संस्कृत सभी भाषाओं की जननी हैः सर्वोच्च न्यायालय

संस्कृत सभी भाषाओं की जननी हैः सर्वोच्च न्यायालय


 

संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति का आधारस्तम्भ है। यह संसार की समृद्धतम भाषा है। इसका अध्ययन मनुष्य को सूक्ष्म विचारशक्ति प्रदान करता है और मौलिक चिंतन को जन्म देता है। इससे मन में स्वाभाविक ही अंतर्मुख होने लगता है।

सनातन संस्कृति के सभी मूल शास्त्र संस्कृत भाषा में ही हैं। अतः उनके रसपान व ज्ञान में गोता लगाने के लिए इस भाषा का ज्ञान होना अति आवश्यक है। पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू पिछले 50 वर्षों से अपने सत्संगों द्वारा इसकी महत्ता बताते आये हैं और सत्संग में वेद, उपनिषद, गीता, भागवत के श्लोकों की सुंदर व्याख्या करके उनमें छुपे अमृत का रसास्वादन कराते रहे हैं। संस्कृत व संस्कृति के रक्षक पूज्य बापू जी कहते हैं- “संस्कृत भाषा देवभाषा है और इसके उच्चारणमात्र से दैवी गुण विकसित होने लगते हैं। अधिकांश मंत्र संस्कृत में ही हैं।”

इस भाषा का ज्ञान सभी भारतवासियों को होना ही चाहिए। विद्यालयों में इसकी शिक्षा आवश्यक रूप से सभी बच्चों को मिलनी चाहिए। माननीय सर्वोच्च न्यायालय को सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल ने बताया कि “केन्द्रिय विद्यालयों में शिक्षा 6 से 8 तक संस्कृत ही तीसरी भाषा होगी। जर्मन पढ़ाया जाना गलत है और गलती को जारी नहीं रखा जा सकता।”

इस पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहाः “हमें क्यों अपनी संस्कृति भूलनी चाहिए ! संस्कृत के जरिये आप अन्य भाषाओं को आसानी से सीख सकते हैं। संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। सरकार अगले सत्र से इसे बेहतर तरीके से क्रियान्वित करे।”
संस्कृत का अखंड प्रवाह पालि, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं में बह रहा है। चाहे तमिल, कन्नड़ या बंगाली हो अथवा मलयालम, ओड़िया, तेलुगू, मराठी या पंजाबी हो – सभी भारतीय भाषाओं के लिए लिए संस्कृत ही अंत-प्रेरणा-स्रोत है। आज भी इन भाषाओं का पोषण और संवर्धन संस्कृत द्वारा ही होता है। संस्कृत की सहायता से कोई भी उत्तर भारतीय व्यक्ति तेलुगू, कन्नड़, ओड़िया, मलयालम आदि दक्षिण एवं पूर्व भारतीय भाषाओं को सरलतापूर्वक सीख सकता है। आज तो ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज और कोलम्बिया जैसे प्रतिष्ठित 200 से भी ज्यादा विदेशी विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ायी जा रही है।

ब्रिटिश स्कूलों में संस्कृत अनिवार्य
‘संस्कृत से छात्रों में प्रतिभा का विकास होता है। यह उनकी वैचारिक क्षमता को निखारती है, जो उनके बेहतर भविष्य के लिए सहायक है।’ ऐसा मानना है लंदन के सेंट जेम्स कान्वेंट स्कूल का, जहाँ बच्चों को द्वितिय भाषा के रूप में संस्कृत सीखना आवश्यक है।

याद्दाश्त को भी बेहतर बनाती है संस्कृत
शिक्षाविद् पॉल मॉस के अनुसार ‘संस्कृत से सेरेब्रेल कॉर्टेक्स सक्रिय होता है। किसी बालक के लिए उँगलियों और जुबान की कठोरता से मुक्ति पाने के लिए देवनागरी लिपि व संस्कृत बोली ही सर्वोत्तम मार्ग है। वर्तमान यूरोपीय भाषाएँ बोलते समय जीभ और मुँह के कई हिस्सों का और लिखते समय उँगलियों की कई हलचलों का इस्तेमाल ही नहीं होता, जब कि संस्कृत उच्चारण-विज्ञान के माध्यम से मस्तिष्क की दक्षता को विकसित करने में काफी मदद करती है।’

