधिसिद्ध जल

सोंठ जलः दो लिटर पानी में 2 ग्राम सोंठ का चूर्ण या 1 साबूत टुकड़ा डालकर पानी आधा होने तक उबालें। ठंडा करके छान लें। यह जल गठिया, जोड़ों का दर्द, मधुमेह, दमा, क्षयरोग (टी.बी.), पुरानी सर्दी, बुखार, हिचकी, अजीर्ण, कृमि, दस्त, आमदोष, बहुमूत्रता तथा कफजन्य रोगों में बहुत लाभदायी है।

अजवायन जलः एक लिटर पानी में एक चम्मच (करीब 8.5 ग्राम) अजवायन डालकर उबालें। पानी आधा रह जाय तो ठंडा करके छान लें। उष्ण प्रकृति का यह जल हृदय-शूल, गैस, कृमि, हिचकी, अरूचि, मंदाग्नि, पीठ व कमर का दर्द, अजीर्ण, दस्त, सर्दी व बहुमूत्रता में लाभदायी है।

जीरा-जलः एक लिटर पानी में एक से डेढ़ चम्मच जीरा डालकर उबालें। पौना लिटर पानी बचने पर ठंडा कर छान लें। शीतल गुणवाला यह जल गर्भवती एवं प्रसूता स्त्रियों के लिए तथा रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर, अनियमित मासिकस्राव, गर्भाशय की सूजन, गर्मी के कारण बार-बार होने वाला गर्भपात व अल्पमूत्रता में आशातीत लाभदायी है।

ध्यान दें भूखे पेट, भोजन की शुरुआत व अंत में, धूप से आकर, शौच, व्यायाम या अधिक परिश्रम व फल खाने के तुरंत बाद पानी पीना निषिद्ध है।

अत्यम्बुपानान्न विपच्यतेsन्नम् अर्थात् बहुत अधिक या एक साथ पानी पीने से पाचन बिगड़ता है। इसीलिए मुहुर्मुहुवारि पिबेदभूरि। बार-बार थोड़ा-थोड़ा पानी पीना चाहिए।

(भाव प्रकाश, पूर्व खण्डः 5.157)

लेटकर, खड़े होकर पानी पीना तथा पानी पीकर तुरंत दौड़ना या परिश्रम करना हानिकारक है। बैठकर धीरे-धीरे चुस्की लेते हुए बायाँ स्वर सक्रिय हो तब पानी पीना चाहिए।

प्लास्टिक की बोतल में रखा हुआ, फ्रिज का या बर्फ मिलाया हुआ पानी हानिकारक है।

सामान्यतः 1 व्यक्ति के लिए एक दिन में डेढ़ से 2 लिटर पानी पर्याप्त है। देश ऋतु प्रकृति आदि के अनुसार यह मात्रा बदलती है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2014, पृष्ठ संख्या 30, अंक 258

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जैसी होवे पात्रता वैसी होवे गुरुकृपा – पूज्य बापू जी


बारिश वही की वही लेकिन सीपी में बूँद पड़ती है तो मोती हो जाती है और खेत में पड़ती है तो भिन्न-भिन्न अन्न, रस हो जाती है और वही पानी गंगा में पड़ता है तो गंगा माता होकर पूजा जाता है, वही पानी नाली में पड़ता है तो उसकी कद्र नहीं, बेचारा कहीं का कहीं धक्के खाता है। ऐसे ही गुरुओं का ज्ञान यदि नाली जैसे अपवित्र हृदय में, अपवित्र वातावरण में निकल आये तो उसका फिर वही हाल हो जाता है। अर्जुन जैसे पवित्र व्यक्ति के आगे ‘गीता’ निकली है तो आज तक पूजी जाती है। शिशुपाल के सामने ‘गीता’ नहीं निकल सकती, ‘गीता’ निकलने के लिए अर्जुन चाहिए। ‘श्रीयोगवाशिष्ठ महारामायण’ बनने के लिए रामजी चाहिए। कबीरजी का ग्रंथ ‘बीजक’ बनने के लिए शिष्य सलूका और मलूका चाहिए। तो सामने जैसे पात्र होते हैं, जैसी उनकी योग्यता होती है, गुरुओं के दिल से भी उसी प्रकार का ज्ञानोपदेश निकलता है।

कैसी हो हमारी पात्रता ॐ

अपनी श्रद्धा, अपना आचरण ऐसा होना चाहिए कि भगवान भी हम पर भरोसा करें कि यहाँ कुछ देने जैसा है, गुरु को भी भरोसा हो कि यहाँ कुछ देंगे तो टिकेगा। गुरु और भगवान तो देने के लिए उत्सुक हैं, लालायित हैं लेकिन लेनेवाली की तैयारी चाहिए। ईश्वर को भरोसा हो जाये इस उद्देश्य से ऐसा कोई बाह्य व्यवहार नहीं करना है क्योंकि ईश्वर तो हमारा बाहर का व्यवहार नहीं देखते, हमारी गहराई जानते हैं।

