ग्रीष्म ऋतु में सेहत की देखभाल – ग्रीष्म ऋतुः 20 अप्रैल से 20 जून

Rishi Prasad 268 Apr 2015

ग्रीष्म ऋतु में सेहत की देखभाल – ग्रीष्म ऋतुः 20 अप्रैल से 20 जून


ग्रीष्म ऋतु में प्राकृतिक रूप से शरीर के पोषण की अपेक्षा शोषण अधिक होता है। गर्मी से शरीर का जलीय अंश कम होता है। जठराग्नि मंद हो जाती है, भूख कम लगती है, रूखापन बढ़ता है बल क्षीण होता है। इससे दस्त, कमजोरी, बेचैनी आदि परेशानियाँ पैदा हो सकती हैं। आहार व विहार में उचित परिवर्तन करके इनसे सुरक्षा की जा सकती है।
इन दिनों में भोजन में मधुर, हलके, चिकनाईयुक्त, शीतल व तरल पदार्थों का सेवन विशेष रूप से करना चाहिए। खरबूजा, तरबूज, मौसम्बी, संतरा, केला, मीठे आम, मीठे अंगूर, बेलफल, गन्ना, ताजा नारियल, परवल, पेठा (कुम्हड़ा), पुदीना, हरा धनिया, नींबू, गाय का दूध, घी, शिकंजी, पना, सत्तू आदि का सेवन हितकारी है। दही, छाछ, तले हुए अधिक नमकयुक्त, कड़वे व खट्टे पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। तेज व धूप में घूमने, देर रात तक जागने व अधिक भोजन से बचें। ग्रीष्म में शारीरिक शक्ति अत्यंत क्षीण हो जाने के कारण अधिक व्यायाम, अधिक परिश्रम एवं मैथुन त्याज्य है। एअर कंडीशन अथवा कूलर की हवा, फ्रिज का पानी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। चाँदनी में खुली हवा में सोना, मटके का पानी स्वास्थ्यप्रद है।
ग्रीष्मकालीन समस्याओं का समाधान
कमजोरीः सत्तू में घी पर मिश्री अथवा आम के रस में घी व इलायची मिलाकर पीने से कमजोरी नहीं आती। रात को दूध में घी मिलाकर पीना भी लाभदायी है। साठी के चावल का भात व दूध सुपाच्य व शीघ्र शक्तिदायी आहार है।
प्यास व बेचैनीः पिसा हुआ धनिया, सौंफ व मिश्री का मिश्रण बनाकर पानी में भिगो दें और कुछ देर बाद पियें। नारियल पानी, शिकंजी, गन्ने का रस, पना, बेल के शरबत आदि से शीघ्र लाभ होता है। इसने दाह व जलन भी शांत होती है। सॉफ्टड्रिंक्स प्यास, बेचैनी मिटाने का केवल क्षणिक एहसास दिलाते हैं। इनसे अंदरूनी गर्मी अत्यधिक बढ़ती है व अन्य कई गम्भीर दुष्परिणाम होते हैं।
दस्तः दही के ऊपर का पानी 2 चम्मच पीने से तुरंत राहत मिलती है।
लू लगने पर- प्याज का रस शरीर पर मलें, पना पिलायें।
चक्कर- सिर तथा चेहरे पर तुरंत ही ठंडे पानी के छींटें मारें। शीतल, तरल पदार्थ पीने के लिए दें।
दाह- दूध में गुलकंद मिलाकर पियें। आँवले का मुरब्बा, सत्तू, मक्खन-मिश्री, मिश्रीयुक्त पेठे का रस लाभदायी है।
पेशाब में जलन- गर्मी के कारण पेशाब में जलन या रूकावट होने पर कटी ककड़ी में मिश्री का चूर्ण मिला के ऊपर नींबू निचोड़कर खायें।
ककड़ी के 150 ग्राम रस में 1 नींबू का रस और जीरे का चूर्ण मिलाकर पीने से मूत्र की रूकावट दूर होती है।
मंदाग्नि- ककड़ी पर संतकृपा चूर्ण लगा के खाने से मंदाग्नि दूर होती है तथा भोजन में रूचि पैदा होती है। यह चूर्ण सभी संत श्री आशाराम जी आश्रमों वे सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध है।
सब्जियों में सर्वश्रेष्ठ-परवल
