Monthly Archives: September 2014

महापुण्यप्रदायक कार्तिक मास – पूज्य बापू जी


(कार्तिक व्रत 8 अक्तूबर 2014 से 6 नवम्बर 2014)

‘स्कन्द पुराण’ में आया हैः

न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समं युगम्।।

न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गंगया समम्।….

‘कार्तिक मास के समान कोई मास नहीं, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।’ (वैष्णव खंड, का. मा. 1.36.37)

कार्तिक मास में पालनीय नियम

इसमें दीपदान का महत्व है। तुलसी वन अथवा तुलसी के पौधे लगाना हितकारी है। तुलसी के पौधे को  सुबह आधा-एक गिलास पानी देना सवा मासा (लगभग सवा ग्राम) स्वर्णदान करने का फल देता है। भूमि पर अथवा तो गद्दा हटाकर कड़क तख्ते पर सादा कम्बल बिछाकर शयन, ब्रह्मचर्य का पालन – ये कार्तिक मास में करणीय नियम बताये गये हैं, जिससे जीवात्मा का उद्धार होता है।

इस मास में उड़द, मसूर आदि भारी चीजों का त्याग करना चाहिए। तिल-दान करना चाहिए। नदी में स्नान करना हितकारी है लेकिन अब नदियाँ पहले जैसी नहीं रहीं, जिस समय शास्त्रों में यह बात आयी थी। अभी तो यमुना जी में दिल्ली की कई गटरों का पानी डाल देते हैं, आचमन लेने का जी नहीं करता, नहाने का मन स्वीकार नहीं करता तो मानसिक नदी स्नान करके अपने शुद्ध जल से स्नान करो।

कार्तिक मास में साधु-संतों का सत्संग, उनके जीवन-चरित्र और उनके मार्गदर्शन का अनुसरण करना चाहिए। मोक्षप्राप्ति का इरादा बना लेना चाहिए। कार्तिक मास में आँवले के वृक्ष की छाया में भोजन करने से एक तक के अन्न संसर्गजनित दोष (जूठा या अशुद्ध भोजन करने से लगने वाले दोष) नष्ट हो जाते हैं। आँवले का उबटन लगाकर स्नान करने से लक्ष्मीप्राप्ति होती है और अधिक प्रसन्नता मिलती है। शुक्रवार और रविवार को आँवले का उपयोग नहीं करना चाहिए। कार्तिक मास में संसार व्यवहार (काम-विकारवाला) न करें।

पूरे कार्तिक मास में प्रातःकाल का स्नान पाप शमन करने वाला तथा आरोग्य व प्रभुप्रीति को बढ़ाने वाला है और इससे सुख-दुःख, अनुकूलता-प्रतिकूलता में सम रहने के सदगुण विकसित होते हैं। आँवले के फल व तुलसी-दल मिश्रित जल से स्नान करें तो गंगास्नान के समान पुण्यलाभ होता है। भगवान नारायण देवउठी (प्रबोधिनी) एकादशी को अपनी योगनिद्रा से उठेंगे, उस दिन कपूर से आरती करने वाले को अकाल मृत्यु से सुरक्षित होने का अवसर मिलता है। (इस दिन गुरु का पूजन करने से भगवान प्रसन्न होते हैं। – पद्म पुराण)

कार्तिक मास के अंतिम तीन दिन

कार्तिक मास की त्रयोदशी से पूनम तक के अंतिम तीन दिन पुण्यमयी तिथियाँ मानी जाती हैं। इनका बड़ा विशेष प्रभाव माना गया है। अगर कोई कार्तिक मास के सभी दिन स्नान नहीं कर पाये तो उसे अंतिम तीन दिन सुबह सूर्योदय से तनिक पहले स्नान कर लेने से सम्पूर्ण कार्तिक मास के प्रातःस्नान के पुण्यों की प्राप्ति कही गयी है।

जैसे कहीं अनजाने में जूठा खा लिया है तो उस दोष को निवृत्त करने के लिए बाद में आँवला, बेर या गन्ना चबाया जाता है। इससे उस दोष से आदमी मुक्त होता है, बुद्धि स्वस्थ हो जाती है। जूठा खाने से बुद्धि मारी जाती है। जूठे हाथ सिर पर रखने से बुद्धि मारी जाती है, कमजोर होती है। इसी प्रकार दोषों के शमन और भगवदभक्ति की प्राप्ति के लिए कार्तिक के अंतिम तीन दिन प्रातःस्नान, श्रीविष्णुसहस्रनाम’ और ‘गीता’ पाठ विशेष लाभकारी है। आप इनका फायदा उठाना।

