महापुण्यप्रदायक कार्तिक मास – पूज्य बापू जी

महापुण्यप्रदायक कार्तिक मास – पूज्य बापू जी


(कार्तिक व्रत 8 अक्तूबर 2014 से 6 नवम्बर 2014)

‘स्कन्द पुराण’ में आया हैः

न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समं युगम्।।

न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गंगया समम्।….

‘कार्तिक मास के समान कोई मास नहीं, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।’ (वैष्णव खंड, का. मा. 1.36.37)

कार्तिक मास में पालनीय नियम

इसमें दीपदान का महत्व है। तुलसी वन अथवा तुलसी के पौधे लगाना हितकारी है। तुलसी के पौधे को  सुबह आधा-एक गिलास पानी देना सवा मासा (लगभग सवा ग्राम) स्वर्णदान करने का फल देता है। भूमि पर अथवा तो गद्दा हटाकर कड़क तख्ते पर सादा कम्बल बिछाकर शयन, ब्रह्मचर्य का पालन – ये कार्तिक मास में करणीय नियम बताये गये हैं, जिससे जीवात्मा का उद्धार होता है।

इस मास में उड़द, मसूर आदि भारी चीजों का त्याग करना चाहिए। तिल-दान करना चाहिए। नदी में स्नान करना हितकारी है लेकिन अब नदियाँ पहले जैसी नहीं रहीं, जिस समय शास्त्रों में यह बात आयी थी। अभी तो यमुना जी में दिल्ली की कई गटरों का पानी डाल देते हैं, आचमन लेने का जी नहीं करता, नहाने का मन स्वीकार नहीं करता तो मानसिक नदी स्नान करके अपने शुद्ध जल से स्नान करो।

कार्तिक मास में साधु-संतों का सत्संग, उनके जीवन-चरित्र और उनके मार्गदर्शन का अनुसरण करना चाहिए। मोक्षप्राप्ति का इरादा बना लेना चाहिए। कार्तिक मास में आँवले के वृक्ष की छाया में भोजन करने से एक तक के अन्न संसर्गजनित दोष (जूठा या अशुद्ध भोजन करने से लगने वाले दोष) नष्ट हो जाते हैं। आँवले का उबटन लगाकर स्नान करने से लक्ष्मीप्राप्ति होती है और अधिक प्रसन्नता मिलती है। शुक्रवार और रविवार को आँवले का उपयोग नहीं करना चाहिए। कार्तिक मास में संसार व्यवहार (काम-विकारवाला) न करें।

पूरे कार्तिक मास में प्रातःकाल का स्नान पाप शमन करने वाला तथा आरोग्य व प्रभुप्रीति को बढ़ाने वाला है और इससे सुख-दुःख, अनुकूलता-प्रतिकूलता में सम रहने के सदगुण विकसित होते हैं। आँवले के फल व तुलसी-दल मिश्रित जल से स्नान करें तो गंगास्नान के समान पुण्यलाभ होता है। भगवान नारायण देवउठी (प्रबोधिनी) एकादशी को अपनी योगनिद्रा से उठेंगे, उस दिन कपूर से आरती करने वाले को अकाल मृत्यु से सुरक्षित होने का अवसर मिलता है। (इस दिन गुरु का पूजन करने से भगवान प्रसन्न होते हैं। – पद्म पुराण)

कार्तिक मास के अंतिम तीन दिन

कार्तिक मास की त्रयोदशी से पूनम तक के अंतिम तीन दिन पुण्यमयी तिथियाँ मानी जाती हैं। इनका बड़ा विशेष प्रभाव माना गया है। अगर कोई कार्तिक मास के सभी दिन स्नान नहीं कर पाये तो उसे अंतिम तीन दिन सुबह सूर्योदय से तनिक पहले स्नान कर लेने से सम्पूर्ण कार्तिक मास के प्रातःस्नान के पुण्यों की प्राप्ति कही गयी है।

जैसे कहीं अनजाने में जूठा खा लिया है तो उस दोष को निवृत्त करने के लिए बाद में आँवला, बेर या गन्ना चबाया जाता है। इससे उस दोष से आदमी मुक्त होता है, बुद्धि स्वस्थ हो जाती है। जूठा खाने से बुद्धि मारी जाती है। जूठे हाथ सिर पर रखने से बुद्धि मारी जाती है, कमजोर होती है। इसी प्रकार दोषों के शमन और भगवदभक्ति की प्राप्ति के लिए कार्तिक के अंतिम तीन दिन प्रातःस्नान, श्रीविष्णुसहस्रनाम’ और ‘गीता’ पाठ विशेष लाभकारी है। आप इनका फायदा उठाना।

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‘पद्म पुराण’ में आता हैः कार्तिक मास में पलाश के पत्ते पर भोजन करने से मनुष्य़ कभी नरक नहीं देखता।

‘स्कन्द पुराण’ में कार्तिक मास की महिमा बताते हुए ब्रह्माजी कहते हैं- “नारद नारद ! गुरु के वचन का कभी उल्लंघन नहीं करना चाहिए। यदि अपने ऊपर दुःख आदि आ पड़ें तो गुरु की शरण में जाय। गुरु की प्रसन्नता से मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर लेता है। परम बुद्धिमान कपिल और महातपस्वी सुमति भी अपने गुरु गौतम ऋषि की सेवा से अमरत्व को प्राप्त हुए हैं। इसलिए कार्तिक मास में सब प्रकार से प्रयत्न करके गुरु की सेवा करे। ऐसा करने से उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।”

कार्तिक व्रत करने वाले को देखकर यमदूत इस प्रकार पलायन कर जाते हैं जैसे सिंह को देखकर हाथी।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2014, पृष्ठ संख्या 12,13 अंक 261

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