Monthly Archives: September 2014

स्वादिष्ट और बलदायक केला


केला एक ऐसा विलक्षण फल है जो शारीरिक व बौद्धिक विकास के साथ उत्साहवर्धक भी है। पूजन-अर्चन आदि कार्यों में भी केले का महत्वपूर्ण स्थान है। केले में शर्करा, कैल्शियम, पोटैशियम, सोडियम, फॉस्फोरस, प्रोटीन्स, विटामिन ए, बी, सी, डी एवं लौह, ताँबा, आयोडीन आदि तत्वों के साथ ऊर्जा का भरपूर खजाना है।

लाभः पका केला स्वादिष्ट, भूख बढ़ाने वाला, शीतल, पुष्टिकारक, मांस एवं वीर्यवर्धक, भूख-प्यास को मिटाने वाला तथा नेत्ररोग एवं प्रमेह में हितकर है।

केला हड्डियों और दाँतों को मजबूती प्रदान करता है। छोटे बच्चों के शारीरिक व बौद्धिक विकास के लिए केला अत्यन्त गुणकारी है।

एक पका केला रोजाना खिलाने से बच्चों का सूखा रोग मिटता है।

यह शरीर व धातु की दुर्बलता दूर करता है, शरीर को स्फूर्तिवान तथा त्वचा को कांतिमय बनाता है और रोगप्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है।

केला अन्न को पचाने में सहायक है। भोजन के साथ 1-2 पके केले प्रतिदिन खाने से भूख बढ़ती है।

खून की कमी को दूर करने के लिए तथा वजन बढ़ाने के लिए केला विशेष लाभकारी है।

आसान घरेलु प्रयोग

स्वप्नदोषः 2 अच्छे पके केलों का गूदा खूब घोंटकर उसमें 10-10 ग्राम शुद्ध शहद व आँवले का रस मिला के सुबह शाम कुछ दिनों तक नियमित लेने से लाभ होता है।

प्रदर रोगः महिलाओं को सफेद पानी पड़ने की बीमारी- सुबह शाम एक-एक खूब पका केला 10 ग्राम गाय के घी के साथ खाने से करीब एक सप्ताह में ही लाभ होता है।

शीघ्रपतनः एक केले के साथ 10 ग्राम शुद्ध शहद लगातार कम-से-कम 15 दिन तक सेवन करें। शीघ्रपतन के रोगियों के लिए यह रामबाण प्रयोग माना जाता है।

आमाशय व्रण (अल्सर) पके केले खाने और भोजन में दूध व भात लेने से अल्सर में लाभ होता है।

उपरोक्त सभी प्रयोगों में अच्छे से पके चित्तीदार केले धीरे-धीरे, खूब चबाते हुए खाने चाहिए। इसमें केले आसानी से पच जाते हैं, अन्यथा पचने में भारी भी पड़ सकते हैं। अधिक केले खाने से अजीर्ण हो सकता है। केले के साथ इलायची खाने से वह शीघ्र पच जाता है। अदरक भी केला पचाने में सहायता करता है।

सावधानियाँ– केला भोजन के समय या बाद में खाना उचित है। मंदाग्नि, गुर्दों से संबंधित बीमारियों, कफजन्य व्याधियों से पीड़ित व मोटे व्यक्तियों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए। केले का छिलका हटाने के बाद तुरंत खा लेना चाहिए। केले, अन्य फल व सब्जियों को फ्रिज में उनके पौष्टिक तत्व नष्ट होते हैं।

तिथि अनुसार आहार विहार

चतुर्दशी को उड़द खाना महापापकारी है। (ब्रह्मवैवर्तपुराण, ब्रह्म खण्डः 27.35)

अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी, अष्टमी, रविवार, श्राद्ध और व्रत के दिन रक्तवर्ण का साग और काँसे के पात्र में भोजन निषिद्ध है।

(ब्रह्मवैवर्त पुराणः ब्रह्म खण्ड) 27.37-38

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2014, पृष्ठ संख्या 30, अंक 261

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

सगर्भावस्था में निषिद्ध आहार


गर्भ रहने पर गर्भिणी किसी भी प्रकार के आसव-अरिष्ट (कुमारी आसव, दशमूलारिष्ट आदि), उष्ण-तीक्ष्ण औषधियों, दर्द-निवारक (पेन किल्लर) व नींद की गोलियों, मरे हुए जानवरों के रक्त से बनी रक्तवर्धक दवाइयों एवं टॉनिक्स तथा हानिकारक अंग्रेजी दवाइयों आदि का सेवन न करें।