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

‘पद्म पुराण’ में आता हैः कार्तिक मास में पलाश के पत्ते पर भोजन करने से मनुष्य़ कभी नरक नहीं देखता।

‘स्कन्द पुराण’ में कार्तिक मास की महिमा बताते हुए ब्रह्माजी कहते हैं- “नारद नारद ! गुरु के वचन का कभी उल्लंघन नहीं करना चाहिए। यदि अपने ऊपर दुःख आदि आ पड़ें तो गुरु की शरण में जाय। गुरु की प्रसन्नता से मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर लेता है। परम बुद्धिमान कपिल और महातपस्वी सुमति भी अपने गुरु गौतम ऋषि की सेवा से अमरत्व को प्राप्त हुए हैं। इसलिए कार्तिक मास में सब प्रकार से प्रयत्न करके गुरु की सेवा करे। ऐसा करने से उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।”

कार्तिक व्रत करने वाले को देखकर यमदूत इस प्रकार पलायन कर जाते हैं जैसे सिंह को देखकर हाथी।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2014, पृष्ठ संख्या 12,13 अंक 261

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

फैशन बन गया है बलात्कार का आरोप लगाना ?


रेपसंबंधी नये कानूनों के परिणाम, मीडिया की भूमिका तथा राजनैतिकों द्वारा इसका इस्तेमाल आदि विभिन्न विषयों पर वास्तविकता को जनता के समक्ष रखते हुए शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के सम्पादकीय में लिखा गया हैः

(बालिक, नाबालिग द्वारा) छेड़खानी और बलात्कार का आरोप लगाकर सनसनी पैदा करना अब फैशन हो गया है क्या ? ऐसा सवाल लोगों के मन में उठने लगा है। निर्भया कांड के बाद बलात्कार और महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के संदर्भ में नये कानून बनाये गये। परंतु इन कानूनों के कारण महिलाओं पर होने वाला अत्याचार कम हुआ क्या ? यह संशोधन का विषय है। लेकिन छेड़खानी, बलात्कार जैसे आरोप लगाकर सनसनी फैलाने के मामले बढ़ने लगे। ऐसे मामलों में सच बाहर आने के पूर्व ही उस संदेहास्पद अभियुक्त की मीडिया ट्रायल के नाम पर जो भरपूर बदनामी चलती है, वह बहुत ही घिनौनी है। टीवी चैनलों के लोग वारदात, सनसनी जैसे आपराधिक कार्यक्रमों में बलात्कार का आँखों देखा हाल दिखाकर ऐसा दर्शाते हैं कि उन्होंने जैसे अपनी खुली आँखों से बलात्कार देखा हो। संदेहास्पद बलात्कार मामलों को छोंक बघारकर पाठक तथा दर्शकों तक परोसा जाता है।

चरित्रहनन तथा बदनामी, राजनीति में एक बहुत बड़ा हथियार बन गया है। कानून महिलाओं के साथ है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि ऐसे कानून कोई गलत इस्तेमाल कर किसी को भी तख्त पर चढ़ाये। (एक मामले का उदाहरण देकर) इस मामले में छः महीने बाद बलात्कार का मामला दर्ज किया गया है। अर्थात् बलात्कार हुआ यह समझने में छः महीने लग गये क्या ? शक्ति मिल मामले में पीड़ित युवती ने 2 घंटे के भीतर बलात्कार की शिकायत दर्ज करायी थी। बलात्कार बहुत ही घिनौना और गम्भीर मामला है। कोई भी महिला यह कलंक क्षणभर भी बर्दाश्त नहीं कर सकती। लेकिन इन दिनों बलात्कार का आरोप तथा शिकायत (तथाकथित) घटना घटित होने के बाद छः छः महीने और दो दो साल के बाद दाखिल की जाती है। (पूज्य बापू जी पर तो एक महिला को मोहरा बनाकर 12 साल पहले बलात्कार हुआ ऐसी कल्पित, झूठी कहानी बनाकर मामला दर्ज करवाया गया है। दूसरे मामले में भी जोधपुर से शाहजहाँपुर और शाहजहाँपुर से दिल्ली जाकर 5 दिन बाद रात को 2.45 बजे बोगस मामला दर्ज करवाया गया है। – संकलक) इन पर कोई भी सवाल नहीं उठाता। सिक्के का दूसरा पहलू क्या है – इस बात को भी देखा जाना चाहिए।