ईश्वर तो हम पर बड़े करूणाशील हैं, ईश्वर तो अंतर्यामी हैं। दूसरे को तो हम धोखा दे सकते हैं कि ‘हमारी तुम पर श्रद्धा है, हम तो तुम्हारे बिना मर रहे हैं, हम तो जन्म-जन्म के साथी होंगे….’ ऐसे पति-पत्नी को धोखा दे सकते हैं लेकिन ईश्वर को तो धोखा नहीं दे सकते।

जिनको लगन होती है ईश्वर के लिए वे प्रतिकूल परिस्थितियों को भी सहकर ईश्वर के रास्ते चलते हैं और विपरीत परिस्थिति में भी यदि ईश्वर के लिए धन्यवाद निकले तो ईश्वर और खुश होते हैं, और दे देते हैं।

श्रीकृष्ण के अतिथि बने सुदामा का लौटते समय जब श्रीकृष्ण ने दुशाला भी ले लिया तो सुदामा जी सोचते हैं कि ‘भगवान कितने दयालु हैं ! मैं धन दौलत में, माया में कहीं फँस न जाऊँ, भगवान ने मुझे कुछ नहीं दिया। दुशाला उढ़ाया था, वह भी वापस ले लिया। वाह ! वाह ! कितने दयालु हैं !’ और जब घर पहुँचकर देखते हैं कि धन-धान्य, ऐश्वर्य से सम्पन्न हुई अपनी पत्नी सुशीला महारानी बन गयी है तो कहते हैं कि “वाह भगवान ! तू कितना दयालु है ! मेरा कहीं भजन न छूट जाये, खान-खुराक, रहन-सहन की तकलीफों के कारण शायद मेरा मन उन चीजों के चिंतन में न चला जाय इसलिए तूने रातों-रात इतना सारा दे दिया !” ये भक्त हैं ! विश्वास सम्पादन कर लिया ईश्वर का। उस वक्त तो वे सुख-सम्पत्ति से जिये ही, साथ ही वैष्णव जनों के लिए सदा के लिए दृष्टांत बन गये।

केवल पात्र बनो, गुरुकृपा में देरी नहीं

तुम केवल विश्वासपात्र बनो तो ऐसे ही कृपा, प्रेम, ज्ञान – सब चीजें तुम्हारे पास खिंच के चली आयेंगी। तुम उसके योग्य बनो तो वस्तुओं को खोजना नहीं पड़ेगा, वस्तु माँगनी नहीं पड़ेगी, वह वस्तु तुम्हारे पास आ ही जानी चाहिए। तुम ईश्वर के दर्शन के योग्य बनते हो तो फिर तुमको ईश्वर का दर्शन हो ऐसी इच्छा करने की भी जरूरत नहीं है, ऊपर से डाँट दो कि ‘तेरे दर्शन की कोई जरूरत नहीं है, वही बैठा रह…..’ तो भी तुम्हारी योग्यता होगी तो वह आ ही जायेगा।

दीया जलता है, अपनी बत्ती और तेल खपाता है तो ऑक्सीजन वाली हवाएँ भागकर उसके करीब आ जाती हैं। ऑक्सीजन के लिए दीये को कोई चिल्लाना नहीं पड़ता, वह अपना काम किये जा रहा है। उसको जो चाहिए वे चीजें आ जाती हैं। जब ऐसे जड़ दीये की उस परमात्मा ने व्यवस्था कर रखी है, उसे सुयोग्य व्यवस्था मिल जाती है तो आपको नहीं देगा क्या ! बच्चा माँ के गर्भ में होता है, ज्यों जन्म लेता है त्यों दूध मिल ही जाता है और जब बच्चा अन्न खाने के काबिल हो जाता है तो वह दूध बन्द हो जाता है। प्रकृति में स्वचालित व्यवस्था है। ईश्वर और सदगुरु कोई शिष्टाचार में जरा पीछे पड़े हैं, ऐसे नहीं हैं। देने वाला देने को बैठता है न, तो लेने वाला थकता है, देने वाला नहीं थकता आध्यात्मिक जगत में।