डॉ. विल डुरंट लिखते हैं- ‘संस्कृत आधुनिक भाषाओं की जननी है। संस्कृत बच्चों के सर्वांगीण बोध ज्ञान को विकसित करने में मदद करती है।’ कई शोधों में यह पाया गया कि जिन छात्रों की संस्कृत पर अच्छी पकड़ थी, उन्होंने गणित और विज्ञान में भी अच्छे अंक प्राप्त किये। वैज्ञानिकों का मानना है कि संस्कृत के तार्किक और लयबद्ध व्याकरण के कारण स्मरणशक्ति और एकाग्रता का विकास होता है। इसके ताजा उदाहरण हैं गणित का नोबेल पुरस्कार कहे जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘फील्डस मेडल’ के विजेता भारतीय मूल के गणितज्ञ मंजुल भार्गव, जो अपनी योग्यता का श्रेय संस्कृत भाषा को देते हैं। इसके तर्कपूर्ण व्याकरण ने उनके भीतर गणित की बारीकियों को समझने का तार्किक नजरिया विकसित किया।

मैकाले शिक्षा-पद्धति के पढ़े लोग अज्ञानवश इसे सिर्फ पूजा-पाठ, कर्मकाण्ड से जुड़ा मानकर इस भाषा को अवैज्ञानिक तथा अनुपयोगी बताते हैं परंतु वास्तविकता यह है कि वर्तमान में यह भाषा केवल साहित्य, दर्शन या अध्यात्म तक ही नहीं बल्कि गणित, विज्ञान, औषधि, चिकित्सा, इतिहास, मनोविज्ञान, भाषाविज्ञान जैसे विविध क्षेत्रों में भी अपना महत्वपूर्ण स्थान बना रही है। इसके साथ ही ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और कम्पयूटर क्षेत्र में भी संस्कृत के प्रयोग की सम्भावनाओं पर भारत ही नहीं, फ्रांस, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, इंग्लैंड आदि देशों में शोध जारी है। वानस्पतिक सौंदर्य प्रसाधन (डर्बल कॉस्मैटिक्स) एवं आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के तेजी से बढ़ते प्रचलन से संस्कृत की उपयोगिता और बढ़ गयी है क्योंकि आयुर्वेद पद्धतियों का ज्ञान संस्कृत में ही लिपिबद्ध है। अपनी सुस्पष्ट और छंदात्मक उच्चारण प्रणाली के चलते संस्कृत भाषा को ‘स्पीच थेरेपी टूल’ (भाषण चिकित्सा उपकरण) के रूप में मान्यता मिल रही है।
लौकिक नश्वर उन्नति, वैज्ञानिक प्रगति एवं सुख-सुविधा के लिए संस्कृत का लाभ लेने वालों को हमारा धन्यवाद है। परंतु यह तो बहुत छोटी चीज है, छाछ है, मक्खन तो संस्कृत साहित्य एवं शास्त्रों में छुपा अध्यात्मविद्या का ज्ञानामृत है, जो अनमोल है। मनुष्य जन्म के परम लक्ष्य परमात्मप्राप्ति हेतु वैदिक, औपनिषदिक एवं गीता, भागवत, रामायण, महाभारत का ज्ञान भण्डार तो केवल और केवल संस्कृत भाषा में ही है। अन्यत्र जो भी है संस्कृत से ही प्रसादरूप से प्राप्त किया गया है। व्यासोच्छिष्टं जगत्सर्वम्।

जब विदेशी इसका भरपूर लाभ ले रहे हैं तो भारतीय इस अनूठी सभ्यता की अनमोल धरोहर से वंचित क्यों रहें ! भारतीय संस्कृति की सुरक्षा, चरित्रवान नागरिकों के निर्माण, सदभावनाओं के विकास एवं विश्वशांति हेतु भारत एवं पूरे विश्व में संस्कृत का अध्ययन-अध्यापन अवश्य होना चाहिए। इसी से होगा सबका मंगल, सबका भला…. सबका विकास, सच्चा विकास-मंगल और भला वाला।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2015, पृष्ठ संख्या 18,19 अंक 265
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