हाल ही में मुंबई पुलिस दल के एक बहादुर अधिकारी अरूण बोरूडे पर भी ऐसा ही आरोप लगाया गया और उन्होंने आत्महत्या कर ली। जाँच के बाद बोरुडे निर्दोष साबित हुए। बलात्कार का आरोप यह बड़ों के खिलाफ विरोध का एक हथियार बन गया है। छेड़खानी, बलात्कार यह अमानवीय है लेकिन इस तरह के गलत आरोप लगाकर स्त्रीत्व का बेजा इस्तेमाल करना भी समस्त महिला समुदाय को कलंकित कर रहा है।

(संकलन व संक्षिप्तिकरणः श्री आर.एन. ठाकुर)

नये रेप कानूनों का हो रहा है दुरुपयोगः उच्च न्यायालय

दिल्ली उच्च न्यायालय ने नये रेप कानूनों के लगातार बढ़ते गलत इस्तेमाल पर चिंता जताते हुए कहा है कि बलात्कार केसों को बदला लेने, परेशान करने, पैसा उगाहने और यहाँ तक कि पुरुषों को शादी के लिए मजबूर करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2014, पृष्ठ संख्या 29, अंक 261

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पूरी मानवता को ईश्वरप्राप्ति हेतु उत्साहित करने वाला दिवस – पूज्य बापू जी


(पूज्य बापू जी का 50वाँ आत्मसाक्षात्कार दिवसः 26 सितम्बर)

मनुष्य जन्म की सर्वोपरि उपलब्धि आत्मसाक्षात्कार

ईश्वर तथा देवता अनेक हैं और वे अपने-अपने विभाग के अधिष्ठाता हैं लेकिन उन सब ईश्वरों में देवों में जो एक आत्मा है, उस आत्मा-परमात्मा के साथ एकाकार होने की ऊँची अऩुभूति का नाम है आत्मसाक्षात्कार।

वह परब्रह्म-परमात्मा जो करोड़ों-अरबों के अंतःकरणों में, दिलों में सत्ता, स्फूर्ति, चेतना देता है, जो सब यज्ञ और तप के फल का भोक्ता है और ईश्वरों का ईश्वर है, उस परमेश्वर के साथ एकाकार होने का नाम है आत्मसाक्षात्कार।

वाणी से परे, अलौकिक व अद्वितीय अनुभूति

आत्मसाक्षात्कार की व्याख्या जीभ से हो नहीं सकती। भगवान राम के गुरु श्री वसिष्ठजी कहते हैं कि “राम जी ! ज्ञानवान का लक्ष्ण स्वयंवेद्य है, वह इन्द्रियों का विषय नहीं है।” फिर भी कुछ लक्षणों का वर्णन करते हैं बाकी पूरा वर्णन नहीं होता। गुरु नानक जी कहते हैं-

मत करो वर्णन हर बेअंत है,

क्या जाने वो कैसो रे। जिन पाया तिन छुपाया।

जिसने उस साक्षात् उस परब्रह्म-परमात्मा के अनुभव को पाया, उसने फिर छिपा दिया क्योंकि सब आदमी समझ नहीं पायेंगे।

बोलेः “जन्मदिवस है, हैप्पी बर्थ डे !” लेकिन भैया ! तेरा अकेले का नहीं है। रोज धरती पर पौने दो करोड़ लोगों का जन्मदिवस होता है। जन्मदिवस तो बहुत होते हैं, शादी के दिवस भी लाखों होंगे और भगवान के दर्शन के दिवस भी सैंकड़ों मिल सकते हैं लेकिन भगवान जिससे भगवान हैं, उस आत्मा-परमात्मा का गुरुवर ने साक्षात्कार कराया हो किसी शिष्य को, वह तो धरती पर कभी-कभी, कहीं-कहीं देखने-सुनने को मिलता है। इसलिए आत्मसाक्षात्कार धरती पर बड़े-में-बड़ी घटना है और आत्मसाक्षात्कार दिवस बड़े-में बड़ा दिवस माना जाये तो कोई हरकत नहीं। लेकिन प्रचलन जिस बात का है, वैसे ही राजकीय ढंग से मीडिया प्रचार-प्रसार करता है वरना तत्व-दृष्टि से देखा जाय तो पूरी मानवता को उत्साहित करने वाला दिवस आत्मसाक्षात्कार दिवस है। पूरी मानवता को अपने परम तत्व को पा सकने की खबर देने वाला दिवस ‘आत्मसाक्षात्कार दिवस’ है।