आयुर्वेद में परवल को सब्जियों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसे सभी ऋतुओं में सदा पथ्य के रूप में स्वीकार किया गया है। परवल की सब्जी रोगग्रस्त लोगों के लिए भी अत्यंत गुणकारी है। घी में भूनकर बनायी गयी परवल की सब्जी स्वादिष्ट व पौष्टिक होती है।
परवल की सब्जी के लाभ
पचने में सुलभ, पाचक, जठराग्निवर्धक एवं त्रिदोषनाशक।
पौष्टिक तथा वीर्य व शक्ति वर्धक।
हृदय तथा आँखों के लिए हितकर।
पेट की विभिन्न बीमारियों – आँतों में सूजन, कृमि, जिगर व तिल्ली की बीमारियों आदि में विशेष लाभकारी।
सूजन तथा रक्तदोषजन्य रोग जैसे खुजली, कोढ़ आदि में उपयुक्त।
पित्तज ज्वर व पुराने बुखार में विशेष लाभदायक।
कफजन्य सर्दी, खाँसी, दमा आदि में विकृत कफ को बाहर निकालने में सहायक।
विशेष- सब्जी के लिए कोमल बीज व सफेद गूदेवाले मीठे परवल का उपयोग करें। कड़वे परवल का उपयोग औषधियों में होता है।
कीटाणुरहित व पवित्र वातावरण के लिए गौ-सेवा फिनायल
आयुर्वेद में धर्मशास्त्रों में वर्णित, पुरातन काल से आरोग्यता, पवित्रता, निर्मलता, स्वच्छता हेतु प्रयुक्त होने वाला गोमूत्र अब एक विशेष अंदाज में ! गोमूत्र, नीम-सत्त्व, देवदार तेल, वानस्पतिक सुगंधित एवं अन्य सुरक्षित कीटाणुनाशकों से निर्मित।
सफाई के साथ रोगाणुनाशक एवं सात्त्विक वातावरण के निर्माण में सहयोगी।
गौ-सेवा के साथ-साथ आध्यात्मिक वातावरण का लाभ देने में मददगार।
प्रयोग विधि- 1 लीटर पानी में 10 मि.ली. गौ-सेवा फिनायल घोलकर पोंछा लगायें, स्प्रे करें या सुविधानुसार प्रयोग करें।
ग्रीष्म ऋतु में जलीय अंश के रक्षक पेय
पाचक व रूचिवर्धक नींबू शरबत
नींबू का रस 1 भाग व शक्कर 6 भाग लेकर चाशनी बनायें तथा थोड़ी मात्रा में लौंग व काली मिर्च का चूर्ण डाल दें। थोड़ा मिश्रण लेकर आवश्यकतानुसार पानी मिला के पियें। यह वातरोग को भी नियंत्रित करता है।
पित्तशामक धनिये का पना
5 से 10 ग्राम बारीक पिये सूखे धनिये में आवश्यकतानुसार मिश्री मिलाकर मिट्टी के पात्र में 2-4 घंटे रखें, थोड़ी पिसी हुई इलायची भी डाल दें। इसके सेवन से शरीर की गर्मी और जलन कम होती है। पित्त का शमन होता है।
शीतल व स्मृतिवर्धक ब्राह्मी शरबत
बुद्धिवर्धक तथा स्फूर्तिदायक इस शरबत के सेवन से ज्ञानतंतु व मस्तिष्क पुष्ट होते हैं, दिमाग शांत व ठंडा होता है। बौद्धिक थकावट, स्मरणशक्ति की कमी, मानसिक रोग, क्रोध, चिड़चिड़ापन दूर होकर मन-बुद्धि को विश्रांति मिलती है। ब्राह्मी का एसेंस नहीं, शुद्ध ब्राह्मी का शरबत हो तब ये लाभ मिलते हैं।
शीतल व स्वास्थ्यवर्धक पलाश शरबत
इसके सेवन से पित्तजन्य रोग (दाह, तृष्णा, जलन आदि। शांत हो जाते हैं। गर्मी सहन करने की ताकत मिलती है तथा कई प्रकार के चर्मरोग में लाभ होता है। यह प्रमेह (मूत्र संबंधी विकारों) में भी लाभदायी है। पलाश रसायन वार्धक्य एवं पित्तजन्य रोगों को दूर रखने वाला, नेत्रज्योति बढ़ाने वाला व बुद्धिवर्धक भी है।
(प्राप्ति स्थान- सभी संत श्री आशाराम जी आश्रम व समितियों के सेवाकेन्द्र।)
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2015, पृष्ठ संख्या 32,33 अंक 268
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