ऐसा जरूरी नहीं है कि जिसके साथ आप अच्छा व्यवहार करते हो, बदले में वह आपका भला करे। भगवान के वे ही दो हाथ नहीं हैं, हजारों-हजारों हाथों से वे लौटा सकते हैं। जिनसे तुमने भलाई की है, उऩ सबने भी भले तुमसे बुराई कर दी फिर तुम खिन्न मत हो, उद्विग्न मत हो, निराश मत हो क्योंकि इतने ही भगवान के हाथ नहीं हैं। मेरे भगवान के तो अनंत हाथ हैं, न जाने किसके द्वारा दे, किसी बाहर के हाथ से नहीं दे तो भीतर से शांति तो मिलती है, भीतर से धन्यवाद तो मिलता है कि ‘हमने भलाई की है, चाहे वह बुराई कर दे तो कोई हरकत नहीं।’

पात्रता का मापदंड रखते हैं सदगुरुदेव

कच्चे घड़े में पानी ठहरता नहीं, कच्चा घड़ा पानी डालने के पात्र नहीं होता है। अब पानी डालना है तो उसे आँवें में (कुम्हार की भट्टी में) डालना पड़ता है। कुम्हार रखता है दुकान पर तो वह भी टकोर करता है, उसका नौकर भी टकोर करता है, ग्राहक लेता है तो वह भी टकोर करता है, घर ले जाता है तो घरवाली भी टकोर करती है।

बह जाने और सूख जाने वाला पानी जिस घड़े में डालते हो, उसको कितना कसौटी पर कसते हो ! तो जो कभी न बहे और कभी न सूखे, ऐसे ब्रह्मज्ञान का अमृत किसी में कोई डालना चाहे तो वह भी तो अपने ढंग की थापी तो रखता ही होगा, सीधी बात है ! हमें दिखें चाहे न दिखें, उनके पास होती हैं वे कसौटियाँ।

माँ बाप बच्चे को डाँटते या मारते हैं तो उनकी डाँट, मार या प्यार के पीछे बच्चे का हित और करूणा ही तो होती है, और क्या होता है ! ऐसे ही परमात्मा हमको किसी भी परिस्थिति से गुजारता है तो उसकी बड़ी करूणा है, कृपा है। लेकिन यदि हमारे भीतर से धन्यवाद नहीं निकलता और कुछ प्रतिक्रिया निकलती है तो हमारे कषाय अपरिपक्व हैं। सुदामा की नाईं जब धन्यवाद निकलने लगे तो समझो कि कषाय परिपक्व हो रहे हैं।

साधक जब ध्यान भजन में होता है, परमात्मा के चिंतन में होता है तो उसे देखकर सदगुरु के चित्त से कृपा बहती है, आशीर्वाद निकलता है। और जब गपशप में, इधर उधर में होता है और गुरु देखते हैं तो गुरु के दिल से निकलता है कि ‘ये क्या करेंगे !….’ तो बहुत आदमी फिर नीची अवस्था में हो जाते हैं। लगन व उत्साह से पढ़ने वाले विद्यार्थी को देखकर शिक्षक का उत्साह बढ़ता है और लापरवाह व टालमटोल करने वाले विद्यार्थी को देखकर शिक्षक का उत्साह भंग हो जाता है। अपने ही आचरण का फल विद्यार्थी को प्राप्त होता है। इससे भी बहुत ज्यादा असर सदगुरुओं के चित्त का पड़ता है शिष्य के ऊपर।

गुरु का हृदय तो शुद्ध होता है न, इसीलिए हमारा व्यवहार, हमारी भक्ति सब बढ़िया-बढ़िया देखते-देखते वे हमारे लिए बढ़िया बोलने लगते हैं, बढ़िया सोचने भी लगते हैं तो हम बढ़िया हो भी जाते हैं। और हमारा घटिया आचरण देखकर, बेवफाई का आचरण देखकर वे विश्वास खोते जाते हैं तो हम भी ऐसे ही होते जाते हैं। और सदगुरु को तो केवल तुम्हारे बाहर के व्यवहार से भरोस नहीं होगा, वे तो तुम्हारे भीतर की सोच को भी जान लेंगे। इसीलिए हमारी निष्ठा व प्रीति ऐसी हो कि भगवान और गुरु को हमारे प्रति भरोसा हो जाय बस, कि ‘ये  मेरा सत्पात्र है।’ भगवान शिव माता पार्वती जी से कहते हैं-

आकल्पजन्मकोटिनां यज्ञव्रततपः क्रियाः।

ताः सर्वाः सफला देवि गुरुसंतोषमात्रतः।।

हमारे करोड़ों जन्मों के यज्ञ, व्रत, जप-तप आदि उसी दिन सफल हो गये जिस दिन गुरुजी हमारे आचरण से, हमारी ईमानदारी से, हमारी वफादारी से संतुष्ट हो गये। गुरु को लगे कि पात्र है, तब गुरु के हृदय से कृपा छलकती है और शिष्य को हजम होती है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2014, पृष्ठ संख्या 16-18, अंक 258

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