सर्दियों के लिए बल व पुष्टि का खजाना

सर्दियों के लिए बल व पुष्टि का खजाना


रात को भिगोई हुई 1 चम्मच उड़द की दाल सुबह महीन पीसकर उसमें 2 चम्मच शुद्ध शहद मिला के चाटें। 1,1.30 घंटे बाद मिश्रीयुक्त दूध पियें। पूरी सर्दी यह प्रयोग करने से शरीर बलिष्ठ और सुडौल बनता है तथा वीर्य की वृद्धि होती है।

दूध के साथ शतावरी का 2-3 ग्राम चूर्ण लेने से दुबले पतले व्यक्ति, विशेषतः महिलाएँ कुछ ही दिनों में पुष्ट हो जाती हैं। यह चूर्ण स्नायू संस्थान को भी शक्ति देता है।

रात को भिगोई हुई 5-7 खजूर सुबह खाकर दूध पीना या सिंघाड़े का देशी घी में बना हलवा खाना शरीर के लिए पुष्टिकारक है।

रोज रात को सोते समय भुनी हुई सौंफ खाकर पानी पीने से दिमाग तथा आँखों की कमजोरी में लाभ होता है।

आँवला चूर्ण, घी तथा शहद समान मात्रा में मिलाकर रख लें। रोज सुबह एक चम्मच खाने से शरीर के बल, नेत्रज्योति, वीर्य तथा कांति में वृद्धि होती है। हड्डियाँ मजबूत बनती हैं।

100 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को 20 ग्राम घी में मिलाकर मिट्टी के पात्र में रख दें। सुबह 3 ग्राम चूर्ण दूध के साथ नियमित लेने से कुछ ही दिनों में बल वीर्य की वृद्धि होकर शरीर हृष्ट-पुष्ट बनता है।

शक्तिवर्धक खीरः

3 चम्मच गेहूँ का दलिया व 2 चम्मच खसखस रात को पानी में भिगो दें। प्रातः इसमें दूध और मिश्री डालकर पकायें। आवश्यकतानुसार मात्रा घटा—बढ़ा सकते हैं। यह खीर शक्तिवर्धक है।

हड्डी जोड़ने वाला हलवाः गेहूँ के आटे में गुड़ व 5 ग्राम बला चूर्ण डाल के बनाया गया हलवा (शीरा) खाने से टूटी हुई हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है। दर्द में भी आराम होता है।

अपनायें आरोग्यरक्षक शक्तिवर्धक उपाय

सर्दियों में हरी अथवा सूखी मेथी का सेवन करने से 80 प्रकार के वायु रोगों में लाभ होता है।

सब प्रकार के उदर रोगों में मट्ठे और देशी गाय के मूत्र का सेवन अति लाभदायक है।

(गोमूत्र न मिल पाये तो गोझरण अर्क का उपयोग कर सकते हैं।)

भयंकर कमरदर्द और स्लिप्ड डिस्क का अनुभूत प्रयोग

ग्वारपाठे (घृतकुमारी) का छिलका उतारकर गूदे को कुचल के बारीक पीस लें। आवश्यकतानुसार आटा लेकर उसे देशी घी में गुलाबी होने तक सेंक लें। फिर उसमें ग्वारपाठे का गूदा मिलाकर सेंकें। जब घी छूटने लगे तब उसमें पिसी मिश्री मिला के 20-20 ग्राम के लड्डू बना लें। आवश्यकतानुसार तीन-चार सप्ताह तका रोज सुबह खाली पेट एक लड्डू खाते रहने से भयंकर कमरदर्द समाप्त हो जाता है।

सावधानीः देशी ग्वारपाठे का ही उपयोग करें, हाइब्रिड नहीं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2014, पृष्ठ संख्या 28, अंक 263

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