आपका सेवारूपी फूल खिला है – पूज्य बापू जी

आपका सेवारूपी फूल खिला है – पूज्य बापू जी


विदेशी ताकतें हिन्दू धर्म की महानता को समाप्त करने के लिए, हिन्दू साधुओं का कुप्रचार करने के लिए चैनलों में न जाने कितनों-कितनों का क्या-क्या दिखाती हैं ! आजकल तो हिन्दू धर्म, हिन्दू साधु-संतों को बदनाम करने के लिए कैसे-कैसे अनर्गल आरोप लगाते हैं। हिन्दू साधु-संतों के पीछे आजकल कुप्रचार करने वाले हाथ धो के पड़ गये हैं।

इतना-इतना अंग्रेजों ने जुल्म किया, लेकिन हिन्दू धर्म की महानता से हमने उनके जुल्म को उखाड़ के फेंक दिया। इसीलिए अब तो बोलते हैं कि ‘हिन्दू धर्म की जड़ें काटो। ये वैदिक बातें ऐसी ही हैं…. हनुमान जी बंदर हैं, गणपति जी हाथी हैं, बच्चों की श्रद्धा बहुत तोड़ते हैं। श्रद्धा के बिना धर्म लाभ नहीं होता।

परन्तु इससे घबराना नहीं है। अक्सर ऐसे आँधी तुफान आते रहते हैं। अपने को बुद्धिमान होकर, संगठित हो के अपनी संस्कृति का फायदा उठाना चाहिए। हमको विदेशी शक्तियाँ लड़वाना चाहती हैं और यदि हम वही करें तो फिर हमारी संस्कृति की हानि होगी। मुझे तो एक दृष्टांत-कथा याद आती है कि कुल्हाड़ी का सिर आया पेड़ के पास, बोलाः “मैं तुझे काट दूँगा।”

पेड़ हँसा, बोलाः “मैं 200 मन का, तू 400 ग्राम का, निगुरे ! चल भाग यहाँ से।”

थोड़ी देर के बाद वह लकड़ी का हत्था डलवा के आया, बोलाः “क्या ख्याल है अब ?”

पेड़ ने सिर झुका दिया, बोलाः “जब अपने वाले ही काटने वाले के साथ जुड़ते हैं तो क्या होगा ?”

ऐसे ही जो विदेशी ताकतें हमारे देश को तोड़ना चाहती हैं उन्हीं के हम हत्था बन के कुछ पैसे लेकर किसी संस्था के पीछे पड़ जायें तो हमारी संस्कृति का क्या होगा ? मैं तो हाथ जोड़ के प्रार्थना कर सकता हूँ। नहीं तो फिर मैं उसको प्रार्थना करूँगा कि ‘भगवान ! इनको सदबुद्धि दो।’ फिर प्रकृति कोप करे यहा तो सदबुद्धि दे, यह उसकी मर्जी की बात है। जो भिड़ाने वाली ताकतें पर्दे के पीछे भिड़ाती हैं, वे भिड़ायें और हम भिड़ते रहें तो हमारी संस्कृति की हानि होती है।

कवि गेटे के लिए ऐसे आँधी-तूफान आये कि उनके अनुयायियों ने कहा कि “अब हद हो गयी ! आप निंदा करने वालों को, अफवाहें फैलाने और साजिश करने वालों को कुछ दंड दो अथवा हमें आदेश दो, हमारे से सहा नहीं जाता !”

कवि गेटे ने मुस्कराते हुए कहाः “देखो, मैं तुम्हें सुनाता हूँ ‘टॉलस्टॉय’ कविता।” कवि गेटे कविता सुनाते गये और गदगद होते गये। कविता का  भाव यह था कि ‘जब तुम्हारे लिए कोई साजिश रचे, तुम्हारे ऊपर मिथ्या दोषारोपण होने लगें, तुम्हारे दैवी कार्य में विघ्न-बाधाएँ आने लगें तो समझ लेना कि तुम्हारी सेवा का बगीचा खूब महका है और उसकी सुवास और मधुरता दूर तक गयी है इसलिए वे मधुमक्खियाँ और भौंरे डंक मारने को आ रहे हैं। अरे ! तुम्हारी सेवा का ही प्रभाव है जो मधुमक्खियाँ और भौंरे भिनभिना रहे हैं।’

हिन्दू धर्म को बदनाम करने वाले, साजिश करने वाले विदेशी लोग जो अपना धर्मांतरण का काम चलाना चाहते हैं, वे पिछले 1700 वर्षों से हिन्दू धर्म को नीचा दिखाने का षडयंत्र चला रहे हैं और वे लड़ाने के लिए हिन्दुओं को ही आगे करते हैं, वे लोग पर्दे के पीछे रहते हैं, जिससे हिन्दू ही हिन्दू धर्म कि निन्दा करें और हिन्दू-हिन्दू आपस में लड़ मरे। वे सोचते हैं, ‘हिन्दुओं का नाम, प्रभाव रहेगा तो हिन्दू धर्म में तो महान गुण हैं, हमारे पास कौन आयेगा ? इसलिए चलो, हिन्दू धर्म को बदनाम करो और अपना धंधा चलाओ।’ ऐसा मुझे कई ढंग से  पता चल रहा है। शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती जी, स्वामी नित्यानंद जी और माँ अमृतानंदमयी जैसे कई संतों को बदनाम करवाया गया। जो प्रसिद्ध हैं उनको ज्यादा बदनाम करवाते हैं और जो कम प्रसिद्ध हैं वे बेचारे थककर आश्रम, मंदिर छोड़ के चले जाते हैं, दूसरे लोगों को दे जाते हैं।

मेरे 50 सालों में ऐसा कुप्रचार 2-4 बार आया और जब-जब कुप्रचार आया उसके बाद साधकों की संख्या बढ़ती गयी। लेकिन अब का कुप्रचार बहुत लम्बी साजिश है, खूब पैसे खर्च करके हुआ है और बहुत लोगों को इसमें जोड़ा गया है। अब के कुप्रचार का जो शिकार न बने और टिक गया तो भाई ! वह तो फिर पृथ्वी का देव है।

और हम जानते हैं कि जितना-जितना आदमी ऊँचाई को उठता है, उतना-उतना सज्जन लोग तो फायदा लेते हैं लेकिन  जिनको ईर्ष्या की आग तपाती रहती है वे फिर कुछ-न-कुछ कल्पना करके आरोप की गंदगी फैलाते रहते हैं। आपके ऊपर भी कभी कोई ईर्ष्या-द्वेष करके आरोप करे तो आप इस बात को याद करो कि आपका फूल खिला है, तभी भौंरे अथवा मधुमक्खी का डंक आया है। आपका फूल विकसित हो रहा है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2014, पृष्ठ संख्या 4,5 अंक 260

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