एक साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज या श्री रामकृष्ण परमहंस, श्री रमण महर्षि या किसी संत को साक्षात्कार हुआ तो जैसे वे खाते-पीते, जन्मते हैं और दुःख-सुख, निंदा-स्तुतियों के माहौल से गुजरते हैं, फिर भी सम स्वरूप में जाग जाते हैं, ऐसे ही आप भी जागऽ सकते हैं। जब एक व्यक्ति सम-स्वरूप में जाग सकता है तो दूसरा भी जाग सकता है। जब एक की नजर चाँद तक पहुँच सकती है तो सभी चाँद को देख सकते हैं। आत्मसाक्षात्कारी पुरुषों के इस पर्व को समझने सुनने से आत्म-चाँद की यात्रा करने का मोक्ष-द्वार खुल जाता है।

भगवद्-दर्शन और साक्षात्कार

भगवान के दर्शन में और साक्षात्कार में क्या फर्क है ? ध्रुव को भगवान का दर्शन हुआ और भगवान ने आशीर्वाद दिया कि ‘तुझे संत मिलेंगे और तुझे आत्मसाक्षात्कार होगा। बेटा ! तेरा मंगल होगा।” भगवान का दर्शन अर्जुन को, हनुमानजी को भी हुआ था लेकिन अर्जुन और हनुमानजी को जब तक आत्मसाक्षात्कार नहीं हुआ था, तब तक यात्रा अधूरी थी। कृष्ण तत्व के साक्षात्कार के बिना अर्जुन विमोहित हो रहे थे। जब श्रीकृष्ण ने उपदेश दिया, तब अर्जुन क आत्मसाक्षात्कार, स्मृति हुई, फिर अर्जुन कहते हैं-

नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।

आपके उपदेश के प्रसाद से अब मैं अपने सोऽहम् स्वभाव में, अपने आत्मस्वभाव में स्थिर हो गया। पहले तो व्यक्तित्व में था, अब मैं अस्तित्व में स्थिर हो गया हूँ। अब मेरे सारे संशय मिट गये।

श्रीरामकृष्ण परमहंस को काली माता का दर्शन हुआ था लेकिन काली माता ने कहाः “तोतापुरी गुरु के पास जाओ, दीक्षा लो।”

गुरु के पास जाकर आत्मसाक्षात्कार किया तब रामकृष्णजी की साधना पूर्ण हुई।

मैंने बहुत साधन किये, कई जगह मैंने किस्म-किस्म के पापड़ बेले लेकिन सत्संग जो दे सकता है वह हजारों वर्ष की तपस्या, समाधि भी नहीं दे सकती। ब्रह्मज्ञान का सत्संग जो ऊँची भावना, ऊँची स्मृति, ऊँचा जप-ध्यान और चौरासी लाख जन्मों के चक्कर से निकलने की कुंजी देता है, वह दूसरे किसी साधन से नहीं मिलती।

हमारा जन्म हुआ उसके पहले सौदागर झूला ले आया, पिता जी ने कहाः “भाई ! हम तो धनवान हैं, हमें दान का नहीं लेना है।” उसने कहाः “मेरे  को रात को सपना आया था, भगवान ने प्रेरणा की है कि तुम्हारे घर महान आत्मा का जन्म होने वाला है।” और हमारे लिए झूला आया, बाद में हमारे शरीर का जन्म हुआ। कुलगुरु ने कहाः “ये संत बनेगा।” पिताजी, शिक्षक और पड़ोस के लोग भी आदर करते थे। 3 साल की उम्र में, 5-10 साल की उम्र में चमत्कार भी हो जाते थे, फिर भी 22 साल की उम्र तक हमने बहुत सारे पापड़ बेले। समझते थे कि बहुत कुछ मिला है, तब भी आत्मसाक्षात्कार बाकी था और वे पुण्य घड़ियाँ जिस दिन आयीं, वह दिन था-