इडली, डोसा, ढोकला जैसे खमीरयुक्त, पित्तवर्धक तथा चीज़, पनीर जैसे पचने में भारी पदार्थ न खायें। ब्रेड, बिस्कुट, केक, नूडल्स (चाऊमीन), भेलपुरी, दहीबड़ा जैसे मैदे की वस्तुएँ न खाकर शुद्ध घी व आटे से बने तथा स्वास्थ्यप्रद पदार्थों का सेवन करें।

कोल्डड्रिंक्स व डिब्बाबंद रसों की जगह ताजा नींबू या आँवले का शरबत ले। देशी गाय के दूध, गुलकंद का प्रयोग लाभकारी है।

मांस, मछली, अंडे आदि का सेवन कदापि न करें।

आयुर्वेदानुसार सगर्भावस्था में किसी भी प्रकार का आहार अधिक मात्रा में न लें। षड् रसयुकत् आहार लेना चाहिए परंतु केवल किसी एकाध प्रिय रस का अति सेवन दुष्परिणाम ला सकता है।

इस संदर्भ में चरकाचार्य जी ने बताया हैः

मधुरः सतत् सेवन करने से बच्चे को मधुमेह (डायबिटीज), गूँगापन, स्थूलता हो सकती है।

अम्लः इमली, टमाटर, खट्टा दही, डोसा, खमीरवाले पदार्थ अति प्रमाण में खाने से बच्चे को जन्म से ही नाक से खून बहना, त्वचा व आँखों के रोग हो सकते हैं।

लवण (नमक)– ज्यादा नमक लेने से रक्त में खराबी आती है, त्वचा के रोग होते हैं। बच्चे के बाल असमय में सफेद हो जाते हैं, गिरते हैं, गंजापन आता है, त्वचा पर असमय झुर्रियाँ पड़ती हैं तथा नेत्रज्योति कम होती है।

तीखाः बच्चा कमजोर प्रकृति का, क्षीण शुक्रधातुवाला व भविष्य में संतानोत्पत्ति में असमर्थ हो सकता है।

कड़वाः बच्चा शुष्क, कम वजन का व कमजोर हो सकता है।

कषायः अति खाने पर श्यावता (नीलरोग) आती है, उर्ध्ववायु की तकलीफ रहती है।

सारांश यही है कि स्वादलोलुप न होकर आवश्यक संतुलित आहार लें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2014, पृष्ठ संख्या 25, अंक 261

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

शरद पूनम की रात दिलाये आत्मशांति, स्वास्थ्यलाभ – पूज्य बापू जी


(शरद पूर्णिमाः 7 अक्तूबर 2014)

आश्विन पूर्णिमा को ‘शरद पूर्णिमा’ बोलते हैं। इस दिन रास-उत्सव और कोजगर व्रत किया जाता है। प्रेमभाव में रमण करने वाली गोपियों को शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण ने बंसी बजाकर अपने पास बुलाया और ईश्वरीय अमृत का पान कराया था। अतः शरद पूर्णिमा की रात्रि का विशेष महत्व है। इस रात को चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषक शक्ति एवं शांतिरूपी अमृतवर्षा करता है।

शरद पूनम की रात को क्या करें, क्या न करें ?

दशहरे से शरद पूनम तक चन्द्रमा की चाँदनी में विशेष हितकारी रस, हितकारी किरणें होती हैं। इन दिनों चन्द्रमा की चाँदनी का लाभ उठाना, जिससे वर्षभर आप स्वस्थ और प्रसन्न रहें। नेत्रज्योति बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन रात्रि में 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा के ऊपर त्राटक करें।

अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य हैं। जो भी इन्द्रियाँ शिथिल हो गयी हों, उनको पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चाँदनी में खीर रखना और भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना कि ‘हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ायें।’ फिर वह खीर खा लेना।

इस रात सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से नेत्रज्योति बढ़ती है।

शरद पूनम दमे की बीमारीवालों के लिए वरदान का दिन है। अपने सभी आश्रमों में निःशुल्क औषधि मिलती है, वह चन्द्रमा की चाँदनी में रखी हुई खीर में मिलाकर खा लेना और रात को सोना नहीं। दमे का दम निकल जायेगा।

चन्द्रमा की चाँदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है। शरद पूनम की चाँदनी का अपना महत्व है लेकिन बारहों महीने चन्द्रमा की चाँदनी गर्भ को और औषधियों को पुष्ट करती है।

अमावस्या और पूर्णिमा को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है। जब चन्द्रमा इतने बड़े दिगम्बर समुद्र में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएँ हैं, सप्त रंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है। इन दिनों में अगर काम-विकार भोगा तो विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी हो जाती है और यदि उपवास, व्रत तथा सत्संग किया तो तन तंदरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि में बुद्धिदाता का  प्रकाश आता है।

खीर को बनायें अमृतमय प्रसाद

खीर को रसराज कहते हैं। सीता जी को अशोक वाटिका में रखा गया था। रावण के घर का क्या खायेंगी सीता जी ! तो इन्द्रदेव उन्हें खीर भेजते थे।

खीर बनाते समय चाँदी का गिलास आदि जो बर्तन हो, आजकल जो मेटल (धातु) का बनाकर चाँदी के नाम से देते हैं वह नहीं, असली चाँदी के बर्तन अथवा असली सोना धो-धा के खीर में डाल दो तो उसमें रजतक्षार या सुवर्णक्षार आयेंगे। लोहे की कड़ाही अथवा पतीली में खीर बनाओ तो लौह तत्व भी उसमें आ जायेगा। इलायची, खजूर या छुहारा डाल सकते हो लेकिन बादाम, काजू, पिस्ता, चारोली ये रात को पचने में भारी पड़ेंगे। रात्रि 8 बजे महीन कपड़े से ढँककर चन्द्रमा की चाँदनी में रखी हुई खीर 11 बजे के आसपास भगवान को भोग लगा के प्रसादरूप में खा लेनी चाहिए। लेकिन देर रात को खाते हैं इसलिए थोड़ी कम खाना और खाने से पहले एकाध चम्मच मेरे हवाले भी कर देना। मुँह अपना खोलना और भाव करनाः ‘लो महाराज ! आप भी लगाओ भोग।’ और थोड़ी बच जाये तो फ्रिज में रख देना। सुबह गर्म करके खा सकते हो।

(खीर दूध, चावल, मिश्री, चाँदी, चन्द्रमा की चाँदनी – इन पंचश्वेतों से युक्त होती हैं, अतः सुबह बासी नहीं मानी जाती।)

शरदपूनम का कल्याणकारी संदेश

रासलीला इन्द्रियों और मन में विचरण करने वालों के लिए अत्यंत उपयोगी है लेकिन राग, ताल, भजन का फल है भगवान में विश्रांति। रासलीला के बाद गोपियों को भी भगवान ने विश्रांति में पहुँचाया था। श्रीकृष्ण भी इसी विश्रांति में तृप्त रहने की कला जानते थे। संतुष्टि और तृप्ति सभी की माँग है। चन्द्रमा की चाँदनी में खीर पड़ी-पड़ी पुष्ट हो और आप परमात्म-चाँदनी में विश्रांति पाओ।

चन्द्रमा के दर्शन करते जाना और भावना करना कि ‘चन्द्रमा के रूप में साक्षात् परब्रह्म-परमात्मा की रसमय, पुष्टिदायक रश्मियाँ आ रही हैं। हम उसमें विश्रांति पा रहे हैं। पावन हो रहा है। मन, पुष्ट हो रहा है तन, ॐ शांति… ॐ आनंद…’ पहले होंठों से, फिर हृदय से जप और शांति…. निःसंकल्प नारायण में विश्रांति, परमात्म-ज्ञान के बिना भौतिक सुख-सुविधाएँ कितनी भी मिल जायें लेकिन जीवात्मा की प्यास नहीं बुझेगी, तपन नहीं मिटेगी।

देखें बिनु रघुनाथ पद जिय कै जरनि न जाइ।

(रामायण)

श्रीकृष्ण गोपियों से कहते हैं कि “तुम प्रेम करते-करते बाहर ही बाहर रूक न जाओ बल्कि भीतरी विश्रांति द्वारा मुझ अपने अंतरात्मा प्रेमास्पद को भी मिलो, जहाँ तुम्हारी और हमारी दूरी खत्म हो जाती है। मैं ईश्वर नहीं, तुम जीव नहीं, हम सब ब्रह्म हैं – वह अवस्था आ जाय।” श्रीकृष्ण जो कहते हैं, उसको कुछ अंश में समझकर हम स्वीकार कर लें, बस हो गया।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2014, पृष्ठ संख्या 14,15 अंक 261

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