आसोज सुद दो दिवस, संवत बीस इक्कीस।

मध्याह्न ढाई बजे, मिला ईस से ईस॥

यह पावन दिवस है जब सदियों की अधूरी यात्रा पूरी करने में जीवात्मा सफल हो गया।

सब संतों का एक ही मत

मेरे पास एक परिचित मित्रसंत थे जिनकी साधना की एकाग्रता के बल से मानसिक शक्तियाँ विकसित हुई थीं। मेरे सामने लोहे का कड़ा किसी सरदार का ले लिया, “देखो ! मैं इसे सोने का बनाता हूँ।” उन सज्जन संत ने उसे सोने का बना दिया। चाँदी की कोई अँगूठी ली किसी से, सोने की बनाकर दिखा दी। इन्हीं आँखों से मैंने देखी। ऐसे-ऐसे महापुरुष धरती पर अभी भी हैं लेकिन आत्मसाक्षात्कार…. बाप रे बाप ! उसके सामने ये चीजें भी कोई मायना नहीं रखती हैं। ऐसे भी मेरे एक परिचित संत हैं जो अदृश्य हो जाते थे, जो पेड़ पर छोटी सी मचिया बना के हवा पीकर रहते थे, 135 साल के थे। उनकी मानसिक शक्तियाँ तो विकसित हो गयी थीं, अच्छे हैं वे महापुरुष लेकिन ऐसे सभी संतों का अनुभव है कि आत्मसाक्षात्कार सर्वोपरि अवस्था है।

सत्संगियों का संदेश

सत्संगी लोग अपना लक्ष्य ऊँचा बना लो और लक्ष्य के अनुकूल रोज संकल्प करो कि ‘जो साक्षात् परब्रह्म परमात्मा है, जिसको मैं छोड़ नहीं सकता और जो मुझे छोड़ नहीं सकता उसका अनुभव करने के लिए मैं संकल्प करता हूँ, हे अंतर्यामी आत्मा-परमात्मा ! मेरी मदद करो।’ भगवान उनकी सहायता करते हैं जो खुद की सहायता करते हैं।

किसी ने 7 दिन में साक्षात्कार करके दिखा दिया, किसी ने 40 दिन के अंदर करके दिखा दिया, मैं तो कहता हूँ कि 40 साल में भी परमात्मा का साक्षात्कार हो जाये तो सौदा सस्ता है ! करोड़ों जन्म ऐसे ही बीत गये। और बिना परमात्म-साक्षात्कार के तुम इन्द्र भी बन जाओगे तो वहाँ से पतन होगा, प्रधानमंत्री भी बन जाओगे तो कुर्सी से हटना पड़ेगा, आत्मसाक्षात्कार एक बार हो जाये तो फिर कभी पतन नहीं होता। आत्मसाक्षात्कार माने प्रलय होने के बाद भी जो परमात्मा रहता है, उसके साथ एकाकारता, फिर शरीर मरेगा तो तुम्हें यह नहीं लगेगा कि ‘मैं मर रहा हूँ।’ शरीर बीमार होगा तो तुम्हें यह नहीं लगेगा कि ‘मैं बीमार हूँ।’ लोग शरीर की जय-जयकार करेंगे तो तुमको यह नहीं लगेगा कि ‘मेरा नाम हो रहा है’, अभिमान नहीं आयेगा। और कोई पापी अथवा निंदक शरीर की निंदा करेगा तो तुमको यह नहीं लगेगा कि ‘मेरी निंदा हो रही है’, आप सिकुड़ोगे नहीं, हर हाल में मस्त ! देवता तुम्हारा दीदार करके अपना भाग्य बना लेंगे तो भी तुमको अभिमान नहीं होगा। आत्मसाक्षात्कार तो ऊँची चीज है, आत्मसाक्षात्कारी महापुरुष का चेला होना भी बहुत ऊँची चीज है। इसलिए जन्म दिवस मनाने की बहुत-बहुत रीतभात हैं लेकिन आत्मसाक्षात्कार मनाने की कोई रीतभात प्रचलित ही नहीं हुई। फिर भी सत्शिष्य अपने सदगुरु का प्रसाद पाने के लिए अपने ढंग से कुछ-न-कुछ कर लेते हैं, अमाप पुण्य व अदभुत ज्ञानस्वरूप प्रभु की प्राप्ति में प्रवेश पा लेते हैं। भगवान शंकर ने कहा हैः

धन्या माता पिता धन्यो गोत्रं धन्यं कुलोदभवः।

धन्या च वसुधा देवि यत्र स्याद् गुरुभक्तता॥

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2014, पृष्ठ संख्या 4-6

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